सेक्युलर्टाइटिस के एक विषाणु के पंख झडे 

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मनोज ज्वाला
वर्ष २०१४ में प्रकाशित “ सेक्युलर्टाइटिस- गुजरात से दिल्ली तक ” नामक मेरे उपन्यास की कहानी वर्ष २०१५ के संसदीय चुनाव से ही अपने देश की राजनीति में पूर्णतः घटित होती चली आ रही है । भारतीय राजनीति के तमाम वास्तविक चेहरों अर्थात जीवित नेताओं को पात्र बना कर लिखा गया यह उपन्यास वास्तव में ‘सेक्युलरिज्म’ (धर्मनिरेपेक्षता) की ‘आपरेशनल रिपोर्ट’ है । हास्य-व्यंग्य से सराबोर इसकी कहानी के एक पडाव पर साम्प्रदायिकता फैलाने के आरोप से आरोपित भाजपा (उपन्यास में ‘हिजपा’) का विजय-रथ रोकने के लिए महात्मा जी से चुनाव प्रचार कराने के निमित्त उन्हें सहमत करने हेतु तमाम गैर-भाजपाई दलों के द्वारा ‘धर्मनिरपेक्षता प्रदर्शनी’ लगायी गई है । उस प्रदर्शनी में विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता प्रवक्ता अपनी-अपनी किसिम-किसिम की धर्मनिरपेक्षताओं का प्रदर्शन कर महात्माजी और उनके साथ के दर्शकों-श्रोताओं को रिझाने-फुसलाने की कोशिश कर रहे हैं । सबकी धर्मनिरपेक्षताओं का लब्बोलुआब यही है कि हम सबसे ज्यादा हिन्दू-विरोधी व मुस्लिम-परस्त हैं और हम सबसे ज्यादा भारत-विरोधी व पश्चिम-परस्त हैं ; इस कारण हम सबसे ज्यादा और सबसे अच्छा धर्मनिरपेक्ष हैं । उन सबकी परस्पर-प्रतिस्पद्धी धर्मनिरपेक्षताओं को देखते-सुनते हुए दर्शकों में से कई लोगों का मानसिक तनाव इस कदर बढ जाता है कि वे बेहोश हो कर एक विचित्र बीमारी का शिकार हो जाते हैं , तो महात्माजी इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि यह धर्मनिरपेक्षता वास्तव में घोर साम्प्रदायिकता है । नेताओं के धर्मनिरपेक्षी कारनामों को देख-सुन कर बीमार हुए लोगों को प्रदर्शनी पण्डाल के आपातकालीन स्वास्थ्य शिविर में ले जाने पर वहां चिकित्सकों द्वारा यह बताया जाता है कि ये लोग ‘सेक्युलर्टाइटिस’ नामक बीमारी की चपेट में आ गए हैं । यह सेक्युलर्टाइटिस क्या है , तो बताया जाता है कि यह ऐसी बीमारी है जो ‘एड्स’ से भी ज्यादा खतरनाक है , किन्तु ‘सेक्सुअल’ नहीं ‘पालिटिकल’ है ; जो पालिटिक्स में कायम नेशनलिज्म के विरूद्ध ‘सेक्युलरिज्म’ नामक ‘एण्टी नेशनल’ प्रतिक्रिया करने वाले ‘सेक्युलरिष्ट’ नामक विषैले विषाणुओं के मुख से स्रावित ‘सेक्युलरोसिस’ नामक रसायन के संक्रमण से उत्त्पन होती है । इन दोनों बीमारियों का निदान एक ही है और वह है- जन जागरण अभियान ! फिर तो महात्मा जी देश भर में जन-जागरण का व्यापक अभियान ही छेड देते हैं, जिसके तहत वे राष्ट्रीय एकात्मता महायज्ञ का आयोजन कराते हैं और नरेन्द्र मोदी को उस यज्ञ का प्रधान यजमान बनाते हैं । वर्ष २०१५ में सम्पन्न उस महायज्ञ के महाकुण्ड से अग्नि की उठती धधकती लपटों से राष्ट्र के वातावरण में ऐसा प्रचण्ड ताप उत्त्पन्न होता है कि सेक्युलर्टाइटिस फैलाने वाले तमाम विषैले विषाणु धरती छोड आसमान में उछल-कूद कर अपने प्राण बचाते फिरते हैं , जिसका परिणाम क्या हुआ सो आप सभी जानते हैं ।
उस धर्मनिरपेक्षता-प्रदर्शनी में ‘जदयु’ का भी एक स्टाल लगा है , जिसका प्रवक्ता अपने नेता नीतीश को ‘आसमानी धर्मनिरपेक्षता’ का झण्डाबरदार बताते हुए उनके एक से एक धर्मनिरपेक्षी कारनामों का ब्योरा दर्शकों के समक्ष बडे उत्साह से पेश कर रहा है । मसलन यह कि “ हमारे सुशासन बाबू को नरेन्द्र मोदी की छाया में भी दिखती है साम्प्रदायिकता , हिजपा से गठबन्धन कर बिहार का मुख्यमंत्री रहने के बावजूद इन्होंने हिजपाई (भाजपाई) मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी से दूरी बनाने का कीर्तिमान स्थापित किया हुआ है , क्योंकि मोदी को ये मुस्लिम-विरोधी मानते हैं । एक बार जदयु-भाजपा के कार्यकर्ताओं ने मोदी के साथ की इनकी तस्वीरों से युक्त पोस्टर पटना शहर में जगह-जगह चिपका दिए थे तब उसकी जानकारी मिलते ही इन्होंने उन सारे पोस्टरों को उखडवा कर जलवा-फेंकवा दिया था बेतरह । इसी तरह से एक बार नरेन्द्र मोदी की गुजरात-सरकार ने बिहार के बाढ-पीडितों के सहायतार्थ पांच करोड की राशि इनके मुख्यमंत्री-राहत कोष में भेज दी थी , तो इन्होंने साम्प्रदायिक हाथों के हस्ताक्षर से भेजी हुई उक्त राशि के बैंक-ड्राफ्ट को वापस भेज दिया था । इतना ही नहीं, इन्होंने गुजरात-पुलिस के हाथों एनकाउण्टर में मारी गई जिहादी फिदाइन ईशरत जहां को अपनी बेटी घोषित कर रखा है और इण्डियन मुजाहिद्दिन नामक कुख्यात जिहादी गिरोह के दुर्दांत आतंकी भटकल बापा को बिहार में सारी सुविधायें मुहैय्या कराते रहे हैं जनाब ! इनकी धर्मनिरपेक्षता इतनी पैनी है कि संसदीय चुनाव के दौरान भाजपा ने जब नरेन्द्र मोदी को चुनाव-प्रचार की कमान सौंपते हुए प्रधानमंत्री का उम्मीदवार घोषित कर दिया तब इन्होंने मोदी के विरूद्ध आसमान सिर पर उठा लिया और भाजपा से अपना गठबन्धन ही तोड लिया । और तो और , ये धर्मनिरपेक्षता के ऐसे आसमानी झण्डाबरदार हैं कि मोदी का जिस-जिस से है सम्बन्ध-सरोकार उन सबका ये करते रहे हैं बहिष्कार । मोदी चूंकि इस धरती पर हैं विद्यमान , इस कारण इन्होंने कायम किया है आसमानी धर्मनिरपेक्षता का कीर्तिमान !” आदि-आदि ।
पूरी धर्मनिरपेक्षता-प्रदर्शनी का अवलोकन कर लेने के बाद देश भर के तमाम दर्शकों सहित महात्माजी ने यह निष्कर्ष निकाला कि यह और ऐसी धर्मनिरपेक्षता तो वास्तव में घोर साम्प्रदायिकता है , जो राष्ट्र के लिए घातक है और इसका निदान है- राष्ट्रीय एकात्मता । इसके आगे की कहानी में राष्ट्रीय एकात्मता के प्रति व्यापक जन-जागरण के परिणामस्वरुप संसदीय चुनाव के अप्रत्याशित परिणाम की चर्चा मैं पहले ही कर चुका हूं । चुनाव हार कर धरातल से बेदखल हो यत्र-तत्र उडते-भागते-फिरते सेक्युलरिष्ट नामक विषाणुओं के झुण्ड की प्रतीकात्मक तस्वीर उपन्यास के आवरण पृष्ठ पर भी बडे कायदे से दर्ज है , जिसमें ठूंठदार दाढी वाला वह आसमानी धर्मनिरपेक्ष नेता भी शामिल है ।
बाद में सेक्युलरिष्टों का वह दल भागते-फिरते बिहार में जुट कर भाजपा व नरेन्द्र मोदी के विरूद्ध एक महागठबन्धन कायम कर लेता है , जिसका अगुवा वही धर्मनिरपेक्ष बनता है , जो मुख्यमंत्री की कुर्सी हासिल कर भारत को ‘संघ-मुक्त’ करने की ललकार भरने लगता है तथा इस बावत लालू-राहुल-मुलायम के साथ समय-समय पर आसमानी तीर छोडते रहता है और नरेन्द्र मोदी को देश के प्रधानमंत्री के तौर पर स्वीकार करने से कतराते हुए उन्हें नीचा दिखाने की हर-सम्भव कोशिश करते रहता है । अब वही शख्स उस महागठबन्धन का भविष्य अंधकारमय जान कर अपने अवसरवादी स्वभाववश उससे अलग हो कर फिर से भाजपा का दामन थाम लिया है और इस बार अब नरेन्द्र मोदी की जय-जयकार करने लगा है । महज दो-तीन साल पहले तक नरेन्द्र मोदी की छाया से भी घृणा करने वाला और अभी हाल-फिलहाल तक संघ को देश के लिए घातक बताने वाला वह ‘कुमार’ अब ‘नरेन्द्र मोदी का कोई विकल्प नहीं है’ ऐसा कहते हुए संघ की गोद में स्वयं जा कर बैठ गया है , तो उसे आप क्या कहिएगा ? जोकर ,धूर्त, चतुर या लाचार ? मैं तो उसे इन चारों विशेषणों से युक्त चतुरानन कहना ज्यादा समिचीन समझता हूं ।
किन्तु नरेन्द्र मोदी और भाजपाध्यक्ष अमित शाह की राजनीति को क्या कहा जाए ; ‘कूटनीति’ या ‘टूटनीति’ ? सच तो यह है कि राजनीति और कूटनीति के इन दोनों धुरन्धरों की युगलबन्दी से उत्त्पन्न भाजपाई ‘टूटनीति’ ने ही ‘सेक्युलर्टाइटिस’ के ‘विषाणुओं’ के आसमानी घरौंदे में भी जलती लुआठी घुसा कर उन्हें बिखरा देने में उल्लेखनीय सफलता पायी है । किन्तु सच यह भी है कि नरेन्द्र मोदी के विरूद्ध लगातार पैंतराबाजी करते रहने वाले इस विषाणु के अभी केवल पंख ही झडे हैं , नख-दन्त जडे ही हैं यथावत । और , झडे हुए पंख तो सियासी मौसम के अनुकूल होते ही उग भी आते हैं । इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि २०१९ के आसन्न चुनाव के दौरान सेक्युलरिष्ट नीतीश फिर से अपनी आसमानी धर्मनिरपेक्षता गढने में लग जाएं । क्योंकि सेक्युलरिष्टों का चरित्र ही ऐसा रहा है । मालूम हो कि नीतीश के ही संगी-साथी रहे रामविलास पासवान नामक सेक्युलरिस्ट के पंख कई बार झडते-उगते रहे हैं । कभी भाजपा की बाजपेयी सरकार में साथ रहे पासवान अगले ही चुनाव में ‘बिहार का मुख्यमंत्री हो मुसलमान’ का नारा लगाते हुए कांग्रेसी गठबन्धन के साथ हाथ मिला कर सत्ता की मलाई चाभते रहे और भाजपा का जब ‘कांग्रेस-मुक्त भारत’ अभियान सफलता की ओर बढता दिखने लगा , तो अपने पंख झाड कर इस बार मोदी जी का पिण्ड पकड कर फिर भाजपा के साथ सत्ता-सुख भोग रहे हैं । ऐसे में समझा जा सकता है कि जदयु के नीतीश का न कोई विचार-परिवर्तन हुआ है हृदय-परिवर्तन ; बल्कि लालू-राहुल-मुलायम की नैया को डूबते देख सेक्युलर्टाइटिस के इस विषाणु का महज रुख-परिवर्तन हुआ है , रुख-परिवर्तन ।

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