शिक्षामित्रः सही निर्णय पर नाजायज आंदोलन , दबाव की राजनीति

मृत्युंजय दीक्षित

12 सितम्बर 2015 के दिन इलाहाबाद हाइ्र्रकोर्ट ने एक ओर अत्यंत ऐतिहासिक निर्णय सुनाया जिसके बाद प्रदेश में निुयक्त किये गये 1.72 लाख शिक्षामित्रों का समायोजन रदद कर दिया । शिक्षामित्रों का समायोजन रदद हो जाने के बाद प्रदेशभर के शिक्षामित्र आक्रोशित हो रहे हैं। अनेक शिक्षामित्रों ने आत्महत्या कर ली है जबकि लगभग 6 हजार से अधिक शिक्षामित्रों ने राज्यपाल और राष्ट्रपति को प्रेषित ज्ञापन के माध्यम से इच्छामृत्यु की मांग कर रहे हैं। वहीं शिक्षामित्रों का समायोजन रदद हो जाने के बाद कई घरों में चूल्हा नहीं जल पा रहा है। हाईकोर्ट के फैसले के बाद आम जनमानस में यह संकेत भी जा रहा है कि जहां एक ओर प्रदेश में बेरोजगारी महाविस्फोट का रूप लेती जा रही है वहीं दूसरी ओर अदालत के ताजा निर्णय से बेरोजगारी महामारी का रूप ले लेगी। शिक्षामित्रों का समायोजन रदद हो जोने के बाद शिक्षामित्र आज जिस प्रकार से आंदोलित हो रहे हैं उससे कई प्रश्न उठ खड़े हो रहे हैं कि आखिर सरकारों की नियुिक्तयों को लेकर कोई पारदर्शी व निष्पक्ष प्रणाली है कि नहीं अथवा वह केवल युवाओं को  झूठे सपने दिखाकर ठगने का काम तो सरकारें नहीं कर रही हैं? अदालत के फैसले से प्रदेश सरकार का कठघरे में  खड़ा होना स्वाभाविक है।

आज यह भी प्रश्न उठ खड़ा हो रहा है कि  केवल सस्ती  लोकप्रियता हासिल करके आखिर यह राजनैतिक दल कब तक अशिक्षित व शिक्षित बेरोजगारों की फौज को खड़ा करते रहेंगे और अपने निहित स्वार्थेंा की पूर्ति करते रहेंगे। इधर हाइकोर्ट के एक के बाद फैसलों से समाजवादी  सरकार को जोरदार झटके लगे हैं। पहले कोर्ट ने 40 हजार दारोगाओं की भर्ती पर रोक लगायी फिर शिक्षामित्र की नियुक्ति  रदद कर दी और अभी हाल ही में ग्राम पंचायत अधिकारी नियुक्ति पर भी रोक लग गयी है। आगामी विधानसभा चुनावों मे अधिकांश युवाओं को नौकरी बांटकर सत्ता में वापसी का सपना संजोये युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को करारा झटका लगा है।

अब हालत यह है कि प्रदेश सरकार शिक्षामित्रों की नौकरी को बचाने के लिए अदालत के आदेश का गहन विश्लेषण कर रही है।

shikshmitr उधर प्रदेशभर के शिक्षामित्र इस कदर से आंदोलित हो रहे हैं कि राजधानी लखनऊ सहित प्रदेशभर के अधिकांश जिलों में परिषदीय स्कूलों में ताले जड़ दिये हैं जिसके कारण बच्चों की पढ़ाई पर तो असर पड ही रहा है साथ ही साथ नियमित कामकाज भी प्रभावित हो रहा है। शिक्षामित्र जगह- जगह रेलें रोक रहे हैं तथा सड़क भी जाम कर रहे हैं। शिक्षामित्र अपने भविष्य के लिए बेहद ंिचंतित दिखलायी पड़ रहे हैं यही कारण है कि यह मुददा आज  सभी राजनैतिक दलों की प्राथमिकता बन गया है और जिम्मेदारी भी। समाजवादी पार्टी के नेता राजेद्र चौधरी सहित प्रदेश सरकार के मंत्री शिवपाल यादव भी इस झटके के असर को कम करने के लिए जुट गये हैं तथा सपा प्रवक्त राजेंद्र चौधरी का साफ कहना है कि,   “सरकार शिक्षमित्रों के साथ है।“ प्रदेश सरकार के बेसिक श्क्षिामंत्री रामगोविंद चौधरी का कहना है कि, “शिक्षामित्र भावनाओं में बहकर आत्मघाती कदम न उठायें ।

इससे उनके परिवार और समाज को धक्का पहुंचेगा। सभी विपक्षी दल भी शिक्षामित्रों के साथ खड़े हैं।”विगत दिनांे काशी दौरे पर पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शिक्षामित्रों को बीच का रास्ता निकालने का भरोसा दिलाया है। मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री  स्मृति ईरानी का भी जब शिक्षामित्रों ने घेराव किया तब उन्होनें भी उनका पूरा सहयोग  व सहायता देने का आश्वासन दिया है। एक प्रकार से शिक्षामित्र प्रदेश की राजनीति के केंद्रबिंदु बन गये हैं।

राजनैतिक और वोटों की नजर में यह अतिमहत्वपूर्ण हैं । यदि ये सरकार के विरोध में पूरी तरह से उतर आये तो सरकार की नैया स्वतः ही डूब जायेगी। शिक्षामित्रों का समायोजन करना इतना आसान भी नहीं रह गया है।  प्रदेश में पहले से प्रशिक्षित टीईटी , बीएड डिग्रीधरियों की संख्या भी लगभग दस लाख के आसपास है उनकी मांग हैं कि पहले प्रशिक्षित लोगों को समायोजित किया जाये। इन प्रशिक्षित लोगों ने भी अपना एक संगठन बना लिया है और सोशल मीडिया व कानूनी दावपेंचों के माध्यम से अपनी बातों को जनता व  अदालत के समक्ष जोरदार ढंग से रखने की तैयारी कर रहे हैं। प्रशिक्षित लोगों का संगठन सुप्रीम अदालत में भी जोरदार ढंग से पैरवी की तैयारी में जुटा हुआ है वहीं वह भी अपनी बात  को पीएम मोदी व केन्द्रीय सरकार के अन्य मंत्रियों व विभागों तक अपनी लड़ाई की तैयारी करने में दिन-रात एक किये हुए है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डा ़ डीवाई्र चंद्रचूड न्यायमूर्ति दिलीप गुप्ता व न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने शिवम राजन व कई अन्य याचिकाओं को स्वीकार करते हुए कहा है   कि,” बिना टीईटी पास किये कोई भी प्राथमिक विद्यालय का अध्यापक नियुक्त नहीं किया जा सकता। न्यूनतम योग्यता तय करने व इसमें ढील देने का अधिकार केवल केंद्र सरकार को ही है। राज्य सरकार ने सर्वंशिक्षा अभियान के अंतर्गत संविदा पर नियुक्त शिक्षामित्रों का समायोजन करने में अपनी विधाई शक्ति सीमा का उल्लंघन किया है। वह केंद्र सरकार द्वारा तय मानक एवं न्यूनतम योग्यता को लागे करने में विफल रही है। इस प्रकार अदालत ने शिक्षामित्रों को दूरस्थ शिक्षा से मिला प्रशिक्षण भी असंवैधानिक करार दिया है। साथ ही यह भी तय कर दिया है कि राज्य सरकार को चयन के नयें स्रोत बनाने का हक नहीं हैं सभी नियमावली संशोधन और सरकारी आदेश अवैध हैं। साथ ही यह भी स्पष्ट लिख है कि सरकार सुनिश्चित करे  कि बिना प्रशिक्षण के नियुक्ति न हो।“

एक प्रकार से अदालत के निर्णय से साफ प्रतीत हो रहा है कि शिक्षामित्रों का प्रदेशसरकार की ओर से किया गया समायोजन पूरी तरह से अवैध था। आज शिक्षामित्रों के ताजा हालातों के लिए समाजवादी सरकार ही जिम्मेदार है। यह प्रकरण इसलिए भी अब कठिन हो गया है क्योंकि इस पूरे मामले की सुनवाई माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश से ही हुइ है। अब शिक्षामित्रों का भविष्य निश्चित रूप से केंद्र पर निर्भर हो गया है। यही कारण  था कि पूरे प्रकरण को काशी दौरे पर पहुंचे पीएम मोदी  ने लपकने में देरी नहीं की।अब यह मामला सर्वोच्च न्यायालय के दरवाजे पर अवश्य जायेगा तथा वहां पर एक बार फिर प्रशिक्षित व अप्रशिक्षित लोग आमने – सामने होंगे। बेरोजगारों की इतनी बड़ी फौज  सभी सरकारों व दलों के लिए एक बड़ा सिरदर्द बनती जा रही है। अब युवाओं को रोजगार के अतिरिक्त संसाधनांे पर भी विचार करना चाहिये।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,149 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress