कह-मुकरी को काव्य की मुख्यधारा में लाना है

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‘कह मुकरी’ काव्य की एक ऐसी विधा है जिसका अस्तित्व भारतेंदु युग की समाप्ति और द्विवेदी युग के आरम्भ के साथ ही लुप्तप्राय हो गया ! इस विधा पर अमीर खुसरो द्वारा सर्वाधिक काम किया गया! भारतेंदु हरिश्चंद्र ने भी कह-मुकरियों की काफी रचना की ! लेकिन भारतेंदु युग के बाद जब द्विवेदी युग आया तो आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के शास्त्रीयता के प्रति पूर्ण झुकाव के कारण तत्कालीन दौर के तकरीबन सभी रचनाकार शास्त्रीय छंदों की तरफ एकोन्मुख हो गए और ये शास्त्रीय एकोन्मुखता ऐसी बढ़ी कि खुसरों की बेटी और भारतेंदु की प्रेमिका कहलाने वाली ‘कह-मुकरी’ जैसी रसपूर्ण और मनोरंजक काव्य-विधा गुम होती गई ! इसके बाद क्रमशः छायावाद, प्रगतिवाद, प्रयोगवाद और आज यानि नई कविता के दौर आए, पर इनमें से किसी भी दौर के किसी भी रचनाकार का ध्यान कह-मुकरी की तरफ नहीं गया ! आज के इस दौर में जब अतुकांत और मुक्तछंद कविता अपने यौवानोत्कर्ष पर है, कह-मुकरी की बात करना अपने आप में अलग प्रतीत होने वाला विषय है ! पर इस अलग प्रतीत होने वाले विषय पर अगर थोड़ा सा विचार करें तो इसमे काफी कुछ अर्थपूर्ण छिपा है ! अब यहां से अधिक बात को न घुमाते हुए मै सीधे मूल विषय पर आने की कोशिश करता हूं!

वाकया उस दिन का है जब मेरे एक साहित्य-प्रेमी मित्र ने यूं ही साहित्यिक चर्चा के दौरान कह-मुकरी की चर्चा छेड़ दी ! फिर क्या था, खुसरो से लिए भारतेंदु तक कुछ हमने तो कुछ उसने कह-मुकरियां गुनगुनाई ! ‘कह-मुकरी’ को लेकर मन में रचनात्मक ऊर्जा और उत्साह तो सुप्त अवस्था में काफी पहले से था, पर मित्र के साथ इस कह-मुकरी गायन ने उस सोए हुए उत्साह को जागृत कर दिया ! मन हुआ कि कह-मुकरी के प्रचार-प्रसार के लिए अपने स्तर पर कुछ करूं, पर सवाल कई थे कि अकेले क्या हो सकता है ? और ‘नई कविता’ के इस युग में साथ कौन देगा ? शुरुआत कहां से और कैसे हो ? काफी विचार के बाद मेरे दिमाग में सिर्फ एक नाम आया – अविनाश दास ! कारण कि अविनाश की ग़ज़लों के द्वारा मैं उनकी रचना-धर्मिता से अवगत था और मुझे लगा कि अविनाश ही ‘कह-मुकरी’ के विषय में मेरी इस सोच को सही दिशा दे सकते हैं ! मैंने अविनाश भाई को फोन कर इस विषय में बताया ! इस विधा के बारे में जानने के बाद इसमें अविनाश भाई की दिलचस्पी देख मन खुश हो गया ! उन्होंने मुझे बड़े उत्साह से सलाह दिया कि ‘कह-मुकरी’ नाम से फेसबुक पर एक पेज या समूह बनाया जाए और उसके जरिये कह-मुकरी के प्रचार-प्रसार पर काम किया जाए ! मैंने तुरंत ही ‘कह-मुकरी’ नामक समूह बना दिया ! समूह बनने की देरी थी कि अविनाश की कह-मुकरी रचना आरम्भ हो गई और ऐसी आरम्भ हुई कि फिर चलती गई और अब भी जारी है ! धीरे-धीरे समूह में और लोग भी जुड़ने लगे, कह-मुकरियां रची जाने लगीं और उसके प्रचार-प्रसार का आलम ये रहा कि अगले दो दिन में ‘कह-मुकरी’ सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बन गई ! इस बीच कुछ विवाद भी हुआ, जिस कारण अविनाश समूह से अलग हो गए, पर ये सिर्फ उनकी सैद्धांतिक विवशताओं के कारण था ! इससे ‘कह-मुकरी’ के प्रति उनकी रचनाधर्मिता में कोई प्रभाव नहीं पड़ा ! ‘कह-मुकरी’ के प्रचार-प्रसार को लेकर उनका उत्साह और समर्पण अब भी यथावत है और ये कम से कम मेरे लिए तो काफी सुकून और प्रसन्नता का कारण है !

‘कह-मुकरी’ के परिचय और इस वाकये के जिक्र के बाद अब ये आवश्यक है कि कह-मुकरी के स्वरुप और विधान पर भी कुछ बात की जाए ! अगर विचार करें तो ‘कह-मुकरी’ के नाम में ही इसका स्वरुप छिपा है ! ‘कह-मुकरी’ यानि कहके मुकर जाना ! इसे ग्रामीण क्षेत्रों में कही जाने वाली बुझौव्वल (पहेली) का ही तनिक विकसित रूप कह सकते हैं ! इस विषय में बाकी चीजें समझने के लिए जरूरी है कि इसके कुछ उदाहरणों पर गौर किया जाए ! जैसे अमीर खुसरो की ये कुछ कह-मुकरियां हैं –

१.

जब मांगू तब जल भरि लावे

मेरे मन की तपन बुझावे

मन का भारी तन का छोटा

ऐ सखि साजन? ना सखि लोटा!

 

२.

वो आवै तो शादी होय

उस बिन दूजा और न कोय

मीठे लागें वा के बोल

ऐ सखि साजन? ना सखि ढोल!

खुसरो की उपर्युक्त कह-मुकरियों पर गौर करें तो कुछ बातें स्पष्ट हो जाती हैं –

१.     कह-मुकरी दो सखियों के संवाद पर आधारित है ! इसमें चार चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में १६-१६ या १५-१५ मात्राओं का क्रम चलता है ! यथा, पहली ‘कह-मुकरी’ में १६ मात्राओं का क्रम है तो दूसरी में १५ मात्राओं का !

२.     कह-मुकरी के पहले तीन चरणों में एक सखी द्वारा दूसरी सखी को किसी निश्चित व्यक्ति/वस्तु के लक्षण बताए जाते हैं !

३.     आखिरी चरण के आधे में दूसरी सखी बताए लक्षणों के आधार पर एक उत्तर बताते हुए पहली सखी से उत्तर की सत्यता के विषय में प्रश्न करती है ! पर, यहां दूसरी सखी मुकर जाती है और ऊपर बताए लक्षणों से मिलता-जुलता, किन्तु अलग सा उत्तर दे देती है !

४.   माने कि इसमे छेकापह्नुति अलंकार होता है जो कि प्रस्तुत को अस्वीकार अप्रस्तुत को सामने रखता है !

उपर्युक्त बातों के बाद ‘कह-मुकरी’ के विधान के बारे में तो लगभग सभी मुख्य बातें स्पष्ट हो गईं ! इन बातों का ध्यान रखते हुए ‘कह-मुकरी’ रचना की जा सकती है ! अब हम ‘कह-मुकरी’ से जुड़े कुछ अन्य प्रश्नों व संदेहों पर आते है और उनके समाधान का प्रयास करते हैं ! जैसे कि एक प्रश्न ये उठा कि इसके आखिरी चरण में ‘ऐ सखि’ का ही प्रयोग क्यों किया जाता है, कुछ और क्यों नहीं – क्या सिर्फ इसलिए कि खुसरो ने इसका प्रयोग किया था ? इस प्रश्न के उत्तर पर आएं तो जैसा कि ऊपर बताया गया है कि ‘कह-मुकरी’ दो सखियों के बीच की वार्ता पर आधारित है, के अनुसार ‘ऐ सखि’ का प्रयोग उचित ही प्रतीत होता है ! अब प्रश्न ये भी हो सकता है कि कह-मुकरी को दो सखियों के बीच की ही वार्ता क्यों माना जाए – दो मित्रों के बीच की भी तो मान सकते हैं ? इस प्रश्न का उत्तर समझने के लिए हमें ‘कह-मुकरी’ के नाम पर गौर करना होगा ! ‘कह-मुकरी’ में ‘मुकरी’ का प्रयोग हुआ है जो कि स्त्रीलिंग का भाव प्रकट करता है अर्थात कि कोई स्त्री अपनी बात से मुकरी ! अगर ये दो मित्रों के बीच की चर्चा होती तो इसे ‘कह-मुकरा’ कहा जाना चाहिए था ! वैसे, इन सभी तर्कों व तथ्यों के बावजूद इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि खुसरो द्वारा ‘ऐ सखि’ का प्रयोग करना आज इसके प्रयोग के लिए मुख्य कारण है ! पर अगर रचनाकार चाहे तो इसके स्थान पर किसी अन्य शब्द का प्रयोग कर सकता है, बशर्ते कि वो शब्द कथ्यानुसार सटीक बैठता हो !

अविनाश भाई समेत कई मित्रों ने यह भी प्रश्न उठाया था कि ‘कह-मुकरी’ सही नाम है या ‘कह-मुकरिनी’ ? इस प्रश्न पर काफी विचार के बाद मुझे जो समझ आया, वो साझा करता हूँ ! अब अगर पारम्परिक रूप से देखें तो चलन में ‘कह-मुकरी’ ही है, इसके अलावा शब्द-संरचना की दृष्टि से भी ‘मुकरी’, ‘मुकरिनी’ से कहीं बेहतर और स्पष्ट है ! लिहाजा ऐसा कोई कारण नहीं दिखता जिसके आधार पर ‘कह-मुकरी’ को ‘कह-मुकरिनी’ कहा जाए या ‘कह-मुकरिनी’ को सही माना जाए ! अंततः इस लेख के पाठकजनों से सिर्फ इतना ही अनुरोध करता हूँ कि इसे पढ़ें, समझें, कुछ कमी या गलत लगे तो बताएं और सबसे बड़ी बात कि ‘कह-मुकरी’ रचना का प्रयास जरूर करें ! अधिक नहीं तो रोज कम से कम एक से दो ‘कह-मुकरी’ तो रचें ही ! क्योंकि, शास्त्रीयता के आवरण में छुप गई खुसरो की इस थाती को हमें पुनः काव्य की मुख्यधारा में लाना है और लोगों को इसमे छिपी महत्ता और ऊर्जा से अवगत कराना है ! पर ये किसी एक-दो या चार लोगों के द्वारा नहीं हो सकता ! इसके लिए अनिवार्य है कि हाथ से हाथ जुड़ते जाएं और ‘कह-मुकरी’ प्रेमियों की एक ऐसी कड़ी तैयार हो कि फिर जहां देखो वहां ‘कह-मुकरी’ की मौजूदगी मिले !

-पीयूष द्विवेदी भारत-

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