जस करनी तस भोगहु ताता…….

विपिन किशोर सिन्‍हा

arvindkejriwalslapped-लोकतंत्र में हिंसा सर्वथा वर्जित है। मर्यादा में रहकर अपनी बात कहने का अधिकार सबको है।लेकिन वाणी, हथियार या थप्पड़ के माध्यम से जबरदस्ती अपनी बात मनवाने का अधिकार किसी को भी नहीं है। अमूमन हथियार या शारीरिक शक्ति का विरोधियों पर प्रयोग को ही हिंसा की मान्यता प्राप्त है। हमने वाणी की हिंसा को हिंसा न मानने की भूल हमेशा की है। इस चुनाव में वाणी की हिंसा अपने चरम पर है। विरोधियों पर बिना सबूत के अनर्गल आरोप लगाना, गाली-गलौज की भाषा का इस्तेमाल करना और दूसरों की भावनाओं को जानबूझ कर आहत करना आज का नेता-धर्म बन गया है। इस नेता-धर्म के निर्वहन में आप के नेता अरविन्द केजरीवाल अन्य नेताओं से मीलों आगे हैं। चूँकि इसका त्वरित लाभ उन्हें दिल्ली विधान सभा के चुनाव में बड़ी आसानी से मिल गया, उन्होंने ने इसे पेटेंट करा लिया। लोकसभा के चुनाव में उन्होंने अपनी इसी स्टाइल से जनता को लुभाने या गुमराह करने की कोशिश की। लेकिन उनके अपने ही गढ़, दिल्ली में ही उनके अपनों ने ही लघु हिंसा द्वारा अपना विरोध सार्वजनिक करना आरंभ कर दिया है।

पिछले मंगलवार के दिन रोड शो के दौरान आटो रिक्शा चालक लाली द्वारा केजरीवाल के गाल पर जड़ा जोरदार तमाचा और कुछ नहीं, जनता के टूटे हुए सपनों की प्रतिध्वनि है। इसके कुछ ही दिन पहले केजरीवाल जी दिल्ली में ही गर्दन पर घूंसा खा चुके हैं और वाराणसी में स्याही से अपना चेहरा काला करा चुके हैं। इन घटनाओं का जिक्र करने का यह मकसद कही से भी नहीं है कि लेखक इनका समर्थन करता है। ऐसी घटनाओं की जितनी भी निंदा की जाय, कम होगी। लेकिन यह प्रश्न स्वाभाविक रूप से उठता है की ये घटनाएँ आम आदमी के स्वघोषित प्रतिनधि के साथ ही क्यों घटित हो रही हैं? सभी नेता जनसभा और रोड शो कर रहे हैं लेकिन जनता के आक्रोश का शिकार सिर्फ केजरिवाल ही हो रहे हैं। देश की दुर्दशा के लिए सर्वाधिक जिम्मेदार शहजादे और मल्लिका-ए-हिंदुस्तान भी निर्द्वन्द्व अपने कार्यक्रम कर रहे हैं परन्तु जनता या तो उन्हें सुनती है या नहीं सुनती है; इस तरह का अपमानजनक व्यवहार नहीं करती है।केजरीवाल के अलावा किसी भी नेता ने जनता की भावनाओं से इतना निर्मम खिलवाड़ नहीं किया है। मात्र 49 दिनों में ही जनता के सपनों और आकाँक्षाओं को हिमालय के समान ऊंचाई देकर उसे बेवजह हिन्द महासागर में डुबो देने का अक्षम्य अपराध अरविन्द केजरीवाल ने ही किया है। जनता मतपत्र के माध्यम से विरोध करने का धैर्य खो रही है। यह कोई शुभ संकेत नहीं है बल्कि झूठे वादे करने वाले, सत्तालोलुप, अक्षम, विदेशी शक्तियों की कठपुतली बने भगोड़े नेताओं के लिए सन्देश है। अरविन्द केजरीवाल अपने ही कर्मों की फसल काट रहे हैं।

जस करनी तस भोगाहूँ ताता, नरक जात में क्यों पछताता?

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विपिन किशोर सिन्हा
जन्मस्थान - ग्राम-बाल बंगरा, पो.-महाराज गंज, जिला-सिवान,बिहार. वर्तमान पता - लेन नं. ८सी, प्लाट नं. ७८, महामनापुरी, वाराणसी. शिक्षा - बी.टेक इन मेकेनिकल इंजीनियरिंग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय. व्यवसाय - अधिशासी अभियन्ता, उ.प्र.पावर कारपोरेशन लि., वाराणसी. साहित्यिक कृतियां - कहो कौन्तेय, शेष कथित रामकथा, स्मृति, क्या खोया क्या पाया (सभी उपन्यास), फ़ैसला (कहानी संग्रह), राम ने सीता परित्याग कभी किया ही नहीं (शोध पत्र), संदर्भ, अमराई एवं अभिव्यक्ति (कविता संग्रह)

3 COMMENTS

  1. आदरणीय,
    विपीन जी।
    पूरा देश और केजरीवालजी यह जानने को उत्सुक थे कि आखिर केजरीवाल जी को ही थप्पड क्यो? इसके पीछे मास्टर मांइड कौन? आपके लेख के अन्तिम पेैरा ने इसका उत्तर दे दिया है। एक दूसरे को मोहब्बत करने वाले भी इतनी जल्दी एक दूसरे का दिल नही तोडते। महज उन्नचास दिन में जनता के सपनो से खिलवाड करने वाले आज खुद दिग्भ्रमित होकर चौराहे पर खडे है। काश राजनेता इस दर्द को समझ पाते, एक दिन की कमाई तीन सौ रूपया और अपने सपनो के लिये पर्ची कटाई पॉच सॉै रूपये का। सपनो के टूटने का दर्द क्या होता है काश कोई पूछे इन गरीबो से। इन गरीबो को थप्पड से नही सपनो के टूटने से दर्द होता है बाबूजी। फिर भी इस हिंसा का हम विरोध ही करेगें।
    आपका
    अरविन्द

  2. बड़ी सीधी सी बात है अगर आम जनता आआपा से चिढ़ी बैठी है तो बाकि सब आपिये भी मार खाएं, लेकिन नहीं और कोई मार नहीं खा रहा है सिर्फ और सिर्फ हरिश्चंद्र जी महाराज ही मार खा रहे हैं,
    मैच फिक्स है। इंटरव्यू की फिक्सिंग आपने देखी ही होगी। क्रन्तिकारी वाली। योगेन्द्र यादव जी के ऊपर भी इंक फेंकी गई थी, लेकिन नतीजा क्या रहा ? एक धेला भी चंदे के रूप में उनके खाते में नहीं आया। जैसे मोदी जी अपने दम पर भाजपा को लिए घूम रहे हैं उसी तरह अरविन्द जी भी अपने कंधे पे आआपा का भार लिए घूम रहे हैं, मार खा रहे हैं लेकिन पैसे पूरे ला रहे हैं। वो गाना सुना है ना “जूते दो पैसे लो “

  3. अरे सिन्हा साहब प्रायोजित कार्यक्रम देखिये। कुछ भी बक झक होते ही चंदे की रकम की आमद बढ़ जा रही है ये भी तो देखिये। लगता है की फिक्सिंग हुई हो। एक थप्पड़ खाऊंगा लेकिन पैसे पूरे आने चाहिए। ये गलत था की पट्ठे ने थोड़ा खींच के रख दिया था। हर जगह एक ही आदमी मार खा रहा है और मार भी आपिये रहे हैं, कोई दूसरा तो मार भी नहीं रहा है।

    चंदे के कद्रदान बैठे हैं, कार्यक्रम पूरा प्रायोजित है। टेंशन मत लीजिये “आप”। ये इज्जत वाला आप बोल रहा हूँ यू टर्न वाला नहीं। हा… हा… हा….

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