मुख्यमंत्री नहीं, अभिभावक की मुद्रा में शिवराजसिंह

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नए मध्यप्रदेश की स्थापना के लगभग 7 दशक होने को आ रहे हैं. इस सात दशकों में अलग अलग तेवर और तासीर के मुख्यमंत्रियों ने राज्य की सत्ता सम्हाली है. लोकोपयोगी और समाज के कल्याण के लिए अलग अलग समय पर योजनाओं का श्रीगणेश होता रहा है और मध्यप्रदेश की तस्वीर बदलने में कामयाबी भी मिली है. लेकिन जब इन मुख्यमंत्रियों की चर्चा करते हैं तो सालों-साल आम आदमी के दिल में अपनी जगह बना लेने वाले किसी राजनेता की आज और भविष्य में चर्चा होगी तो एक ही नाम होगा शिवराजसिंह चौहान. 2005 में उनकी मुख्यमंत्री के रूप में जब ताजपोशी हुई तो वे उम्मीदों से भरे राजनेता के रूप में नहीं थे और ना ही उनके साथ संवेदनशील, राजनीति के चाणक्य या स्वच्छ छवि वाला कोई विशेषण नहीं था. ना केवल विपक्ष में बल्कि स्वयं की पार्टी में उन्हें एक टाइमगैप अरजमेंट मुख्यमंत्री समझा गया था. शिवराजसिंह की खासियत है वे अपने विरोधों का पहले तो कोई जवाब नहीं देते हैं और देते हैं तो विनम्रता से भरा हुआ. वे बोलते खूब हैं लेकिन राजनीति के मंच पर नहीं बल्कि अपने लोगों के बीच में. आम आदमी के बीच में. ऐसा क्यों नहीं हुआ कि जिनके नाम के साथ कोई संबोधन नहीं था, आज वही राजनेता बहनों का भाई और बेटियों का मामा बन गया है. यह विशेषण इतना स्थायी है कि वे कुछ अंतराल के लिए सत्ता में नहीं भी थे, तो उन्हें मामा और भाई ही पुकारा गया. कायदे से देखा जाए तो वे मुख्यमंत्री नहीं, एक अभिभावक की भूमिका में रहते हैं.

मध्यप्रदेश की सत्ता में मुख्यमंत्री रहने का एक रिकार्ड तेरह वर्षों का है तो दूसरा रिकार्ड चौथी बार मुख्यमंत्री बन जाने का है. साल 2018 के चुनाव में मामूली अंतर से शिवराजसिंह सरकार की पराजय हुई तो लोगों को लगा कि शिवराजसिंह का राजनीतिक वनवास का वक्त आ गया है. लेकिन जब वे ‘टायगर जिंदा है’ का हुंकार भरी तो विरोधी क्या, अपने भी सहम गए. राजनीति ने करवट ली और एक बार फिर भाजपा सत्तासीन हुई. राजनेता और राजनीतिक विश£ेषक यहां गलतफहमी के शिकार हो गए. सबको लगा कि अब की बार नया चेहरा आएगा. लेकिन पार्टी के वरिष्ठ नेता नरेन्द्र मोदी और अमित शाह को पता था कि प्रदेश की जो स्थितियां है, उसे शिवराजसिंह के अलावा कोई नहीं सम्हाल पाएगा. देश की नब्ज पर हाथ रखने वाले मोदी-शाह का फैसला वाजिब हुआ. कोरोना ने पूरी दुनिया के साथ मध्यप्रदेश को जकड़ रखा था. पहले से कोई पुख्ता इंतजाम नहीं था. संकट में समाधान ढूंढने का ही दूसरा नाम शिवराजसिंह चौहान है. अपनी आदत के मुताबिक ताबड़तोड़ लोगों के बीच जाते रहे. उन्हें हौसला देते रहे. इलाज और दवाओं का पूरा इंतजाम किया. भयावह कोरोना धीरे-धीरे काबू में आने लगा. इस बीच खुद कोरोना के शिकार हो गए लेकिन काम बंद नहीं किया.

एक वाकया याद आता है. कोरोना का कहर धीमा पड़ा और लोग वापस काम की खोज में जाने लगे. इसी जाने वालों में एक दम्पत्ति भी औरों की तरह शामिल था लेकिन उनसे अलग. इस दम्पत्ति ने इंदौर में रूक कर पहले इंदौर की मिट्टी को प्रणाम किया और पति-पत्नी दोनों ने मिट्टी को माथे से लगाया. इंदौर का, सरकार और मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान का शुक्रिया अदा कर आगे की यात्रा में बढ़ गए. यह वाकया एक मिसाल है.

कोरोना संकट में मध्यप्रदेश से गए हजारों हजार मजदूर जो बेकार और बेबस हो गए थे, उनके लिए वो सारी व्यवस्थाएं कर दी जिनके लिए दूसरे राज्यों के लोग विलाप कर रहे थे. श्रमिकों की घर वापसी से लेकर खान-पान की व्यवस्था सरकार ने निरपेक्ष होकर की. मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की पहल पर अनेक स्वयंसेवी संस्था भी आगे बढक़र प्रवासी मजदूरों के लिए कपड़े और जूते-चप्पलों का इंतजाम कर उन्हें राहत पहुंचायी. आज जब कोरोना के दूसरे दौर का संकेत मिल चुका है तब शिवराजसिंह आगे बढक़र इस बात का ऐलान कर दिया है कि श्रमिकों को मध्यप्रदेश में ही रोजगार दिया जाएगा. संभवत: मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान देश के पहले अकेले मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने ऐसा फैसला लिया है. उनकी सतत निगरानी का परिणाम है कि लम्बे समय से कोरोना से मृत्यु की खबर शून्य पर है या एकदम निचले पायदान पर. आम आदमी का सहयोग भी मिल रहा है. कोरोना के दौर में लोगों को भय से बचाने के लिए वे हौसला बंधाते रहे हैं.

वे मध्यप्रदेश को अपना मंदिर मानते हैं और जनता को भगवान. शहर से लेकर देहात तक का हर आदमी उन्हें अपने निकट का पाता है. चाय की गुमटी में चुस्की लगाना, किसानों के साथ जमीन पर बैठ कर उनके दुख-सुख में शामिल होना. पब्लिक मीटिंग में आम आदमी के सम्मान में घुटने पर खड़े होकर अभिवादन कर शिवराजसिंह चौहान ने अपनी अलहदा इमेज क्रिएट की है. कभी किसी की पीठ पर हाथ रखकर हौसला बढ़ाना तो कभी किसी को दिलासा देेने वाले शिवराजसिंह चौहान की ‘शिवराज मामा’ की छवि ऐसी बन गई है कि विरोधी तो क्या उनके अपनों के पास इस इमेज की कोई तोड़ नहीं है.

सभी उम्र और वर्ग के प्रति उनकी चिंता एक बराबर है. बेटी बचाओ अभियान से लेकर बेटी पूजन की जो रस्म उन्होंने शुरू की है, वह समाज के लोगों का मन बदलने का एक छोटा सा विनम्र प्रयास है. इस दौर में जब बेटियां संकट में हैं और वहशीपन कम नहीं हो रहा है तब ऐसे प्रयास कारगर होते हैं. बेटियों को लेकर उनकी चिंता वैसी ही है, जैसा कि किसानों को लेकर है. लगातार कृषि कर्मण अवार्ड हासिल करने वाला मध्यप्रदेश अपने धरती पुत्रों की वजह से कामयाब हो पाया है तो उन्हें हर कदम पर सहूलियत हो, इस बात का ध्यान भी शिवराजसिंह चौहान ने रखा है. विद्यार्थियो को स्कूल पहुंचाने से लेकर उनकी कॉपी-किताब और फीस की चिंता सरकार कर रही है. विद्यार्थियों को समय पर वजीफा मिल जाए, इसके लिए भी कोशिश जा रही है. मध्यप्रदेश शांति का टापू कहलाता है तो अनेक स्तरों पर सक्रिय माफिया को खत्म करने का ‘शिव ऐलान’ हो चुका है. प्रदेश के नागरिकों को उनका हक दिलाने और शुचिता कायम करने के लिए वे सख्त हैं.

पहली दफा मुख्यमंत्री बन जाने के बाद सबसे पहले वेशभूषा में परिवर्तन होता है लेकिन जैत से निकला पांव-पांव वाले भैया शिवराज आज भी उसी पहनावे में हैं. आम आदमी की बोलचाल और देशज शैली उन्हें लोगों का अपना बनाती है. समभाव और सर्वधर्म की नीति पर चलकर इसे राजनीति का चेहरा नहीं देते हैं. इस समय प्रदेश आर्थिक संकट से गुजर रहा है लेकिन उनके पास इस संकट से निपटने का रोडमेप तैयार है. प्रदेश के हर जिले के खास उत्पादन को मध्यप्रदेश की पहचान बना रहे हैं तो दूर देशों के साथ मिलकर उद्योग-धंधे को आगे बढ़ा रहे हैं. आप मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की आलोचना कर सकते हैं लेकिन तर्क नहीं होगा. कुतर्क के सहारे उन्हें आप कटघरे में खड़े करें लेकिन वे आपको सम्मान देने से नहीं चूकेंगे. छोडि़ए भी इन बातों को. आइए जश्र मनाइए कि वे एक आम आदमी के मुख्यमंत्री हैं. मामा हैं, भाई हैं. ऐसा अब तक दूजा ना हुआ.

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मनोज कुमार
सन् उन्नीस सौ पैंसठ के अक्टूबर माह की सात तारीख को छत्तीसगढ़ के रायपुर में जन्म। शिक्षा रायपुर में। वर्ष 1981 में पत्रकारिता का आरंभ देशबन्धु से जहां वर्ष 1994 तक बने रहे। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से प्रकाशित हिन्दी दैनिक समवेत शिखर मंे सहायक संपादक 1996 तक। इसके बाद स्वतंत्र पत्रकार के रूप में कार्य। वर्ष 2005-06 में मध्यप्रदेश शासन के वन्या प्रकाशन में बच्चों की मासिक पत्रिका समझ झरोखा में मानसेवी संपादक, यहीं देश के पहले जनजातीय समुदाय पर एकाग्र पाक्षिक आलेख सेवा वन्या संदर्भ का संयोजन। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी पत्रकारिता विवि वर्धा के साथ ही अनेक स्थानों पर लगातार अतिथि व्याख्यान। पत्रकारिता में साक्षात्कार विधा पर साक्षात्कार शीर्षक से पहली किताब मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी द्वारा वर्ष 1995 में पहला संस्करण एवं 2006 में द्वितीय संस्करण। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय से हिन्दी पत्रकारिता शोध परियोजना के अन्तर्गत फेलोशिप और बाद मे पुस्तकाकार में प्रकाशन। हॉल ही में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा संचालित आठ सामुदायिक रेडियो के राज्य समन्यक पद से मुक्त.

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