स्‍वास्‍थ्‍य-योग

ऐलोपैथ पर आयुर्वेद के गंभीर दुष्प्रभाव

पतंजलि द्वारा कोरोना के ईलाज सम्बन्धी  आयुर्वेद दवा पर खूब घमासान मचा,अब वास्तव में तथ्य क्या हैं और भ्रम क्या है ?आम लोगो ने, खास कर गरीब मध्यम वर्ग को इस दवा से बेहद उम्मीद थी,क्योंकि पतंजलि का दावा उपचार की 100% गारेंटी ले रहा था, यह बात स्वाभाविक रूप से वास्तविकता से परे है, क्यों कि दुनियाँ में कुछ भी 100% नहीं होता, कुछ भी सम्पूर्ण नहीं हो सकता क्योंकि 100% सिद्धान्त में हो सकता है व्यवहार में नहीं ।
            खैर इस बात में कोई शक नही कि जबकि देश में कोरोना मरीजों की कुल संख्यां अबतक 10 लाख के पार पहुँच चुकी है और यह संक्रमण नित्य नये आयाम और कीर्तिमान बना रहा तो सभी की नजर उस उपचार की ओर आशान्वित हो जाती है जो कि हर आदमी की पहुँच के दायरे में हो । हमें यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि यह “चीनी वायरस” देश में जैसे भी आया हो उसने सबसे बड़ा आघात निम्न वर्ग और मध्यम वर्ग पर किया है, खासकर गरीब,मजदूर, किसान और अन्य कामगारों के लिये रोजी रोटी जुटाना भी वर्तमान परिवेश में एक चुनौती बन गई है । 
अब ऐसे में घर में रहें या काम पर जायें इस दुविधा ने सभी को मानसिक पीड़ा में डाल दिया है ।
अब बात तथाकथित अभिजात्य वर्ग की करें तो इनकी अलग पीड़ा दिखती है, इसमें से अधिकांश लोग इसलिए परेशान हैं कि उन्हें घर में रहना पड़ रहा और सम्भवतः इस मौसम में वह विदेश घूमने नहीं जा पा रहे या फिर चीनी सैनिकों के आतंकी कृत्य के कारण वह बर्फीली पहाड़ियों पर मौज मस्ती नहीं कर पा रहे, कुछ सरकारी पदासीन तथाकथित लोग ऐसे भी हैं जिन्हें मजबूरन सरकारी कोटा पूरा करने के लिये आफिस, अदालत या मंत्रालय,  जहाँ भी वे कार्यरत हैं, न चाहते हुए भी जाना पड़ रहा है । सरकारी नौकरी अथवा नौकरशाही को मजबूरी में ड्यूटी बजानी ही पड़ रही है,और फिर मौसम कैसा भी हो उन्हें अपना कर्म यद्यपि बाहर सभी को किसी न किसी कारण वश अब निकलना पड़ ही रहा पर कुलीन वर्ग को यह सन्तोष है कि बीमारी का प्रभाव कुपोषित, शारीरिक रूप से कमजोर या जिनकी प्रतिरोधक क्षमता बेहतर नहीं उन्ही पर हो रहा फिर भी अपवाद स्वरूप कोई सत्येंद्र जैन अथवा पात्रा जैसे लोग संक्रमित हो भी जाते हैं तो डॉक्टर्स को सभी का इलाज छोड़ कर इनका इलाज पहले करना पड़ेगा, वह भी वहाँ नहीं जहाँ यह आम लोगों को एक के ऊपर एक ठूसते जा रहे बल्कि 5* सुविधा वाले बड़े-बड़े अस्पाल महानगरों में इनके लिये बिस्तर सजाये बैठें हैं कि “हुजूर एक बार सेवा का अवसर तो दीजिये” पर इतना ही बड़ा असंतोष इन तथाकथित लोगों को अभिजात्य बनाने वाली जनता झेल रही है । सत्ययता के और निकट जाऊँ तो सिर्फ असंतोष नहीं सरकारी अस्पतालों की बदहाली, जीवन रक्षक उपकरणों की कमी यहाँ तक कि कुछ की कोरोना रिपोर्ट उसके मृत्यु के पश्चात सप्ताह दो सप्ताह के बाद मिल रहे हैं । 
अब यहां यह कोरोना, लचर चिकित्सा व्यवस्था, मानसिक अवसाद साथ में, मानवाधिकार आयोग की परिभाषा की परिधि में देखें तो मृत व्यक्ति अर्थात लाश के साथ बिस्तर पर पड़े रहने की मानसिक यातना भी इन्हें झेलनी पड़ रही है।

लिए इन समस्याओं से इन्हें खुद लड़ना है तो इनपर अधिक टिप्पड़ी कुव्यस्था की व्याख्या करते-करते मेरी कलम मर्यादा की दीवार न तोड़ दे इस लिये इस यथावत स्थिति से आगे बढ़ कर कुछ और विन्दुओं पर चर्चा करते हैं जो कि लेख का मुख्य केंद्रविंदु भी है ।

ऐलोपैथ दवायें-दावा और हकीकत

जैसा कि आप सभी जानते हैं कि अबतक कोरोना की दवा ढूँढने में विज्ञान को नाको चने चबाने पड़ रहे हैं और इस वायरस के साथ हमें जीने का निर्देश भी दिये जा रहे उन मामूली सी सावधानियों का अधिकतम सा प्रचार कर के । मैं इस बात से इनकार नहीं कर रहा कि इस लड़ाई में मास्क और सेनेटाइजर या फिर हर आधे घण्टे पर हाथ धोते रहना और अपना काम भी करते रहना, साथ में सामाजिक दूरी भी बनाये रखने का अनोखा प्रयोग कर के आप स्वयं को बहुत हद तक सुरक्षित रख सकते हैं पर इसके सहारे कोरोना की जंग बिल्कुल नहीं लड़ सकते । यह लड़ाई लड़ने और जीतने के लिए हमें एक कारगर दवा और वैक्सीन की जरूरत है जिसपर दुनियाँ भर के वैज्ञानिक प्रतिस्पर्धा और युद्ध स्तर पर कार्य कर रहे है, इस दिशा में अबतक की प्रगति की बात करें तो ऐलोपैथ के अबतक के आजमाये गये सभी हथियार लगभग नाकाफी रहे हैं । फिर हम सबसे पहले चर्चा में आने वाली दवा हाइड्रोक्लोरोक्वीन (HCQ) की बात करें तो इस दवा के गम्भीर दुष्प्रभाव जैसे हृदय घात (हार्ट अटैक) को खुला आमंत्रण दे रहे थे और बहुत से कोरोना पोजटिव मरीज हृदय घात से अपनी जान भी गवाँ चुके हैं तो इसको देखते हुए ( WHO ) ने इस दवा के कोरोना मरीजो पर प्रयोग को तत्काल प्रभाव से रोक दिया । किन्तु इसका उत्पादन किया भी गया और इस दवा को भारत से बहुत से राष्ट्राध्यक्षों ने माँगा भी जबकि यह कोई नई दवा नहीं थी इसके प्रभाव मलेरिया और गठिया के मरीजों में अच्छे देखे गये थे पर कोरोना मरीज पर इस दवा के फायदे से अधिक दुष्प्रभाव की चर्चा होने के बाद भी बहुत से देशों ने भारत पर दबाव बना कर इसे अपने देश में मंगाया अब इसके पीछे क्या वजह थी मैं इस बात से बिल्कुल अनभिज्ञ और आश्चर्यचकित भी हूँ ।
खैर इसके पश्चाचात रेमड़ेसिविर नाम की दवा का भी बड़ी मात्रा में उत्पादन किया गया और मरीजो पर इसके प्रभाव को देखा गया, शोध किया गया । इस दवा से दुनिया भर ने इतनी उम्मीद बाधी थी कि यह दवा अपने पहले चरण में ही विफल हो गई और WHO ने इस पर भी अंततः रोक लगा दी ।
अब एक अन्य दवा “फैविपिरावीर” को शोध के रूप में उसी उम्मीद के साथ लांच किया गया है जैसी उम्मीद दुनिया भर के बड़े-बड़े श्वेत वस्त्र धारण करने वाले प्रोफेसनल लोगों ने पहले बाधी थी । इस दवा का कोर्स 14 दिन का बताया जा रहा है और इसकी पहली डोज 1800MG की 2 टाइम सुबह शाम की गोली से शुरू होती है अर्थात लगभग 12-14 घण्टे के अंतराल पर 3600MG अब वह व्यक्ति जो इसकी इतनी बड़ी डोज की मादकता से बच जाये आप उसे चिरंजीवी घोसित कर सकते हैं फिलहाल कार्य प्रगति पर है ।

होम्योपैथ-दावा हकीकत

ऐसा बिल्कुल भी नहीं कि आयुर्वेद और होम्योपैथिक दवाओं के प्रयोग से उपरोक्त परिणामो के पश्चात किसी को कोई ऐतराज होना चाहिए क्योंकि यह सर्वविदित है कि यह दवायें प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति पर आधारित हैं और इसके कोई भी साइडइफेक्ट नहीं होते किन्तु ऐसा हो सकता है कि ऐलोपैथ के व्यापार पर चिकित्सा की इस पद्धति के उपचार का दुष्प्रभाव पड़े ? कारण यह है कि यह दवायें बेहद सस्ती और कारगर भी होती हैं । कोरोना संक्रमण के भारत में मामले शुरू होते ही आयुष मंत्रालय ने आरसैनिकम एलबम-30 का प्रयोग करने की सलाह सामान्य रूप से सभी को दी थी जो कि व्यक्ति की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है और उसे वायरल इन्फ़ेक्सन के साथ-साथ अन्य बीमारियों से भी बचाव करता है । यह 70-80 रूपये में असानी से मिल जाता है और इसके 1/2 औंश दवा का उपयोग आप पूरे परिवार समेत दो से तीन महीने या चिकित्सक के निर्देशानुसार और लम्बे समय तक भी कर सकते हैं क्योंकि जैसा पहले कहा गया कि इसका कोई साइडइफेक्ट नहीं होते यद्यपि कुछ चीजों से परहेज़ जरूरी होते हैं ।
इसी क्रम में मुम्बई के होम्योपैथ के एक डाक्टर ने लगभग 100 अनुभवी डाक्टरों समेत CK1 और CK2 नाम की दवा विकसित की जिसे लगभग 1 लाख फ्रंट लाइन वैरियर्स को दिया गया और इसके नतीजे आशाजनक थे । इनके सभी शोध आयुष मंत्रालय की निगरानी में किये गए जैसा कि डाक्टरों ने बार-बार दावा किया किन्तु लाख प्रयास के पश्चात 1 माह बीत जाने पर भी इस संदर्भ में अन्य जानकारी नहीं मिल सकी, अब ऐसा क्यों है इस सम्बंध में भी मुझे कोई तथ्य नहीं मिले ।

कोरोनिल-पतंजलि आयुर्वेद

लगभग 2000 वर्ष पुरानी भारत के योग को विश्व जगत के समक्ष दृढ़ता और लगन के साथ रखने वाले स्वामी रामदेव, आप कह सकते हैं कि इन्होंने योग और आयुर्वेद को एक नई पहचान दी । इनके पास आयुर्वेद पर शोध करने वाले बहुत से डॉक्टर वैज्ञानिक हैं जो आयुर्वेद को पुनः जीवित करने के प्रयास में लगे हैं, इनके द्वारा हाल में ही अश्वगन्धा, मुलैठी, तुलसी, आदि पारम्परिक रूप से देश में उपयोग में लाई जाने वाली वस्तुओ से बनाई गई दवा को लांच किया गया किन्तु अनलॉक-1 के समय जिन चीजों के प्रयोग का डाक्टरो ने घूम धूम कर प्रयोग करने की सलाह दी, उसी आधार पर बनी पतंजलि आयुर्वेद की दवा बनाने पर और देश के समक्ष 100% उपचार सम्भव है का दावा करने और प्रेस कांफ्रेंस करने का पुरस्कार बाबा को सम्बन्धित मंत्रालय द्वारा नोटिश जारी कर के और एक विशेष राज्य में FIR दर्ज कर के दिया गया, जबकि यह दवा भी बेहद कम कीमत पर उपलब्ध होती और जरूरत मंदों को मुफ्त में दिए जाने की घोषणा भी बाबा रामदेव द्वारा किया गया । आप को बताते चले बहुत सी बीमारियों के लिए पतंजलि आयुर्वेद ने आयुर्वेदिक दवा बनाई है और लोगो को नीम, एलोवेरा के गुणों को समझाया है । अब कन्फ्यूजन यह है कि हम कोरोना का उपचार चाहते हैं या व्यापार यह निर्णय आप बन्धुओ को करना है ।