पक्के इरादे वाले मुलायम तासीर के शिवराजसिंह

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मनोज कुमार
मुलायम से दिखने वाले शिवराजसिंह चौहान अपने इरादे के कितने पक्के हैं, यह उनके साथ रहने वालों को भी पता नहीं चलता है. वे जो ठान लेते हैं, उसे पूरा करते हैं और जो पूरा नहीं करते हैं, वह उनकी योजना में शामिल ही नहीं होता है. मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के पहले जिन्होंने सत्ता की बागडोर सम्हाली, वे पुलिस कमिश्ररी को लेकर वादे करते रहे, इरादे जताते रहे लेकिन मुख्यमंत्री शिवराजसिंह ने आनन-फानन में पुलिस कमिश्ररी लागू कर अपने अटल निर्णय का संदेश दे दिया. नवम्बर 2005 से लेकर साल 2021 उनके अनेक दूरगामी परिणामों के लिए जाना जाएगा. इस कालखंड के थोड़े समय के लिए सत्ता से उनकी दूरी रही लेकिन इसके पहले और बाद के समय को देखें तो मध्यप्रदेश के व्यापक हित में ऐसे फैसले लिए गए जो एक नई दिशा देते हैं. जनकल्याणकारी योजनाओं ने सरकार के प्रति आम आदमी में सरकार के प्रति विश्वास को गहरा किया है. मुख्यमंत्री के रूप में शिवराजसिंह हमेशा से सादगी पसंद रहे हैं. कभी उन्होंने इस बात का दंभ नहीं पाला कि वे राजा हैं बल्कि स्वयं को आम आदमी से जोडक़र रखा. वे शायद इकलौते राजनेता होंगे जो कभी किसी फुटपाथ पर बैठे चाय वाले के पास चाय पीने चले जाते हैं तो कहीं मढिय़ा पर आम आदमी के साथ बैठकर सुख-दुख की बात करने लगते हैं. अनुरागी और वैरागी किस्म का यह राजनेता हमेशा से बेबाक और बेखौफ है. वे अपने विरोधियों को भी पूरा सम्मान देते हैं. राजनीतिक मर्यादा की नित नयी परिभाषा गढऩे वाले शिवराजसिंह चौहान आज की कलुषित होती राजनीति में एक आशा की दीपक की तरह प्रज्जवलित हो रहे हैं.
आज थोड़े से राजनेता होंगे जिन्हें अपनी संस्कृति और वेद पाठ का ज्ञान होगा. शिवराजसिंह चौहान सार्वजनिक मंच पर खड़े हों या मीडिया से गुफ्तगूं कर रहे हों, और तब बिना रूके, बिना अटके संस्कृत में श£ोक का पाठ करते हैं तो लोग बस सुनते-देखते रह जाते हैं. हाल में धार्मिक कार्यक्रम में भारतीय संस्कृति के परिधान पहन कर संबोधित करते हुए जो वीडियो जारी हुआ, वह मोहक है. इसलिए नहीं कि यहां एक मुख्यमंत्री अपनी रोजमर्रा की जिंदगी से इतर दूसरे स्वरूप में दिख रहा है बल्कि इसलिए कि दर्शन शास्त्र की शिक्षा में जो हासिल हुआ, उसे राजनीति में रमने के बाद भी बढ़ा रहे हैं. शिवराजसिंह चौहान दर्शनशास्त्र में गोल्ड मेडलिस्ट हैं. शिव समग्र हैं और यह समग्रता उनके वचन और कर्म में परिलक्षित होती है.
शिवराजसिंह चौहान बचपन से विरोधी स्वभाव के रहे हैं. अपने ही परिवार में श्रमिकों को पर्याप्त मजदूरी ना दिये जाने के खिलाफ आवाज बुलंद कर लीडरशिप के गुण से परिचय करा देते हैं. युवा शिवराजसिंह चौहान का तेवर में आज भी किंचित बदलाव नहीं दिखता है. जब आम आदमी के हक की बात होती है तो वे उन्हीं दिनों की ओर लौट जाते हैं. एक मुख्यमंत्री होने के नाते उनके पास अधिकार हैं तो कुछ मर्यादा भी है और इन दोनों के बीच वे मध्यमार्गी बनकर रास्ता तलाश कर लेते हैं. उनके भीतर की ताकत और सहज भाव उस ज्ञान से है जिसकी उन्होंने पढ़ाई की. याददाश्त ऐसी कि हजारों गांव में से भी एक एक व्यक्ति को उनके नाम से पुकार लेेते हैं. प्रशासन के दक्ष अफसरों को तब पसीना छूटने लगता है जब वे सवाल करते हैं कि उस हितग्राही का क्या हुआ जिसे सरकार ने खुद का व्यवसाय करने के लिए मदद की थी? हितग्राही भी इस बात से सकते में पड़ जाता है कि जब स्वयं मुख्यमंत्री उनसे सवाल करते हैं कि भई, हमने तो तुम्हें आर्थिक सहायता सब्जी के धंधे के लिए दी थी लेकिन तुम तो पापड़ बना रहे हो? कितना कमा लेते हो? घर-परिवार के बारे में, उनके सुख-दुख के बारे में जब जानकारी लेते हैं तो वे मुख्यमंत्री नहीं, अभिभावक बन जाते हैं.
मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के एजेंडे में बेटियां, किसान और आदिवासी पहले हैं. युवाओं की चिंता के साथ मध्यप्रदेश को आगे ले जाने की ललक के साथ योजनाओं को मूर्तरूप देते हैं. कोरोना जैसी महामारी में खुद मैदान में उतर कर लोगों को दिलासा देते देते स्वयं दो बार कोरोना पीडि़त हो जाने के बाद भी दैनंदिनी कार्यों को पूरा करते रहने का माद्दा उनमें है. वे चुनौती को संभावनाओं में बदल देते हैं. वे संकट का समाधान तलाश कर लेते हैं. वे मध्यप्रदेश को एक आदर्श प्रदेश बनाने में जुट जाते हैं और देश के कई राज्य उनके अनुगामी बनकर साथ चलते हैं. फिर वह बेटी बचाओ अभियान हो या मुख्यमंत्री तीर्थदर्शन योजना. शिवराज विनम्र हैं और वे सारी उपब्लिधयों को श्रेय मध्यप्रदेश की जनता को देते हैं और उसे ही अपना परिवार मानते हैं. उनकी कामयाबी के बढ़ते ग्राफ से खौफजदा उनके लिए विरोधियों के साथ उनके अपने ही उनके लिए कंटक भरा रास्ता बनाते हैं लेकिन उन्हें तब अपने पैर वापस खींचना पड़ता है जब प्रधानमंत्री स्वयं आगे आकर उनकी तारीफ करते हैं. बेटी बचाओ अभियान में जब प्रधानमंत्री बेटी पढ़ाओ जोडक़र मध्यप्रदेश के अभियान को देशव्यापी बना देते हैं. आज इसका सुफल इस बात से है कि देश में लिंगानुपात के आंकड़ें सुकून देते हैं कि थोड़ा ही सही, लेकिन बेटियों की संख्या में इजाफा हो रहा है. समाज का मन बदल रहा है.
नित नवाचार के लिए मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की अलग पहचान बनी हुई है. यह भी शायद पहली पहली बार हो रहा है कि कोई राज्य अपने शहरों का जन्मदिन मनाने जा रहा है. यह बात सही है कि अधिकांश लोगों को यह नहीं मालूम होगा कि उनके शहर का जन्मदिन कब है लेकिन अब अपने अपने शहर के जन्मदिन को लेकर विमर्श का सिलसिला शुरू हो चुका है. यह अलहदा कोशिश है जिसका परिणाम मुकम्मल होगा क्योंकि जन्मदिन मनाना एक औपचारिकता हो सकती है लेकिन जन्मदिन के बहाने अपने शहर के इतिहास से रूबरू हुआ जा सकेगा. शिवराजसिंह ने अपने प्रयासों से मध्यप्रदेश को एक लोककल्याणकारी राज्य के रूप में आकार दिया है. आत्मनिर्भरता की तमाम बुनियादी शर्तों को पूरा करने के अपने प्रयासों को उन्होंने सार्थक बनाया है. एक बीमारू प्रदेश की छवि से बाहर निकाल कर मध्यप्रदेश की पहचान विकसित प्रदेश के रूप में हो रही है.

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मनोज कुमार
सन् उन्नीस सौ पैंसठ के अक्टूबर माह की सात तारीख को छत्तीसगढ़ के रायपुर में जन्म। शिक्षा रायपुर में। वर्ष 1981 में पत्रकारिता का आरंभ देशबन्धु से जहां वर्ष 1994 तक बने रहे। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से प्रकाशित हिन्दी दैनिक समवेत शिखर मंे सहायक संपादक 1996 तक। इसके बाद स्वतंत्र पत्रकार के रूप में कार्य। वर्ष 2005-06 में मध्यप्रदेश शासन के वन्या प्रकाशन में बच्चों की मासिक पत्रिका समझ झरोखा में मानसेवी संपादक, यहीं देश के पहले जनजातीय समुदाय पर एकाग्र पाक्षिक आलेख सेवा वन्या संदर्भ का संयोजन। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी पत्रकारिता विवि वर्धा के साथ ही अनेक स्थानों पर लगातार अतिथि व्याख्यान। पत्रकारिता में साक्षात्कार विधा पर साक्षात्कार शीर्षक से पहली किताब मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी द्वारा वर्ष 1995 में पहला संस्करण एवं 2006 में द्वितीय संस्करण। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय से हिन्दी पत्रकारिता शोध परियोजना के अन्तर्गत फेलोशिप और बाद मे पुस्तकाकार में प्रकाशन। हॉल ही में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा संचालित आठ सामुदायिक रेडियो के राज्य समन्यक पद से मुक्त.

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