शब्द वृक्ष चार: डॉ. मधुसूदन

13
399

एक: बंध या Bond, बांध या Bund, बंधन या bonding

बंध का अंग्रेज़ी Bond , या बांध का अंग्रेज़ी Bund, और वैसे ही, बंधन का अंग्रेज़ी bonding ऐसे शब्दों को देखकर आप को सहज प्रश्न हो सकता है, कि कहीं इन शब्दों का मूल समान तो नहीं?

तो इसी उत्सुकता और कुतूहल से, इस लेखक ने कुछ ढूंढने का प्रयास किया।जो कुछ सहज में मिला उसे आप पाठकों के समक्ष रखने में हर्ष अनुभव करता हूँ।

दो : तटस्थ मित्र

कुछ मित्र अब भी है, तटस्थ है। यह हमारे दीर्घ कालीन दासता का परिणाम है, ऐसा मैं मानता हूँ।

कुछ को प्रश्न है, कि ऐसा किस ने लिखा है? किन्तु लगता है, कि धीरे धीरे उनका मत भी बदल रहा होगा। मानस शास्त्र कहता है, कि कभी कभी स्वीकार करने में स्वाभिमान, अहंकार या पूर्व प्राप्त ग्यान भी पूर्वाग्रह का रूप ले लेता है। और बाधा बन जाता है।

पर ऐसे विरोधी विचारों की, दूरभाष (फोन) संख्या धीरे धीरे घट ही रही हैं। वैसे उनका विश्वास सम्पादन करने के उद्देश्य से, इस लेख में कुछ गहराई से अंग्रेज़ी शब्दों को ढूंढने का प्रयास किया है। वैसे, एक और व्यक्ति ने मुझे सहायता दी है, जो चाहती है, कि उनका नाम का उल्लेख ना किया जाए। मैं उन की इच्छा का सम्मान करता हूँ।

तीन: निरूक्त प्रतिपादित, यास्क के सिद्धान्त

मुझे तो अचरज है, कि जिन तीन निरूक्त प्रतिपादित, यास्क के सिद्धान्तों का उपयोग इन लेखों में किया जा रहा है; वैसा तो कोई भी कर सकता था। एक प्रश्न के उत्तर में कहता हूँ, कि, इन लेखों में लिखी गयी सामग्री, मैं ने कहीं और पढी नहीं है। पारिवारिक रिश्तों के और कुछ स्फुट शब्दों को पढा हुआ था। पर, वैसे भाषा विज्ञान मेरा क्षेत्र नहीं है। अन्यथा आप मुझे दर्शा सकते हैं, मैं आपका ऋणी रहूंगा।

चार: गौरव बोध

दूसरा आश्चर्य, मुझे ऐसी प्रेरणा एक सांस्कृतिक गौरव बोध से भारित कर देती है, कि हमारे यास्क मुनि का निरूक्त सारे संसार का पहला ग्रंथ है, जो व्युत्पत्ति शास्त्र पर आज भी उपलब्ध है। और पढता हूँ, कि यास्क मुनि भी उनके पहले लिख गए अन्य विद्वानों के नाम संदर्भ सहित देते हैं। उनके पहले भी इस विषय पर लिखा गया होगा, ऐसा मानने के लिए प्रमाण इन संदर्भों से प्राप्त होते हैं।

पांच :यास्क मुनि के सिद्धान्तों का सार

यास्क मुनि कहते हैं, कि, लगभग समान अर्थ छटाएं; लगभग, समान स्तर के अर्थ; और स्थूल रूप से उच्चारण में समानता; के आधार पर निर्वचन किया जाना चाहिए। उन के तीन सिद्धान्तों को अन्त के परिशिष्ट में हिन्दी में गहराई से जानने की इच्छा रखने वाले पाठकों को ध्यान में रखकर उद्‌धृत किया है। इन सिद्धान्तों के आधार पर शब्द वृक्ष रचे जा रहे हैं। इस आलेख में अंग्रेज़ी पर कुछ विशेष ध्यान दिया है, हिन्दी में कुछ कम।

छः आज का शब्द वृक्ष

आजका शब्द वृक्ष धातु: बंध्‌ –बध्नाति पर खडा करते हैं।

अंग्रेज़ी में यह बंध जब अन्य भाषाओं से यात्रा करते करते पहूंचा होगा, तो अनुमान के आधार पर कहा जा सकता है, यह बंध, कहीं पर बंद बन गया होगा, कहीं बण्ड बना होगा; और अंग्रेज़ी में पहुंचते पहुंचते यह Band (बॅण्ड), Bond (बॉण्ड) और Bind (बाइण्ड) बन गया होगा। अंग्रेज़ी या रोमन लिपि की सीमित उच्चारण क्षमता भी इसका कारण हो सकती है।

सातः धातु: बंध्‌ –बध्नाति के अर्थ स्तर:

धातु के अर्थ स्तर है,(१) बांधना, कसना, जकडना (२)दबोचना, पकडना, जेल में डालना, जाल में फसाना, बंदी बनाना, (३) शृंखला में बांधना, बेडी में जकडना, (४) रोकना, ठहराना, दमन करना, (५)पहनना, धारण करना, (६) आंख आदि आकृष्ट करना, गिरफ्तार करना (७) स्थिर करना, जमाना, निदेशित करना, डालना, (८) बाल आदि बांधना, मिलाकर जकडना (९) निर्माण करना, संरचन करना, रूप देना, व्यवस्थित करना (१०) एकत्र करना,रचना करना (११) बनाना, पैदा करना, जन्म देना (१२) रखना, अधिकार में करना, ग्रहण करना, संजोकर रखना।

आठ : वृक्ष की शाखाएं।

आद्यांश (उपसर्ग) आ, अनु, उद्‌, नि, निस्‌, परि, प्रति, सम्‌ –इत्यादि के आधारपर आप निम्न शाखाएं देख सकते हैं।

सं+ बंध से –> संबंध से –>बना संबंधी। जिसका तद्भव प्राकृत रूप है –>समधी और उसीसे बना सम्‌धन

नि+बंध से —>निबंध से प्रचलित शब्द–> निबंधक

उसी प्रकार से —> परि+ बंध—->परिबंध, वैसे ही प्रतिबंध, आबंध, अनुबंध, उद्‌बंध इत्यादि।

बंध को न प्रत्यय जोड के बनता है, बंधन= अर्थ है, जिसके कारण बंधा जाता है, वह कारण।

उसी से आगे बनते हैं, प्रेमबंधन, धर्मबंधन, कर्मबंधन, शास्त्रबंधन, स्नेहबंधन,

फिर बंध को क प्रत्यय जोडके बनता है–> बंधक। अर्थ हुआ बांधनेवाला। आप आगे धर्मबंधक, कर्म बंधक….इत्यादि

फिर भाई के अर्थ में जो जुडा होता है, वह —>बंधु, से—> बंधुत्व, से –>बना विश्व बंधुत्व,–> बंधुहीन इत्यादि।

फिर बंध का ही दूसरा रूप है (शायद प्राकृत) बंद, इस बंद से—> ही बनता है, बंदा, और बंदगी।

और वैसे ही –> बांधना, –>बांध,–> बंधवाना, —रक्षाबंधन = राखी बंधवाना हुआ।

उपसर्ग ===>प्र +बंध—> प्रबंध के अंतमें न लगाकर बनता है,—-> प्रबंधन जो Management के लिए उचित अर्थ रखता है। फिर प्रबंध को क लगाकर बनता है, —->प्रबंधक (प्रबंध करनेवाला) भी उसी से निकलता है।

उपसर्ग ===> नि+बंध—-> निबंध के अंतमें न लगाकर बनता है –> निबंधन ( अर्थ हुआ निबंध लिखने की क्रिया), क लगाकर बनेगा निबंधक (निबंध लिखनेवाला या उसका प्रबंध करने वाला),

उपसर्ग ===>प्रति+बंध —> प्रतिबंध (जिसमें आपको या आपके कार्यको जैसे बांध दिया जाता हो, ऐसा अर्थ होता है।) —>इसीका प्राकृत रूप है, –>पाबंदी, अंग्रेज़ी Ban भी Band (या बंध धातु का ही) भाव दर्शाता है। उपसर्ग===>अनु+बंध —-> अनुबंध , संबंध,

प्रत्यय===>बद्ध —>सूत्रबद्ध, (किसी नियम के अंतर्गत एक सूत्र में बंधे हुए), इस बद्ध को आप क्रमबद्ध (अनु क्रम में बंधे हुए), आबद्ध, प्रतिबद्ध, संबद्ध, निबद्ध, अनुबद्ध,

प्रत्यय से ===>संबधित, निबंधित, प्रबंधित, प्रतिबंधित,

वैसे ही: ===>बंधनीय, बंध्य, बाध्य ऐसे आपको असंख्य शब्द मिल जाएंगे।

नौ : शब्द वृक्षकी अंग्रेज़ी शाखा:

हमारे शब्द वृक्षकी एक जटा जो युरप में पहुंची उसका वहीं बीज बन कर विस्तार हुआ। इस वृक्ष के निम्न ६३ शब्द शोध कर पाया। और भी होंगे। निम्न शब्द देखिए।

अंग्रेज़ी में बंध का Bond. Bind, Band इत्यादि रोमन उच्चारण की सीमा के कारण हो जाता है।

(१) bond=ऋण पत्र (जिस से व्यक्ति बंध जाता है), किसी समूह को बांध कर रखनेवाली शक्ति। बन्धन,

(२) bondage= कारावास, बंध, विवशता।

(३) bonded labour = बंधुआ श्रमिक

(४) bonding= बंधन, जुडाई।

(५) bondmaid= गुलाम बंधी हुयी स्त्री, (यह पश्चिम कृष्ण वर्णी अफ़्रिकन के लिए प्रायोजित)

(६) bondman = गुलाम बंधा हुआ पुरूष (यह पश्चिम कृष्ण वर्णी अफ़्रिकन के लिए प्रायोजित)

(७) vagabond= बिना-बंध(निर्बंध) घुमक्कड

(८) bund=नदी का बंध (जो पानी को बांधकर रोकता है)

(९) bind= बांधना

(१०) binder= बांधने वाला जैसे,

(११) bookbinder= पुस्तकों को बांधकर आवरण चढाने वाला।

(१२) armband =हाथ पर बंधी पट्टी।

(१३) band= आपस में (अनुशासन से)बंधा हुआ समूह। वाध्य वृन्द

(१४) bandleader= ऐसे वाद्य वृन्द (समूह) का नेता

(१५) bandmaster= वाद्य वृन्दका संगीत निर्देशक

(१६) bandage= घाव पर बंधी पट्टी।

(१७) bandaid= औषधि का लेप लगी हुयी पतली पट्टी।

(१८) bandanna= रंगी हुयी कपडे की पट्टी।

(१९) abandon=सुरक्षा से (बंधन)मुक्त करना।

(२०) abandoner= ऐसे मुक्त करनेवाला।

(२१) hairband= बाल बांधने की पट्टी।

(२२) headband= सर पर बंधी पट्टी।

(२३) husband = पति (विवाह के समय, पति पत्नी के हस्त मिलन से, हाथ बंधने के कारण)

—हस्तबंध, अर्थात जिसके हाथ बंधे है, वह।

(२४) waistband= कटि मेखला (कमर बंद)

(२५) watchband= घडी बांधने की पट्टी

(26) bellyband= पेट पर बंधी पट्टी।

(27) contrabandist = निर्बंध (बिना कानून) वस्तु का व्यापारी

(२८) contraband=निर्बंध (बिना कानून ) की आयात वस्तु।

(२९) disband = संगठन (समूह बंधन हटाना) विसर्जन करना।

(३०)bondstone= दो दिवारों को बांधने वाला लम्बा पत्थर

(३१) spellbind= सम्मोहन में बंधा हुआ।

(३२) broadband—–(३३) browband—-(३५) bondages—-(३६) bonder—-(३७) bondholder—–(३८) bondings—-(३९) bondsman——(४०) spunbonded—-(४१) Bundle—–(४२)—crossband —–(४३)bandbox—(४४) bandstand—(४५) bandwagon —-(४६) bandwidth—-(४७) bandog—–(४८) multiband—–(४९) narrowband—-(५०) noseband——(५१) proband—-(५२)roband—-(५३)cowbind——–(५४)highbinder——-(५५)misbind——(५६) misbinding——-(५७) nonbinding—–(५८) prebind——(५९) rebind——-(६०) spellbind—-(६१)spellbinder—–(६२) unbind—(६३)woodbind

 

परिशिष्ट : यास्क मुनि के सिद्धान्त:

सिद्धान्त पहला:

सब नामों का मूल कुछ प्रारम्भिक तत्त्व हैं जिन्हें वह (यास्क) धातु कहता है। और इस कारण वह भार पूर्वक कहता है, कि प्रत्येक शब्द की मूल धातु खोजी जा सकती है, तथा कोई भी शब्द अनिर्वाच्य (शोध रहित मानकर) कहकर छोड दिया जाना नहीं चाहिए।

सिद्धान्त दूसरा:

विवेचक को चाहिए, कि शब्द के अर्थ को महत्त्व दे, और उस अर्थ को बताने वाले, रूप से किसी समानता के आधार पर निर्वचन करने का प्रयत्न करे।

तीसरा सिद्धान्त :

शब्दों का निर्वचन (मूल का शोध) उन के अर्थों को दृष्टि में रखकर किया जाना चाहिए। यदि उन के अर्थ समान हैं, तो उन के निर्वचन भी समान होने चाहिए, और यदि उन के अर्थ भिन्न हैं तो उन के निर्वचन भी भिन्न होने चाहिए।

इन तीनों सिद्धान्तों के उपयोग से ही हम अंग्रेज़ी-हिन्दी-संस्कृत का संबंध जोड पा रहे हैं।

13 COMMENTS

  1. सुन्दर और तार्किक लेख है – किसी प्रकार का दुराग्रह नहीं – आपने मोनिएर विलिएअम्स का – अंग्रेजी – संस्कृत शब्द कोष देखा ही होगा –

    • Aa. Goyal Mahogay, Namaskar.
      Bahut bahut Dhanyavad.
      Yah Alekh Nirukta ke siddhanto ke anuprayog se racha hai.
      Aap ki Tippani ke lie Abhari hun.

  2. प्रोफ.मधु सुदन जी आपके शब्द वृक्ष के सभी लेखो को पढने के बाद हमारी रूचि संस्कृत भाषा के प्रति और गहरी होती जा रही है |बड़ा ही आनंद आता है क्योकी हमारी समझ बढ़ती ही जा रही है |धन्यबाद

  3. शशि जी, और मोहन जी-
    आप दोनों की टिप्पणियों के लिए धन्यवाद|
    आज तक के अध्ययन से निम्न बाते पता चलती हैं|
    (१) लातिनी और यूनानी दोनों में संस्कृत के धातु पाए जाते हैं| इन दोनों की अपेक्षा हमारी संस्कृत पुरानी है|
    यह मोहन जी को स्पष्ट करने के लिए लिखा है|
    (अ) लातिनी और यूनानी में संस्कृत धातु है| (आ) हमारे व्याकरण के रूप भी अंग्रेज़ी में पहुंचे है|
    (इ)कुछ शब्दों के अर्थ का शोध भी संस्कृत के बिना संभव नहीं लगता|
    (ई) और भी स्फुट और गौण बाते ध्यान में आई है|
    (२) अंग्रेजों के भारत के संपर्क के बाद हिंदी से भी अंग्रेजी में शब्द पहुंचे है|जैसे शशि ने सही सही उल्लेखित किये हैं|
    (३) कुछ शब्द ऐसे भी है, जिसमें संस्कृत का व्याकरण भी पहुँच गया है|
    (४) संस्कृत ही कुछ अंग्रेजी शब्दों के मौलिक अर्थ देने में भी सक्षम है| अन्यथा उन शब्दों का अर्थ ही नहीं लग पाता|
    बहुत बहुत सामग्री पर काम किया जा सकता है|
    (५) और मुझे सच्चाई से समझौता करने की आवश्यकता नहीं है|
    बाट देखने की बिनती करता हूँ|
    सच्चाई को प्रकाशित करना गर्व से नहीं, पर इश्वर की कृपा से ही मानता हूँ|
    बाट देखिये|

  4. अंग्रेजी भाषा की उत्पत्ति और विकास के वारे में शोध के लेखो से पता चलता हैं के अंग्रेजी में मूलता केवल ५०० शब्द थे ! अंग्रेज लोग केवल इन्ही ५०० शब्दों से गुजारा करते थे ! अंग्रेजी में शब्द रचना या निर्माण का कोई उचित या पर्प्यात डंग नहीं हैं! इसलिए अंग्रेज लोगो की विवशता हैं के बह लोग अन्य भाशौऊ के शब्दों को अपनाई! पहले अंग्रेजी में यूरोप की भाशौओ से शब्द लिए जाते थे ! इसलिए अंगेजी में लातिन और ग्रीक शब्द जयादा हैं ! ब्रिटिश साम्राज्य के दौरोन अंग्रेज जहा जहा गए वहा वहा से कुछ शब्द अपनाई ! संस्कृत और हिंदी भाषा में वयाकर्ण में ऐसी व्यवस्था हैं के नया शब्द आसानी और सुभिधा से रचे जा सकते हैं ! संस्कृत को एक पूरण और शस्कत भाषा माना जाता! इसलिए हैरानी की बात नहीं हैं के यदि अंग्रेजी भाषा ने संस्कृत और हिंदी से बहुत ज्यादा शब्द अपनाई हो !
    भारतीय लोगो की मानसिक पर्विती के कारन बहुत से लोग यह मानने को तैयार नहीं अंग्रेजी भाषा ने संस्कृत और हिंदी से बहुत से शब्द अपनाई हो ! इशी मानशिक पर्वृति के कारन लोग यह कहते रहते हैं अंग्रेजी भाषा ने अन्य भाशैओ से बहुत से शब्द अपनाई है इसलिए अंग्रेजी विश्व भाषा बन गयी हैं इसलिए हिंदी को समृद करने के लिए अंग्रेजी उर्दू और अन्य भाशैओ का कूड़ा करकट अपनाना चाइए ! मानसिक दासता पर्वृति के लोग यह नहीं समझते के अंग्रेजी के लिए दूसरी भाशैओ से शब्द अपनाना एक विवशता हैं किन्तु हिंदी के लिए यह विवशता नहीं हैं !
    अंग्रेजी विश्व में ब्रिटिश साम्राज्य और इशाई पादरियो के कारन फेली ! डॉ. मधुसुदन जी ने अपने लेखो द्वारा बहुत सि भ्रान्तिया को दूर कर दिया हैं ! डॉ. मधुसुदन जी गुजराती भाषाई होते हुयां भी हिदी के प्रवाल प्रचारक सिद्ध हो रहे हैं!

  5. जीत भार्गव जी, और शशि –आप दोनों का धन्यवाद|
    दीर्घ शोध से पता लगता है, की हमारी देववाणी संसार की अनेक भाषाओं में नामों से, शब्दों से, विशेषणों से, उपसर्गों से, प्रत्ययों से और क्रियापदीय धातुओं से कैसे अनुप्राणित कर रही है?
    एक बड़ी या कमसे कम छोटी पुस्तक लिखी जा सकती है|
    आपने सही कहा, प्रवक्ता पर ही १५ से २० लेख इसी विषय पर आप देख सकते हैं|
    प्रकल्पों के बिच समय मिलने पर अधिक समय लगा पाउँगा|
    ===>यास्क ने वैदिक शब्दों के अर्थ लगाने के लिए जो सिद्धांत बनाए थे, वे महाराज अंग्रेजी पर भी चल जाते हैं|<====
    महा आश्चर्य है|
    आप की टिप्पणियाँ मुझे प्रोत्साहित करती हैं| बहुत बहुत धन्यवाद|

  6. Bangel बांगड़ी से आया और Cheeta को तो ज्यो का-त्यों ही रख दिया, चिट्ठी तो Chit बना दिया. यास्क मुनि के बारे में पहली बार सुना, सुना तो था पैर उनके अद्भुत कार्यो के बारे में इतना पता नहीं था. धन्यवाद.

  7. शकुन्तला जी -नमस्कार।
    आपके शब्दों से मुझे कृतार्थता अनुभूत होती है। प्रयास करने के लिए प्रेरणा भी मिलती है।
    परिश्रम जब रूचि से जुड जाता है, तो कठिन नहीं रहता। या यों कहूँ, कि कम कठिन प्रतीत होता है।
    मेरे दो संस्कृत के शिक्षक, और मेरे पिता, जिन्हों ने लगन से पढाया, रूचि उन्नत की, मैं तो वास्तव में उनका ऋणि हूँ।
    और उस यास्क का जिसने व्युत्पत्तियों पर सह्स्रो वर्षॊं पहले काम किया।धन्यता का अनुभव करता हूँ।
    जीवन्त परम्परा खो कर वापस पुनरुज्जिवित करना, अत्यन्त -अत्यन्त कठिन होगा।
    भारत को सावधान भी रहना चाहिए। हमारा हीरा कांच का टुकडा प्रमाणित हो रहा है। संस्कृत को बैल गाडी की भाषा, मृत भाषा घोषित कर रहें हैं। पीडा होती है।
    बहुत बहुत धन्यवाद।

  8. ==>सत्त्यार्थी जी, अनेकानेक धन्यवाद।
    सही कहा आपने, बंधक के विषय में।
    और यास्क मुनि सारे विश्व में पहले निरूक्तकार थे।उन के तीन सिद्धान्त बहुत सफल हैं।
    हमारे पूरखे क्या क्या लिख गए, उनको पढने के लिए भी यह जीवन पर्याप्त नहीं है।
    समय बीता, पर, पी एच डी के लिए जर्मन पढी थी। उसमें भी संस्कृत दिखाई देती थी। अनुपयोग के कारण भूलसा गया हूँ। बहुत सारे धातु मुझे अंग्रेज़ी में दिखायी पडते हैं।
    ==>प्रतिभा जी का भी हृदय तलसे धन्यवाद। सही कह रही हैं आप। ज़ेन्द अवेस्ता में भी अपभ्रंशित संस्कृत ही है। और लेखकों ने सामने आकर लिखने की आवश्यकता भी है। सोचिए।आपके शब्द मेरे लिए प्रोत्साहन हैं। समय लेकर आपने टिप्पणी लिखी फिरसे धन्यवाद।

  9. बहुत सारगर्भित विश्लेषण किया है .धातु के आधार पर भाषा और शब्दों के मूल अर्थ तक पहुँचने से उसके मर्म को पहचानना संभव होता है .अनेक भाषाओँ का पारस्परिक जुड़ाव भी इसी कारण लक्षित होता है .
    केवल अंग्रेज़ी और हिन्दी ही नहीं उर्दू में प्रयुक्त होनेवाले फ़ारसी भाषा के शब्द भी इस परंपरा में आते हैं.फ़ारस का एक नाम ईरान (आर्यन)से नि
    स्सृत है .वहां के शासक अपने को आर्य-मिहिर कहते थे.
    हाँ ,शब्दों में –
    संस्कृत-दुहितृ,अंग्रेज़ी- डॉटर.,उर्दू- दुख्तर
    ——भ्रातृ———–ब्रदर——– बिरादर.
    ऐसे ही – मास का माह(स ध्वनि ह में परिवर्तित),
    सप्ताह का हफ़ता ,सिंधु .का हिंदु आदि .
    मूल भाषा का कई शाखाओँ में विकसित होना -और कई कारणों से ध्वनियों में भिन्नता आ जाना.
    संस्कृत मूल से विकसित भारत की अन्य भाषाओँ में भी तत्सम और तद्भव रूपों में काफ़ी-कुछ साम्य हैं .
    हम इ्न्हें एक ही मूल की विभिन्न शाखायें कहें तो अत्युक्ति न होगी.
    —- –

    • अत्यन्त परिश्रमसाध्य, शोधपरक और ज्ञानवर्धक
      शृँखला चल रही है।यास्क मुनि के निरुक्त के आधार पर आपने सामान्य हिन्दी प्रेमी पाठकों के लिये शब्दों के मूल से लेकर फूलों तक की झड़ी लगा दी है।लगता है कि हम शब्द-सिंधु
      के अतल में गोते लगा रहे हैं।ये साम्य जर्मन भाषा के शब्दों में भी दृष्टव्य है।आपके वैदुष्य से
      मैं अभिभूत हूँ।

  10. आदरणीय मधुसूदन जी
    आपकी शब्द वृक्ष लेखमाला रुचिकर तथा ज्ञानवर्धक है.मैंने केवल हाई स्कूल तक हिंदी पढ़ी और संस्कृत लगभग शून्य . आपकी कृपा से हमें अपनी गौरवशाली परम्पराओं का ज्ञान हो रहा है यास्क मुनि का केवल नाम सुना था कितने महान भाषाविज्ञान विशारद थे यह सोच कर हर्ष तथा आश्चर्य होता है. कृपया इसी प्रकार हिंदी,संस्कृत तथा भारत माता की सेवा करते रहे तो बहुत कृपा होगी
    बंधक शब्द का एक और प्रयोग है वह व्यक्ति जो कैद किया हुआ हो या संपत्ति जो गिरवी ( pledge) rakhee gai ho
    satyarthi

  11. Sampadakji kripaya dhyan den. jo kalam baaeen ore rahta hai wah apne nirdharit sthan se hat kar lekh ke oopar aagaya hai iisliye lekh theek se padh pana sambhav nahin hai.

Leave a Reply to Mohan Gupta Cancel reply

Please enter your comment!
Please enter your name here