
हम अपनी ऐतिहासिक भूलों से कुछ सीखना नही चाहते। 1947-48 में हम कश्मीर से पाकिस्तानी सेना व कबाइलियों को खदेड़ने के स्थान पर संयुक्त राष्ट्र संघ में कश्मीर समस्या को सुलझाने के लिए चले गये थे। जम्मू-कश्मीर राज्य का स्वतंत्र भारत में विलय पत्र के अनुसार पूर्ण विलय के उपरांत भी उसको विवादित बनाने में संयुक्त राष्ट्र संघ के हस्तक्षेप के दोषी हमारे तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व.जवाहरलाल नेहरू ही थे। परिणामस्वरूप आज 70 वर्ष उपरांत भी हमारी देवतुल्य भूमि के 75114 वर्ग किलोमीटर (गुलाम कश्मीर या पी.ओ.के.) पर पाकिस्तान अवैध रूप से काबिज है और जम्मू-कश्मीर की जनता अलगाववाद व आतंकवाद के कारण विस्फोटक स्थिति से जूझने को विवश है।
दशकों से कश्मीर समस्या को केंद्र बना कर पाकिस्तान
बार-बार हमको जख्म देता आ रहा है। हजार बार युद्ध की धमकी देने वाले पाकिस्तान के जिहादी संकल्पों को अवश्य समझना होगा। उसी संदर्भ में पाक स्थित आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद का सरगना मौलाना मसूद अजहर हमारे लिए लगभग 25 वर्षो से बहुत बड़ी समस्या बना हुआ है। मुख्यतः जम्मू-कश्मीर में व पंजाब सहित भारत के विभिन्न क्षेत्रों में मसूद अजहर अपने प्रशिक्षित आतंकवादियों व आत्मघाती मानव बम (फिदायीन) द्वारा सैकड़ों-हज़ारों निर्दोषों का रक्त बहाने के अतिरिक्त अरबों रूपयों की भारतीय सम्पत्ति को नष्ट कर चुका है। इसी परिपेक्ष्य में देश का एक वर्ग ‘कंधार प्लेन हाईजैक कांड 1999-2000’ में इस खूंखार आतंकी मौलाना मसूद व दो अन्य आतंकियों को भारत की जेलों से रिहा करके कंधार (अफगानिस्तान) में जाकर छोड़ने को बड़ी गलती मानता है।
इसके उचित समाधान के लिए भारत अपनी रणनीति के अनुसार मसूद अजहर को पिछले लगभग 10 वर्षों से अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित कराके उसको व उसके संगठन पर पूर्णतः प्रतिबंध लगवाना चाहता है। परंतु चीन अपने स्वार्थों के कारण हमारे लिए बाधा बना हुआ है। तीन बार वर्ष 2009, 2016 व 2017 में हम पहले ही चीन के कारण यू.एन.ओ. में असफल हो चुके है। लेकिन हम पुलवामा कांड के बाद अब चौथी बार भी चीन के कारण ही ऐसा करवाने में फिर असफल हुए। चीन ने कुछ तकनीकी आधार पर इस बार अपने वीटो पावर का प्रयोग किया। जबकि इसका मुख्य कारण पाकिस्तान में ग्वादर बंदरगाह का पीओके (गुलाम कश्मीर) से निकलने वाले मार्ग पर चीन की चल रही अरबों-खरबों की योजनाओं ही होनी चाहिये। इस क्षेत्र में जैशे-ए-मोहम्मद के अधिकांश आतंकवादियों की सक्रियता होने के कारण चीन के लगभग दस हज़ार से अधिक कर्मचारियों की सुरक्षा की चिंता भी तो चीन की प्राथमिकता है। आज देश का प्रबुद्ध समाज स्व.नेहरू जी की अदूरदर्शिता पर भी प्रश्नचिन्ह लगा कर कह रहा है कि चीन को यू.एन.ओ. की सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य क्यों बनवाया था ? क्या चीन हमारे त्याग व उदारता को भूल गया ?
विशेष चिंतन का विषय यह है कि प्राचीन काल में चीन हमारी ज्ञानवान संस्कृति से प्रभावित होकर बड़े स्तर पर हमारे आचार्यों से अधिक ज्ञान पाने के लिए उन्हें आमंत्रित करता था। वहां के राजा हमारे आचार्यों को विशेष आतिथ्य देते थे। इतिहास से यह भी ज्ञात होता है कि एक बार एक अत्यधिक तेजस्वी आचार्य को चीन के सम्राट ने अपनी सेना भेज कर भी उठवाया था। परंतु उन महान आचार्य का सम्मान करते हुए उनके माध्यम से भारतीय संस्कृति और ज्ञान का चीन में व्यापक प्रसार व प्रचार हुआ था। आज उसी संस्कृति के उद्गम क्षेत्र भारत को जिहादियों के अत्याचारों द्वारा पददलित होते हुए चीन क्यों देखना चाहता है? जबकि वह स्वयं तो इस्लामिक आतंकवादियों से सुरक्षित रहना चाहता है फिर भी वह भारत की इनसे मुक्ति में बाधक बन रहा है।
ऐसे में क्या हमको अपने सामर्थ्य , बल और पराक्रम पर भरोसा करना अनुचित होगा ? क्या हम अमरीका द्वारा ऐवटाबाद (पाक) में मारे गए ओसामा विन लादेन के समान दाऊद इब्राहिम, अजहर मसूद व हाफिज सईद आदि मोस्ट वांटेड आतंकियों को नहीं मार सकते ? ध्यान रहे एक बार हमारे पूर्व सेना प्रमुख जनरल वी. के. सिंह (जो आज केंद्रीय सरकार में राज्य मंत्री भी है) ने कहा था कि “हमारी सेनायें ऐवटाबाद जैसी कार्यवाही करने में सक्षम है”। तो अब अवसर है कि “चीन की वीटो पावर” को चुनौती देते हुए हमें अपने पराक्रम का परिचय देना होगा। इसके लिए एक विशेष स्ट्राइक द्वारा अमरीकी रणनीति के समान मसूद अजहर का वध करके उसको समुद्र में डुबो देना चाहिये।
14 फरवरी को पुलवामा (जम्मू-कश्मीर) में सी.आर.पी.एफ. के काफिले पर फिदायीन हमले में लगभग 40 सैनिकों के बलिदान से भारतीय जनमानस का धैर्य टूट गया था। देशवासियों के आक्रोश को शांत करने के लिए केंद्र सरकार को आक्रामक होना ही था। अतः बालाकोट (पाकिस्तान) में स्थित जैश-ए-मोहम्मद के एक बड़े प्रशिक्षण केंद्र पर वायुसेना द्वारा 26 फरवरी को शक्तिशाली एयर स्ट्राइक करके भारत ने आक्रामक रूप दिखाते हुए अपने पराक्रम का परिचय दिया। इससे भयभीत होकर आज पाकिस्तान भारी दबाव में है। साथ ही इस्लामिक आतंकवाद के विरोध में अंतरराष्ट्रीय मत हमारे पक्ष में है। इसलिये वर्तमान अनुकूल परिस्थिति में हम पाकिस्तान पर और अधिक दबाव डालने की स्थिति में है। फिर भी हमने अपनी स्वयं की सामर्थ्य को कम आंका और संयुक्त राष्ट्र संघ की ओर बढ़ें। जहां चीन की कुटिलता में फंस गए और मसूद अजहर पर अंकुश लगाने में असफल हुए। हमें विचार करना होगा कि क्या हम अपने ही सामर्थ्य से पाकिस्तान पर दबाव बना कर ऐसे आतंकियों पर नकेल नही डाल सकते ?
आज देश में चारों ओर मसूद अजहर के कारण चीन से व्यापार आदि संबंधों को तोड़ने की मांग उठ रही है। जबकि हमें सर्वप्रथम पाकिस्तान से सारे संबंध तोड़ कर उसे “आतंकी राष्ट्र” घोषित करना चाहिये। यह दुःखद है कि अभी हमारे जख्म भरें भी नही है कि हम “करतारपुर कॉरिडोर” बनाने की शीघ्रता में पाकिस्तान से वार्ता कर रहे हैं। जबकि हमको पाकिस्तान को आतंकी देश घोषित करना अत्यंत आवश्यक है। पाक व भारत के मध्य रेल व रोड मार्गों को बंद करने के साथ साथ सिंधु जल संधि को अपने पक्ष में करना भी पाकिस्तान पर दबाव बनाएगा। कुछ अन्य संबंध हम पहले ही तोड़ चुके हैं। इन दबावों के कारण पाकिस्तान सम्भवतः मसूद अजहर पर कोई कठोर कार्यवाही करने का विचार कर सकता है? ध्यान रहे कि मौलाना मसूद अजहर पाकिस्तान का पाला हुआ सांप है चीन का नही। इसलिये चीन के स्थान पर पाकिस्तान का पूर्ण बहिष्कार करना अधिक कूटनीतिज्ञ होगा।
वर्तमान स्थिति में यह भी विचार करना आवश्यक होगा कि जिहादियों का विशेष लक्ष्य “गज़वा-ए-हिन्द” के लिए भारत की धरती को रक्तरंजित करना है। इसलिए इसका पूर्ण समाधान करना ही होगा। हमारे पास उच्च प्रशिक्षित सुरक्षाबलों व गुप्तचर संस्थाओं का बड़ा वर्ग शासकीय आदेश के प्रति बंधा हुआ है। ऐसे में विशेष रणनीति के साथ अपने सामर्थ्य का सदुपयोग करते हुए आतंकियों के नेटवर्क, स्लीपिंग सेलों व अन्य अडडों पर बार बार स्ट्राइक करके उनको नेस्तानाबूद करने से पाकिस्तान स्थित मसूद व हाफिज जैसे आतंकी सरगनाओं की भी कमर टूटेगी। पाक-परस्त संकीर्ण राजनीति करने वाले कुछ स्थानीय तत्व अपने आप देशद्रोहिता की आत्मग्लानि से पीड़ित हो जाएंगे। आज वैसे भी सत्ताहीनता की पीड़ा से जूझने वाले नेताओं की राष्ट्रभक्ति के प्रति राष्ट्रवादी समाज में अनेक संदेह उभर रहे है। इसीलिए भारतीय जनमानस आक्रोश और जोश के साथ शासन व प्रशासन से कंधे से कंधा मिला कर चलने को तैयार है और इन विपरीत परिस्थितियों में उसने किसी वैध आह्वान पर आतंकियों पर टूटने का मन बना लिया है।
अतः आचार्य चाणक्य के शतकों पुराने संदेश को समझ कर उसे चरितार्थ करने का आज अवसर है। उन्होनें कहा था कि “संसार में कोई किसी को जीने नही देता, प्रत्येक व्यक्ति व राष्ट्र अपने ही बल व पराक्रम से जीता है”। अब देश को आत्मरक्षार्थ अपने बल और पराक्रम का परिचय देना होगा।
विनोद कुमार सर्वोदय