दिल्ली में बनेगी अब भाजपा की सरकार?

-इक़बाल हिंदुस्तानी-   aap

केजरीवाल कांग्रेस-भाजपा को पूरे देश में घेरने को हुए आज़ाद!

आम आदमी पार्टी की सरकार दिल्ली में 49 दिन में ही धराशायी हो गयी। इस दौरान मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सरकार का वीआईपी कल्चर और लालबत्ती का आतंक ही ख़त्म नहीं किया बल्कि इस छोटे से कार्यकाल में अपने वादे के मुताबिक 400 यूनिट तक बिजली के दाम कम कर आधे और हर महीने 20 हज़ार लीटर पानी हर घर को निशुल्क देने का काम कर दिखाया।

इसके साथ ही निजी बिजली कम्पनियों के खातों की जांच कैग से कराने, 5500 ऑटो परमिट जारी करने, पानी टैंकर माफिया का काला धंधा बंद करने, भ्रष्टाचार रोकने को हेल्पलाइन, महिलाओें की सुरक्षा के लिये महिला गठन की प्रक्रिया की शुरूआत, नर्सरी स्कूलों की मनमानी रोकने को हेल्पलाइन और निजी स्कूलों का मेनेजमैंट कोटा ख़त्म करना, 58 नये रैनबसेरे, हायर एजुकेशन के लिये 10 हज़ार स्कॉलरशिप, करप्शन के खिलाफ़ लड़ने के दौरान शहीद हुए सिपाही के परिवार को एक करोड़ की मदद, ठेके पर चल रही नौकरियों को स्थायी करने की प्रक्रिया शुरू, 1984 के सिख विरोधी नरसंहार की जांच के लिये एसआईटी का गठन और दिल्ली में रिटेल में एफडीआई पर रोक, गैस घोटाले को लेकर मुकेश अंबानी और केंद्र के दो मंत्रियों के खिलाफ रपट के ऐसे फैसले लिये जिनको दो दशक के अपने लंबे कार्यकालों में कांग्रेस और भाजपा आज तक नहीं ले पाईं।

इस दौरान दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने और दिल्ली पुलिस की कमान दिल्ली सरकार के हाथ सौंपने की मांग को लेकर पूरी केजरीवाल कैबिनेट ने रेल भवन के पास धरना देकर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और आंध्र के सीएम किरण रेड्डी को भी पीछे छोड़ दिया और धरना तभी ख़त्म हुआ, जब उनकी दो पुलिस अधिकारियों को जांच के दौरान पद से हटाने की मांग मान ली गयी। केजरीवाल जिस जनलोकपाल के मुद्दे पर सियासत में आये और सरकार बनाई उसी को लेकर उनकी सरकार चली  भी गयी लेकिन वे जानते हैं कि उनकी सरकार की इस कुर्बानी से दिल्ली ही नहीं देश की जनता उनकी क़ायल हो गयी है।

पहले तो केजरीवाल बहुमत ना मिलने से सरकार बनाना ही नहीं चाहते थे लेकिन जब कांग्रेस ने आप को बिना शर्त बिना मांगे आपकी ही शर्तों पर उसको सरकार बनाकर अपने वादे पूरे करने की चुनौती दी तो उन्होंने जनता की राय जानी और जब वह राय कांग्रेस के सपोर्ट से सरकार बनाने के पक्ष में आ गयी तो केजरीवाल ने 28 दिसंबर को दिल्ली के सीएम की शपथ ले ली। केजरीवाल जानते थे कि उनकी सरकार का जीवन लंबा नहीं है लकिन जब कांग्रेस और भाजपा ने उनको हर सही गलत बात पर विरोध के लिये विरोध को घेरना शुरू किया तो उन्होंने जनलोकपाल बिल सीधे विधनसभा में रखकर मतदान कराने का सुनियोजित फैसला किया जिससे यह साफ हो सके कि भ्रष्टाचार के मामले में कांग्रेस-भाजपा दोनों की मिलीभगत है।

जो भाजपा कर्नाटक में युदियुरप्पा को साथ लेने में बुराई नहीं समझती और उसके पीएम पद के दावेदार गुजरात में नौ साल तक लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं करते उससे और उम्मीद भी क्या की जा सकती थी। ऐसे ही 43 साल तक लोकपाल बिल को लटकाये रखने वाली कांग्रेस जनलोकपाल, केजरीवाल के धरने और उनके विद्रोही तौर तरीकों को लेकर लगातार संविधान, परंपरा, नियम और कानून की दुहाई देती रही लेकिन यह भूल गयी कि तेलंगाना के मुद्दे पर संसद में उसके मंत्री और दूसरे सांसद क्या अराजकता फैला रहे हैं और यह कि केजरीवाल सत्ता परिवर्तन को नहीं बल्कि व्यवस्था परिवर्तन के लिये आये थे जो काफी हद तक करने में वे कामयाब रहे हैं।

केजरीवाल ने जनलोकपाल पर अपनी सरकार शहीद करके इस्तीफा देने के साथ विधानसभा भंग कर नये चुनाव कराने की सिफारिश भी की थी लेकिन जब उन्होंने इस्तीफा दिया तब तक उनकी सरकार अल्पमत में आ चुकी थी, ऐसी हालत में लेफ्टिनेंट गवर्नर उनकी सिफारिश मानने का मजबूर नहीं थे, सो कांग्रेस सोची समझी योजना के तहत प्रेसीडेंट रूल लगाने के साथ ही विधानसभा भंग नहीं की गयी है बल्कि निलंबित रखी गयी है।

इससे यह संभावना है कि लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा जैसे तैसे दिल्ली में अपनी सरकार बनाने में सफल हो जाये। इससे कांग्रेस और भाजपा दोनों को यह लाभ नज़र आ रहा है कि शीघ्र चुनाव होने पर केजरीवाल दो तिहाई बहुमत से दिल्ली की सत्ता में ना लौट सकें। जनता की याददाश्त कमजोर होती है जिससे पांच साल बाद हालात पता नहीं क्या हों? उधर केजरीवाल और उनकी आप टीम अब दिल्ली सरकार की ज़िम्मेदारी से बरी होकर पूरे देश में कांग्रेस और भाजपा के खिलाफ लोकसभा चुनाव में पूरे दमख़म से उनकी पोल खोलने के अभियान में जुटने जा रहे हैं।

अब यह तो समय ही बतायेगा कि केजरीवाल का फैसला सही है गलत? अरविंद केजरीवाल ने एक साल के अंदर पहले आम आदमी पार्टी बनाकर, उसके बाद दिल्ली में 28 सीटें जीतकर और आप की सरकार का सीएम बनकर कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह की 25 नवंबर 2012 की उस चुनौती का मंुहतोड़ जवाब दे दिया है जिसमें उन्होंने कहा था कि अरविंद पहले म्यूनिसिपल कारापोरेटर ही बनकर दिखा दें। ऐसे ही पूर्व सीएम शीला दीक्षित ने 22 सितंबर 2013 को कहा था कि आप जैसे दल मानसूनी कीड़ों की तरह की होती हैं, ये आती हैं, पैसे बनाती हैं और गायब हो जाती हैं।

ये इसलिये नहीं टिक पाती क्योंकि इनके पास दृष्टि नहीं होती। ऐसे ही भाजपा नेत्री सुषमा स्वराज ने 2 दिसंबर 2013 को कहा था कि जनता आप को वोट देकर अपना मत ख़राब नहीं करना चाहती। बीजेपी के एक्स प्रेसीडेंट नितिन गडकरी ने 2 दिसंबर 13 को कहा था कि आप कांग्रेस की बी टीम है। दोनों बड़े दलों के इतने धुरंधर नेताओें के चुनाव नतीजे आने से पहले के ये बयान उनका खोखलापन बताने के लिये काफी है। आपको यहां यह भी याद दिला दें कि आप की सरकार बनने से पहले केवल 28 सीटें जीतने से ही दो बड़े काम लोकपाल का संसद में पास होना और भाजपा का 32 विधायकों के साथ सबसे बड़ा दल होने के बावजूद अन्य विधयकों को तोड़कर सरकार बनाने का प्रयास ना करना।

कांग्रेस को यह भी आशा थी कि आप को सपोर्ट देकर सरकार बनवाई गयी तो वह कांग्रेस के प्रति कुछ नरम हो सकती है जबकि इस दौरान भाजपा ने कांग्रेस या आप के कुछ विधायक तोड़ लिये तो वह उसके घोटालों और भ्रष्टाचार की जांच कराकर लोकसभा चुनाव में और अधिक नुकसान पहुंचा सकती है। कांग्रेस यह भी मान कर चल रही थी कि आप को सपोर्ट कर के सरकार बनवाने से जनता की नाराज़गी उससे तो कम हो सकती है लेकिन नाकाम होने पर मतदाता आप से ख़फ़ा हो जायेगा। इसके विपरीत केजरीवाल ने शीला दीक्षित के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों में सख़्त कदम उठाकर और होम-मिनिस्टर सुशील शिंदे को उनकी औकात बताकर साबित कर दिया कि वह अपने एजेंडे पर चले। नजीबाबाद के हिंदी ग़ज़लकर दुष्यंत त्यागी की ये लाइनें यहां केजरीवाल के लिये समीचीन है-

सिर्फ़ हंगामा खड़ा करना मेरा मक़सद नहीं,

मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिये।

मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,

हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चहिये।

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इक़बाल हिंदुस्तानी
लेखक 13 वर्षों से हिंदी पाक्षिक पब्लिक ऑब्ज़र्वर का संपादन और प्रकाशन कर रहे हैं। दैनिक बिजनौर टाइम्स ग्रुप में तीन साल संपादन कर चुके हैं। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में अब तक 1000 से अधिक रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है। आकाशवाणी नजीबाबाद पर एक दशक से अधिक अस्थायी कम्पेयर और एनाउंसर रह चुके हैं। रेडियो जर्मनी की हिंदी सेवा में इराक युद्ध पर भारत के युवा पत्रकार के रूप में 15 मिनट के विशेष कार्यक्रम में शामिल हो चुके हैं। प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ लेखक के रूप में जानेमाने हिंदी साहित्यकार जैनेन्द्र कुमार जी द्वारा सम्मानित हो चुके हैं। हिंदी ग़ज़लकार के रूप में दुष्यंत त्यागी एवार्ड से सम्मानित किये जा चुके हैं। स्थानीय नगरपालिका और विधानसभा चुनाव में 1991 से मतगणना पूर्व चुनावी सर्वे और संभावित परिणाम सटीक साबित होते रहे हैं। साम्प्रदायिक सद्भाव और एकता के लिये होली मिलन और ईद मिलन का 1992 से संयोजन और सफल संचालन कर रहे हैं। मोबाइल न. 09412117990

3 COMMENTS

  1. भाई इकबाल हिन्दुस्तानी के इस आलेख के बारे में मैं इसलिए कुछ नहीं कहूंगा,क्योंकि मेरे विचार तो कमोबेस सबको मालूम है,पर मुझे आश्चर्य तो यह है कि कांग्रेस ने विधान सभा को भंग क्यों नहीं होने दिया?भाजपा तो इसे कभी भंग कराना नहीं चाहती और उसका पुख्ता वजह भी है.
    पर क्या कांग्रेस ने यह सोचा कि अभी अगर दिल्ली का चुनाव लोकसभा के साथ हो जाता है,तो दिल्लीमें तो आआप बहुमत में आएगी हीं,साथ ही शायद इसको इसका लाभ लोकसभा में भी मिल जाए? यह तो सही है कि अगर अभी दिल्ली में चुनाव हो जाए तो कांग्रेस का शायद ही कोई उम्मीदवार जीते और भाजपा को भी कुछ कम सीट ही मिले,पर अगर लोकसभाचुनाव के बाद भी विधान सभा निलम्बित रहती है तो कांग्रेस ने यह क्यों नहीं सोचा कि भाजपा उस समय नैतिकता का यह सब लबादा उतार कर जोड़ तोड़ में लग जायेगी और फिर या तो स्वयं सरकार बना लेगी या आआप के टूटे हुए सदस्यों को आगे करके सरकार को बाहर से समर्थन देने लगेगी.भाजपा ने कहा भी भी है कि उसके लिए सब विकल्प खुले हैं.आआप के निष्काषित तथाकथित कद्दावर नेता ने यह कहा भी है कि उनके साथ नौ या दस विधायक हैं ,जो कभी भी आगे बढ़ कर सरकार बना सकते हैं.फिर कांग्रेस ने ऐसा क्यों किया?क्या उसे भाजपा से ज्यादा आआप से खतरा है?या फिर सचमुच में इन दोनों में नूराकुश्ती है और ये दोनों पार्टियां किसी तीसरे को इस बीच नहीं आने देना चाहती?या फिर ऐसा तो नहीं है कि ये दोनों पार्टियां मुकेश अम्बानी के आदेशानुसार काम कर रही हैं? फिर प्रश्न यह उठता है,कि क्या सचमुच में असली सूत्रधार मुकेश अम्बानी है और ये दोनों पार्टियां कठपुतलियों की तरह उसके इशारे पर नाच रही हैं?

  2. सटीक विश्लेषण,, पर आगे आगे देखिये क्या होता है.भा ज पा यदि तोड़ फोड़ कर सरकार बना भी लेगी तो केवल खाना पूर्ति ही होगी वह भी उस जुटाए हुए कुनबे को जोड़े रखने में ही लगी रहेगी.दिल्ली की जनता को कोई विशेष मिलने की उम्मीद नहीं.

  3. अभी तो भाजपा केलियें दिल्ली सरकार और देश की सरकार दूर हैं। बहुत अच्छा लेख।

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