“सेव पेपर कैम्पेन”-डीयू छात्रों की अनोखी पहल

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save paperदिल्ली विश्वविद्यालय में अमूमन फ़रवरी-मार्च के महीनों में काफी चहलपहल रहती है। यहाँ पढ़ने वालों के शब्दों में कहें तो दूसरी जगहों पर बसंत महसूस किया जाता है, यहाँ वह प्रत्यक्ष झूमते, गाते, गुनगुनाते छात्रों की मस्तानी भीड़ के रूप में दिखाई पड़ती है। यही वह महिना होता है जब डीयू के कॉलेजों में सांस्कृतिक उत्सव “फेस्ट” हो रहे होते है। फेस्ट के दौरान कैम्पस में अगर सुर्ख़ियों में कोई चर्चा रहती है तो बस यही कि किस कॉलेज में कौन सा डीजे, कौन पॉपुलर सिंगर आ रहा है। फेस्ट में इंट्री के पास का जुगाड़ हो जाए, खासकर लड़कियों के कॉलेज में, इस जुगत और “पास कहाँ से मिलेगा?” की जानकारी बाँटने में सब लगे दिखाई देते है। फेस्ट के रंग-बिरंगे पर्चे-पोस्टर डीयू के तमाम कॉलेज व विभागों की शोभा बढ़ाते है। फेस्ट का आयोजन ज्यादातर कॉलेज में छात्र संघ में जीते या सम्बंधित विभाग के मनोनित प्रतिनिधियों द्वारा कराई जाती है। कही लाखो तो कही करोड़ो का बजट फेस्ट के लिए बनता है, जो विज्ञापन (स्पोंसर) के माध्यम से जुटाया जाता है। देखा जाए तो फेस्ट छात्रों के लिए मस्ती का आलम लेकर आता है। विज्ञापनदाताओं के लिए वह प्रचार का तो दूसरी तरफ छात्रसंघों के लिए कमाई का जरिया बनता है।

लेकिन इन सबके बीच छात्रों का एक ऐसा भी वर्ग आजकल कैम्पसों में घूमता दिखाई दे रहा है जो बाकी छात्रों की तरह फेस्ट की मस्ती में झूमता भी है, नाचता भी है लेकिन उसे सबसे ज्यादा पर्यावरण की चिंता है। जी हाँ, मै बात कर रहा हूँ हिन्दू कॉलेज में पढ़ने वाले कुछ छात्रों की, जिन्होंने “सेव पेपर कैम्पेन” चला रखा है।

अभियान कई मायनों में अनोखा है। अभियान के प्रचार में लाई जाने वाली सामग्री “इको फ्रेंडली” है। आपको जानकर हैरानी होगी कि इस अभियान के प्रचार के लिए इस्तेमाल होने वाले कागज नए नहीं, बल्कि कॉलेज के दीवारों, नोटिस बोर्ड व कैम्पस के प्रसिद्ध “वाल ऑफ़ डेमोक्रेसी” पर पहले से चिपके पड़े पुराने व आउटडेटेड पोस्टर इस्तेमाल में लाए जा रहे है। मतलब साफ है – पर्यावरण को बचाना है तो यह मुहिम और नए पेड़ो को काटने का बहाना न बनें। इन्टरनेट, खासकर सोशल मीडिया के मंच ट्विटर, फेसबुक, अभियान को आगे बढ़ाने, छात्रों के बीच में जानकारी फ़ैलाने में इस्तेमाल की जा रही है।

अभियान को काफी प्रशंसा व आरंभिक सफलता भी मिली है। इसका असर पिछले दिनों कॉलेज में हुए फेस्ट के दौरान देखने को भी मिला है जब छात्र फेस्ट के दौरान कागज की बर्बादी न हो, इसको लेकर सचेत दिखे। सेव पेपर अभियान की शुरुआत करने वाले हिन्दू कॉलेज के छात्र विकास गौतम, आशीष मल, राजीव सोनोवाल इस अभिनव मुहिम को लेकर काफी सक्रिय है और आजकल पढ़ाई से बचे अतिरिक्त वक़्त इसी अभियान को समर्पित कर रहे है। “अभियान को आरंभ करने का ख्याल कैसे आया ?” इस बाबत पूछने पर विकास ने कहा कि कॉलेज में पिछले दो वर्षों के फेस्ट के दौरान कागज की बर्बादी देखकर हमें लगता था कि कागजों की बेमतलब बर्बादी रोकने की पहल करना बहुत जरुरी है। सोचता था कि आखिर फेस्ट के प्रचार करने के चक्कर में बेचारे पेड़ क्यों बलि चढ़े! अगर प्रचार ही करना है तो एक जगह पर 1 या 2 पोस्टर काफी है, फिर सैंकड़ो पोस्टर एक ही जगह लगाने का क्या मतलब? जब इसके सम्बन्ध में कुछ दोस्तों से चर्चा की तो सबने अभियान चलाने की हामी भरी …और शुरू हो गया अभियान!

 

जंगल के दर्द समझने वाले और मूल रूप से असम के रहने वाले छात्र राजीव सोनोवाल अभियान के मकसद को स्पष्ट करते हुए बताते हैं कि इस अभियान का एकमात्र उदेश्य कागजों की बर्बादी रोकने के लिए छात्रों को जागरूक बनाना है। अपने अभियान के दौरान हम यह बात भी लोगो तक पहुंचा रहे है कि कागजों को इकठ्ठा करके जलाने की वजाए हमें उसे पुनः चक्रण(रीसाईकल) हेतु कबाड़ी को बेच देना चाहिए ताकि इनका दोबारा इस्तेमाल होना सम्भव हो सकें। कागजों का इस्तेमाल कम से कम हों, इसके लिए हम फेस्ट के आयोजनकर्ताओं से मिल रहे है। हमारे समझाने का असर भी फेस्ट पर दिखाई दे रहा है।

 

वैसे यह कोई पहला उदाहरण नहीं है जब छात्र इस प्रकार की मुहिम कागजों को बचाने के लिए कर रहे हों लेकिन यह अभियान अब तक के सभी अभियानों में अनोखा है। छात्रों के बीच इस मुहिम की सकारात्मक चर्चा से उत्साहित सेव पेपर अभियान के प्रचार का जिम्मा संभालने वाले आशीष मल बताते है कि “शुरुआत में तो हमें लगा कि लोग हमारा मजाक उड़ाएंगे वही दूसरी तरफ एक डर भी था कि कही पुराने पोस्टर जमा करने के क्रम में कुछ परेशानी न उठानी पड़े। लेकिन बाद में जब छात्र समुदाय में हमारे अभियान की जानकारी पहुंची और वे हमारे उदेश्यों से अवगत हुए तो फिर हमें छात्रों से काफी मदद मिलने लगी। कई छात्र-छात्राओं ने इस अभियान से जुड़ने की इच्छा जताई है। पिछले ही दिनों हमने कॉलेज के 4-5 सोसाइटियों को लेकर एक जागरूकता रैली भी की। हमें इस बात की ख़ुशी है कि कॉलेज व कैम्पस के कई शिक्षक भी हमारे इस अभियान को समर्थन दे रहे है।

 

भले ही इस मुहिम से अभी चंद लोग जुड़े हो, कोई बड़ी सफलता इस अभियान को नहीं मिली हो, प्रचार किसी सेलिब्रेटी के सहारे न होकर इन्टरनेट के माध्यम से चल रहा हो, लेकिन पर्यावरण संरक्षण के इस प्रयास को लेकर छात्रों में काफी दिलचस्पी देखने को मिल रही है। शुरूआती दौर में मिली सफलता से अभियान चला रहे छात्र विकास आगे की योजनाओं के बारे में जानकारी देते हुए बताते है कि फेस्ट में कागजों के कम इस्तेमाल को लेकर शुरू हुए इस अभियान के अगले चरण में स्टूडेंट यूनियन चुनाव के दौरान हो रहे कागज की बर्बादी रोकना होगा। छात्र संगठनों से बेवजह पोस्टर-वार के चक्कर में कागज की बर्बादी रोकने का भी हम आग्रह करेंगे। साथ ही छात्रों से भी अपील करेंगे कि चुनाव के दौरान कम से कम पेपर इस्तेमाल करने वाले संगठनों व उम्मीदवारों का समर्थन करें।

 

कागज बचाओ अभियान से छात्र जुड़ते चले जा रहे है और जिस प्रकार की प्रतिबद्धता अभियान चलाने वाले छात्रों में दिखाई देती है उससे यह तो निश्चित है कि अभियान कागजों की बर्बादी रोकने में भले ही तुरंत कामयाबी न हासिल करे लेकिन कागज की बर्बादी से होने वाले नुकसान को समझाने व कागज की कम से कम बर्बादी करने को लेकर छात्र समुदाय को जागृत करने में जरुर सफल होगा।

 

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