हास्य व्यंग्य कविता : पॉपुलर कारपोरेट मंत्र

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मिलन सिन्हा

 

corporateसुबह से हो जाती थी शाम

पर, हर दिन

रहता था वह  परेशान.

मामला ओफिशिएल था

कुछ -कुछ ,

कांफिडेंसिएल  था.

इसीलिए

किसी से कुछ न कहता था

खुद ही चुपचाप ,

सबकुछ  सहता था.

देखी  जब मैंने  उसकी दशा

सुनी गौर  से

उसकी समस्या,

सब कुछ समझ में आ गया .

असल बीमारी का

पता भी चल गया.

रोग साइकोलोजिकल  था

पर, समाधान

बिल्कुल प्रक्टिकल  था.

मैंने  उसे सिर्फ़  एक  मंत्र  सिखाया

जिसे उसने

बड़े मन से अपनाया.

आफ़िस  में अब उसे

नहीं है कोई टेंशन,

सेलेरी को अब वह

समझने लगा है पेंशन.

“झाड़ने ” को वह  अब

“कला ” मानता है .

अपने मातहतों  को

खूब झाड़ता  है.

और अपने बॉस के फाइरिंग को

चैम्बर से  निकलते ही

ठीक से “झाड़ता ” है .

“झाड़ने ” को वह  अब

“कला ” मानता है I

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