
अपने पड़ोसी चीन से म्यामार के वर्षों सम्बन्ध तनाव पूर्ण रहे है. पर २०१७ में स्थिति में बदलाव होना शुरू हुआ, जबकि अल्पसंख्यक रोहिंग्या मुसलमानों के ऊपर म्यामार सेना के कथित अत्याचार और उसके फलस्वरूप ७३०००० रोहींग्याओं के देश से पलायन को लेकर दुनिया भर में उसकी तीव्र आलोचना हुई. संयुक्त राष्ट्र संघ नें म्यमार की इस कार्यवाही को ‘जातीय सफाया’[ethnic cleansing] बताया था, तो जवाब में म्यमार नें रोहिंग्यों को ‘आतंकवादी’ ठहराया था.फिर हुआ यूँ कि अंतर्राष्ट्रीय युद्ध अपराध ट्रिब्यूनल में म्यामार के नेताओं के विरुद्ध कायर्वाही को लेकर कदम भी उठ गए थे, लेकिन चीन के बीच में आ जाने के कारण बात आगे न बढ़ सकी. इस में चीन को फिलिपीन और Burundi का साथ मिला था, और उनका दावा था कि उन्हें १०० देशों का समर्थन प्राप्त है.
चीन नें म्यामार में अपने व्यापारिक व सामरिक हितों को ध्यान रखकर ये फैसला लिया था. पर इसको लेकर देश में रोहिंग्याओं से सहानुभूति रखें वाले वामपंथीयों समेत नसरुद्दीन शाह जैसे फ़िल्मी जगत के ‘सेकुलरों’ नें तब वामपंथी चीन की खिलाफत में एक भी शब्द मुहं से नहीं निकाला था. चीन के ही सामान भारत भी अपने हितों को ध्यान में रखकर देश में घुस आये लोगों के विरुद्ध CAA कानून लागु कर सकता है, लेकिन ये ही लोग इस बात को सुननें और मानने के लिए अब तैयार नहीं. जावेद अख्तर, फ़रहान अख्तर, अरशद अयूब , जावेद जाफरी के बाद शायर मुनव्वर राणा तक नें इस मुहीम में अपनी आमद दर्ज करा दी है. मुनव्वर राणा की बेटियां तो उनसे कई कदम आगे निकल कानून को अपने हाँथ में लेने को उतारू हैं. जावेद अख्तर और मुनव्वर राणा की देश में छवि ‘सेक्युलर’ के रूप में विख्यात रही है. और उनकी कला के कद्रदान पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी कम नहीं. आज मुसलमान घुसपेठीयों को लेकर उनका दर्द छलक आया है . फिर क्यूँ मजहब से ऊपर उठकर उन्होंने वहां रहने वाले अल्पसंख्यकों के ऊपर होने वाले अमानवीय अत्याचारों के विरूद्ध कभी आवाज़ उठाने की जरूरत नहीं समझी.
अल्पसंख्यकों का पाकिस्तान में जीना वहां के इश-निंदा कानून के कारण से ज्यादा मुश्किल हो चला है, जिसमें मौत की सजा का प्रावधान शामिल है. इसकी गाज वहां रहने वाले ईसाई समाज के ऊपर ज्यादा गिरी है. २००५ में फैसलाबाद के ईसाईयों को इसलिये घर-बार छोड़कर भागना पड़ा था, क्योंकि किसी नें ये अफवाह फैला दी थी किसी ईसाई नें कुरान को जला डाला है. मुसलामानों की भीड़ नें चर्चों व इनके प्रतिठानों को आग के हवाले कर दिया था. ईसाई छात्रा रिम्श मसीह और एक अन्य महिला आयशा बीवी पर मढ़े गए इश-निंदा के प्रकरण नें तब खूब सुर्खियाँ बटोरी थी. ईश-निंदा कानून का विरोध करने के कारण से ही पाकिस्तान के ईसाई अल्पसंख्यक मंत्री भट्टी को २०११ में मार डाला गया था.
विभाजन के वक्त बाबा साहब अम्बेडकर के मना करने के बाद भी मुस्लिम लीग का साथ देते हुए पाकिस्तान जा बसे, वहां के प्रथम कानून मंत्री जोगेंद्र नाथ मंडल का पत्र -जो कि उन्होंनें तत्कालीन प्रधान मंत्री लियाकत अली खान को लिखा था- वहां की स्थिति बयान करने के लिए पर्याप्त है. उन्होंने लिखा था- ‘पूर्वी बंगाल में आज क्या हालात हैं? मुझे मुसलामानों द्वारा हिन्दुओं की बच्चीयों के साथ दुष्कर्म की लगातार ख़बरें मिल रहीं हैं. मुसलामानों द्वारा हिन्दू वकीलों,डॉक्टरों,व्यापारियों, दुकानदारों का बहिष्कार किया गया, जिसके बाद वो पलायन के लिए मजबूर हुए. हिन्दुओं द्वारा बेचे गए समान की मुसलमान पूरी कीमत नहीं दे रहे हैं. विभाजन के बाद पश्चिमी पंजाब में पिछड़ी जाति के एक लाख लोग थे. उनमें से बड़ी संख्या को बलपूर्वक इस्लाम में परिवर्तित कर दिया गया.मुझे एक सूची मिली है जिसके अनुसार ३६३ मंदिर और गुरुद्वारे मुस्लिमों के कब्जे में हैं. इनमें से कुछ को कसाई खाना और होटलों में तब्दील कर दिया है.’ और इसके बाद पाकिस्तान और उसके हुक्मरानों से मोह-भंग होने पर जोगेंद्र नाथ मंडल भारत लौट आये थे, और पश्चिम बंगाल में रहते हुए वहीँ पर ५ अक्टूबर, १९६८ को देह त्यागा. [पांचजन्य- १२ जन.,२०२०]
और इसके बाद भी अपनी तसल्ली के लिए ‘सेक्युलर’ चाहें तो ख्याति प्राप्त जैन मुनि प्रणाम सागर जी महाराज के सीएए पर उनके बयान पर गौर कर सकते हैं, जो कि उन्होनें भोपाल के अपने हाल के प्रवास पर पत्रकारों के बीच एक कार्यक्रम में दिया था. उन्होंनें कहा था-‘देश में धार्मिक कट्टरता की नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति के प्रति अगाध निष्ठा की जरूरत है. मेरी नजर में नागरिकता संशोधन कानून ५० साल पहले लागू हो जाना चाहिए था. हमें राजनेतिक विचारधारा से ऊपर उठकर देशहित को सर्वोपरि मानना चाहिए.’
आज कुछ लोग सेक्युलर ढोंग करके नागरिकता कानून का विरोध कर रहे है। उनको इस्लामिक देशो विशेषकर पाकिस्तान अफगानिस्तान और बांग्लादेश के अल्पसंख्यक आबादी के बारे में सोचना चाहिए।