निरंकुश सरकारों के खिलाफ सत्याग्रह व संघर्ष

अरविन्द विद्रोही

अब वो समय आ गया है की युवा वर्ग को अपना ध्यान आम जनता के बीच सरकार की निरंकुशता के खिलाफ जागृति पैदा करने में देना होगा| बेईमानो की हितैषी, जनविरोधी, निरंकुश सरकार और जनरल डायर के माफिक आचरण कर रहे लोगो को सबक सिखाने के लिए हमें ही आगे आना होगा| अभी ४ जून की रात को दिल्ली के राम लीला मैदान में मानवता को शर्म सार करने वाला, लोकतंत्र पे कुठारा घात करने सरीखा दुष्कर्म भारत की राजनीति को गहरे अंधे खड्ड में धकेलने वाला बर्बर कृत्य तथा-कथित ईमानदार मनमोहन सिंह की अगुआई व सोनिया गाँधी की रहनुमाई में चल रही निरंकुश-गैर जिम्मेदार-जन विरोधी सरकार की गुलाम पुलिस बल ने अंजाम दिया है|

 

राम लीला मैदान में भारत की सत्तासीन कांग्रेस सरकार ने दरिन्दिगी में मानो गुलाम भारत की शासक रही ब्रितानिया हुकूमत को परस्त करने का मन बना लिया था| लोकतंत्र को भद्दा मजाक बना चुकी कांग्रेस को शायद विस्मृत हो चुका है कि ब्रितानिया हुकूमत ने जांलियावाला बाग में १३ अप्रैल ,१९१९ को जो दरिन्दिगी दिखाई थी,उसका प्रतिकार क्रांति के मतवालों ने लिया था| जालिया वाला बाग़ की अमानवीय घटना के बाद भारतीय युवा वर्ग आक्रोशित हुआ था | भगत सिंह ,उधम सिंह सरीखे तमाम किशोर वहा की माटी माथे पे लगा के बोतलों में भर के, ब्रितानिया हुकूमत कि दबंगई का प्रतिकार लेने की सौगंध खा के घर लौटे थे | १२ वर्षीय उधम सिंह इस अमानविए घटना के चश्मदीद गवाह थे | हृदय में प्रतिशोध कि ज्वाला लिए उधम सिंह उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड गये | आखिरकार १३ मार्च, १९४० को रक्त पिपासु गवर्नर मुकल ओडायर जिसने जांलियावाला बाग में बर्बर कार्यवाही का आदेश जनरल डायेर को दिया था ,को एक के बाद एक ५ गोलिओं से भून कर पंजाब केसरी लाला लाजपत राय कि निर्मम व दुर्भाग्य पुण्य हत्या का बदला ले लिया था | १२ जून ,१९४० को वीर उधम सिंह को ब्रितानिया हुकूमत फांसी पर लटका दिया था | भारत में ऐसे रन-बांकुरो कि कमी नहीं है हो अपने नेता के अपमान व हत्या का बदला अपनी जमीन पर ही नहीं दुश्मन के घर में घुस के भी लेते है | इसके पूर्व क्रान्तिकारियो के बौधिक नेता के रूप में स्थापित हो चुके भगत सिंह,राजगुरु व सुखदेव को साइमन कमीशन के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान पुलिस की निर्ममता के शिकार लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए हिंदुस्तान रिपब्लिक सोशलिस्ट एसोशिएसन ने चुना था | १७ दिसम्बर,१९२८ को पुलिस अधिकारी सांडर्स व एक हेड कांस्टेबिल को ब्रितानिया हुकूमत की बर्बरता के बदले मृत्युदंड माँ भारती के इन सपूतो ने दे दिया| आजाद भारत में सो रहे सत्यग्राहियो पर बर्बरता पूर्वक लाधी बरसाने,आंसू गैस छोड़ने वाले पुलिस बल को अपना पौरुष सीमा पर व सीमा पार से संचालित हो रहे भारत विरोधी आतंक वाद के खात्मे में दिखना चाहिए था | आतंकवादियो की दामाद की तरह खातिरदारी करने वाली कांग्रेस की सरकार भारत के आम नागरिक को लतियाने व धमकियाने में अपनी ताकत लगा रही है |

 

आखिर कांग्रेस सरकार चाहती क्या है? क्या काला धन वापस भारत लाने की बात करना ,सत्याग्रह करना बंद हो जाना चाहिए? याद आ जाना चाहिए इन जन विरोधी लोगो को कि महात्मा गाँधी के १९२१ के असहयोग सत्याग्रह आन्दोलन में मात्र १४ वर्ष के चन्द्र शेखर आजाद ने अपने कोमल शरीर पे १५ कोड़े खाए थे, महत्मा गाँधी के सत्याग्रह का यह सिपाही जब ब्रितानिया हुकूमत के खिलाफ सत्य के मार्ग पे चलता हुआ क्रांति के पथ का राही बना तो ब्रितानिया हुकूमत के बड़े बड़े सुरमा अपने अपने जान को बचने की फ़िराक में रहते थ | सत्याग्रहियो पे सरकारी जुल्म ने हमेशा क्रांति के मतवालों को जन्म दिया है | जुल्म का प्रतिकार लेने के लिए भारत के युवा वर्ग्य ने अपनी जान की बाज़ी हर युग में लगायी है और जुल्मी को दंड दिया है | उत्तर प्रदेश की माया सरकार की पुलिस निर्ममता का विरोध करने वाले राहुल गाँधी और उनके चाटुकारों को दिल्ली के राम लीला मैदान में अपनी सरकार के जुल्म नहीं दिखाई दे रहे है क्या? आतंकवादियो को मनपसंद पकवान व भारत की सत्याग्रही जनता को लाठी खाने को देने वाली निक्कमी सरकार के जिम्मेदारो ने बेशर्मी का विश्व रिकॉर्ड बना डाला है |

 

सरकार के जुल्म से आज भारत की आम जनता का मन सिसक रहा है | आम आदमी के कलेजे में आग लग चुकी है | मंहगाई,बेकारी,कुशिक्षा ,कृषि भूमि का जबरन व मनमाने अधिग्रहण,जन सुविधाओ-जन अधिकारों की बदहाली की मार झेल रहे भारत के आम नागरिक सरकार की इस निर्मम कृत्य को देखकर स्तब्ध है| महात्मा गाँधी को अपना आदर्श मानने का दावा करने वाली सरकार के द्वारा महत्मा गाँधी के ही सत्याग्रह के राही स्वामी रामदेव और जन समुदाय के साथ किया गया कुकृत्य मन को आंदोलित कर चुका है | क्या पता आजाद भारत में जुल्मी सरकार के आतंक व जुल्म की मूक गवाह राम लीला मैदान की माटी भी किशोरों ने अपने माथे पे लगा के जुल्म के प्रतिकार की सौगंध उठा ली हो | सरकार के जुल्म से ही क्रांति के सेनानी जन्म लेते है | जब सरकारे अपनी ताकत का प्रयोग अपने ही सत्याग्रही नागरिको पे करेंगी तो निश्चित ही माँ भारती खुद अपने सपूतो को जुल्म का प्रतिकार करने हेतु प्रेरित करेंगी | आज माँ भारती की पुकार को सुनने और उसको पूरा करने का समय आ गया है| सरकारों के इस जनविरोधी जुल्मी दौर में समाजवादी चिन्तक व विचारक, महात्मा गाँधी के अनुयायी डॉ राम मनोहर लोहिया की बात याद आ जाती है| कांग्रेस को आजाद भारत में व्याप्त बुराई,भ्रस्टाचार का जिम्मेदार मानने वाले डॉ लोहिया अन्याय के खिलाफ संघर्ष को समाजवादियो का कर्त्तव्य मानते थे| जायज़ मांगो को लेकर सत्याग्रह पर बैठे स्वामी राम देव और अन्य सत्याग्रहियो पर अत्याचार का विरोध सभी समाजवादियो को करना ही चाहिए| सरकारों की निरंकुशता की खिलाफत करके समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने एक अच्छा काम किया है | डॉ राम मनोहर लोहिया युग दृष्टा थे | डॉ लोहिया की गैर कांग्रेस वाद की अवधारणा पर अमल करने का समय लोकतंत्र व समाजवाद में विश्वाश रखने वाले सभी राजनितिक व्यक्ति व संगठनो के सम्मुख आ गया है | देश में सत्ता पे काबिज नाकारा-निरंकुश सरकारों को उखाड़ फैंकने और जन अधिकारों की बहाली की सोच रखने वालो को अब व्यवस्था परिवर्तन की लड़ाई में अपना योगदान खुद ही सुनिश्चित करना चाहिए | समाजवादी नेता डॉ राम मनोहर लोहिया पूरी जिंदगी शोषण ,अत्याचार,अन्याय,जुल्म के खिलाफ लड़े और मज़लूमो की आवाज बने | आज सरकारों के निरंकुशता के खिलाफ सभी समाजवादियो की , डॉ लोहिया को मानने वालो की आवाज उठनी भी चाहिए और निरंकुश हो चुकी सरकारों के खिलाफ सड़क से सांसद तक विरोध-संघर्ष भी होना चाहिए|

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अरविन्‍द विद्रोही
एक सामाजिक कार्यकर्ता--अरविंद विद्रोही गोरखपुर में जन्म, वर्तमान में बाराबंकी, उत्तर प्रदेश में निवास है। छात्र जीवन में छात्र नेता रहे हैं। वर्तमान में सामाजिक कार्यकर्ता एवं लेखक हैं। डेलीन्यूज एक्टिविस्ट समेत इंटरनेट पर लेखन कार्य किया है तथा भूमि अधिग्रहण के खिलाफ मोर्चा लगाया है। अतीत की स्मृति से वर्तमान का भविष्य 1, अतीत की स्मृति से वर्तमान का भविष्य 2 तथा आह शहीदों के नाम से तीन पुस्तकें प्रकाशित। ये तीनों पुस्तकें बाराबंकी के सभी विद्यालयों एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं को मुफ्त वितरित की गई हैं।

5 COMMENTS

  1. जय हिंद अरविन्दजी आप ने अछा लेख लिखा है पर जनक्रांति शांति से नहीं आती इतिहास गवाह है उसे लाने के लिए शास्त्र उठाना पड़ता है और आज हम युवाओ की बात बहुत से लोग जो हमारे साथ है वो सिर्फ बातें करते है मतलब सिर्फ मोमबती ब्रिगेड , पर रामलीला मैदान मैन जो कुछ भी हुआ उसका परिणाम सर्कार को चुकाना पड़ेंगा आपका नज़रिया अलग है अच्छा है आप हमेशा लिखते रहे

  2. श्री अरविन्द जी
    अत्यंत सामयिक, प्रेरक लेख , कोटि कोटि साधुवाद आपके लेखों की प्रतीक्षा होगी / आपसे क्षमा मांगते हुए मेरे निजी विचार से बड़े बदलाव की घटनाओं का स्वरुप देश , काल , पात्र के अनुसार अलग – अलग होता है/ पूर्ण लोकतंत्र के लिए विचारों का प्रसार एक शांत जनक्रांति ला सकता है जरुरत पूरी सकारात्मक उर्जा को सही दिशा देने की है, ईश्वर अवश्य ही हमारी मदद करेंगे /
    अंतर्मन से कोटि कोटि शुभकामनाएं
    संतोष कुमार

  3. श्री अरविन्द जी, आज को युवा वो युवा नहीं रहा…गांधीवाद पढ़ाकर और सत्य अहिंसा के इंजेक्शन लगा कर उसे और उसकी उग्रता को लगभग समाप्त कर दिया गया है…आज के युवा से भगतसिंग बनने की आशा नहीं की जा सकती..आज का युवा मोमबत्ती ब्रिगेड में भर्ती होने को सदा तैयार रहता है…जरुरत है युवा के अन्दर की आग का सही इस्तेमाल करने की…जय हिंद

  4. इतने अच्छे विचारों के द्वारा सच्चाई पर रोशनी डालने के लिए बधाई ! आप और अच्छा नियमित लिखें शुभकामनायें

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