श्री गुरुजी और पत्रकारिता

– डॉ. मनोज चतुर्वेदी

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सर संघचालक श्री गुरुजी उपाख्य माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर समाजसेवी, संत, समाज सुधारक, वैज्ञानिक, शिक्षाविद होने के साथ ही उत्कृष्ट पत्रकार दृष्टि भी रखते थे। जिस तरह देवर्षि नारद के मन में राष्ट्र की आराधना के साथ ही जगत की सेवा का भाव निहित था, ठीक उसी तरह श्री गुरुजी अनथक, अविरल भाव से मन, वचन एवं कर्म द्वारा निरंतर राष्ट्र की दिशा-दशा कैसी हो तथा इसमें लेखनी का स्थान किस प्रकार हो, इन मुद्दों पर लगातार चिंतन-मनन करते रहते थे। उनके मन में मात्र एक ही भाव था कि भारत माता किस प्रकार परम वैभव के पद को प्राप्त करें तथा कोटि-कोटि स्वयंसेवकों में ‘स्व’ के स्थान पर ‘राष्ट्रभाव’ का विकास हो, इन्हीं विचारों को गांठ बांधकर वे सदा चला करते थे। पत्रकारिता तो सूचनाओं का जाल है जिसमें पत्रकार सूचनाओं को देने के साथ समान्य जनता को दिशा निर्देश देता है। उनका पथ-प्रदर्शन करता है। एक प्रकार से कहा जाए कि पत्रकारिता वह ज्ञानचक्षु है जिसके माध्यम से पत्रकार अपने विचारों को व्यक्त करता है। पत्रकार मातृभूमि के अराधना अपनी लेखनी से करता है। उसका एकमात्र लक्ष्य देशहित होता है। जिसके द्वारा वह देश के समक्ष उपस्थित चुनौतियों पर लेखनी तो चलाता है। उसके साथ-ही-साथ उन चुनौतियों का समाधान भी वह देने का प्रयास करता है। वह बताना चाहता है कि अन्य समस्त कार्य तो व्यवसाय है पर पत्रकारिता एक मिशन है। प्रसिद्धिपरांगमुखता या आत्मश्लाघा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रकृति में नही है। संघ भारतीय संस्कृति का वाहक है, तो भला उसमें यह भाव कैसे हो सकता है? आम जनता के अंदर आत्मप्रशंसा या आत्मश्लाघा की बड़ी ही विकट स्थिति है। मनुष्य कुछ करता नहीं, लेकिन वह अखबारों में चित्र एवं समाचारों में छा जाना चाहता है। अपने ‘मुंह मियां मिट्ठू’ बनने की यह प्रवृति देश-समाज के लिए घातक है। झुठी प्रशंसा या अखबारों के समाचारों से कुछ होता है क्या? यदि हमें देश के लिए कुछ करना है, तो हमें लोग अखबारों के माध्यम से नहीं बल्कि कर्म के माध्यम से जानें। बात 28 अगस्त, 1954 की है। श्रीगुरुजी ने ‘आर्गेनाइजर’ में छपे एक समाचार में कहा था कि यद्यपि आप सभी ने वहां तन, मन एवं धन से सेवा की परंतु वर्षा एवं बाढ़ में जो सेवा आप सभी ने किया है, वह आनंद देने वाला है। किंतु समाचार देते समय आत्मश्लाघा एवं अहंकार प्रदर्शित करना उचित नहीं है। समाचार देते समय ‘समाज में सभी लोग संघ की प्रशंसा कर रहे हैं’, ऐसा कहना आपके मूंह से शोभा नहीं देता। यही समाचार यदि वहां के किसी मान्य नागरिक के नाम से दिया गया तो बहुत ही अच्छा होता। आज पत्रकारिता के समक्ष सबसे बड़ी समस्या है। किसी भी घटना को बढ़ा-चढ़ाकर देना। क्या यह किसी भी समाचार या घटना के साथ खिलवाड़ नहीं है? क्योंकि इस प्रकार के समाचारों से समाज में गलता संदेश जाता है। यह ठीक है कि पत्रकारिता का आधार सत्य एवं किसी घटना के ‘एक्सक्लूसिव रिपोर्टिंग’ से है लेकिन सत्य घटनाओं को दबाकर तथा गलत घटनाओं को छापना भी समाज हित में नहींहै। पत्रकारिता मात्र विरोधियों का छिद्रांवेषण करना तथा अपने समर्थकों का यशोगान नही है। श्री गुरुजी ने कहा कि पत्रकारिता सत्य और ॠत बोलने का प्रण लेकर किया जाने वाला वह माध्यम है जिसमें समाज को एक लक्ष्य के तरफ उन्मुख होना पड़े। सत्य तो हम बोले लेकिन वह सत्य रूक्ष, अनृत तथा दूसरों को चुभने वाला भी न हो। उपरोक्त बातों से ऐसा प्रतीत होता है कि श्रीगुरुजी सत्य घटनाओं के संप्रेषण को सही तो मानते थे लेकिन जिस सत्य घटना से व्यक्ति, समाज एवं राष्ट्र में विघटन की स्थिति पैदा हो जाए, समाज में हिंसा, संघर्ष एवं सांप्रदायिक दंगों की स्थिति उपस्थित हो जाए, वह पत्रकारिता नहीं है। श्रीगुरुजी ने कहा है कि सत्य की साधना ‘बहुजन हिताय बहुजन सुखाय’ ही होती है। पत्रकारिता सामाजिक क्षेत्र की साधना है, यह आध्यात्मिक क्षेत्र का तप नहीं है। सामाजिक क्षेत्र का सत्य वही है जिनसे जन का कल्याण होता है, देश का कल्याण होता है। श्री गुरुजी की प्रेरणा से हिन्दुस्थान समाचार की शुरूआत हुई क्योंकि श्री गुरुजी पत्रकारिता की नारद शैली को ही पत्रकारों के लिए आदर्श मानते थे। जिस प्रकार आदि पत्रकार नारद तीनों लोकों में घूम-घूमकर सत्याधारित समाचारों को पहुंचाया करते थे। ठीक उसी प्रकार श्रीगुरुजी का मानना था कि पत्रकार नारद के समाचारों को भड़काऊ तथा व्यक्तिगत रूप से अनिष्ट माना जाता था तथा उसे आग्रह्य भी समझने का प्रयास होता था। पत्रकारों को आपातकाल में तमाम संकटों का सामना करना पड़ा था। लेकिन उन्होंने लाठी-ठंडे तथा कारावास की सजा को खेल समझकर अपने पत्रकारीय जीवन का सरल, सहज ढंग से पालन किया। आज श्री गुरुजी के विचारों के अनुसार पत्रकारिता का उद्देश्य जनकल्याण के साथ ही राष्ट्र कल्याण होना चाहिए। आज हमें गुरुजी के विचारों को आत्मसात करके राष्ट्रवादी विचारधारा को सबल एवं सशक्त बनाना है। हमारे जीवन का लक्ष्य ‘राष्ट्र सर्वोपरि’ होना चाहिए। राष्ट्र यदि नहीं रहेगा, भारत नही रहेगा तो हम कहां रहेंगे। यह ठीक है कि आज पत्रकारिता के मूल में समाचार निहित है तथा समाचार तथ्यों पर आधारित होते हैं। हमें तथ्यों को निरपेक्ष रूप से देने की जरूरत है उसमें छेड़छाड़ पत्रकारिता के नारदीय शैली के विरूद्ध है, श्री गुरुजी का यही मानना था। सज्जन पत्रकारिता का अर्थ मात्र समाचार संकलन और समाचार संप्रेषण से लगाते है। लेकिन यह अपने आप में पूर्ण नहीं है। एक पत्रकार समाचार के तह में जाकर उसके तथ्यों का विश्लेषण तटस्थ और निरपेक्ष भाव से जब करता हैतो वह पत्रकारिता राष्ट्रवादी ही नहीं मानव समाज की पत्रकारिता कहलाती है। श्री गुरुजी का बराबर यह जोर रहता था कि हम पत्रकारिता राष्ट्रीय हितों को ध्यान रखकर करें इस दृष्टि से पत्रकारिता राष्ट्रहित के संवर्धन और सशक्तिकरण में चौथे स्तंभ के रूप में स्थापित हो जाती है। तभी तो किसी ने कहा था – ‘जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार क्या निकालो’। राष्ट्रीय आंदोलन के समय एक कवि ने लिखा – दो में से तुम्हें क्या चाहिए? कलम या तलवार। अर्थात् कहने का तात्पर्य यह है कि कलम से तलवार मजबूत है या तलवार से कलम मजबूत है? इस पर बहस हम कुछ भी करें। लेकिन पत्रकारिता एक दुधारी तलवार है। जिसके माध्यम से हम सामाजिक समस्याओं का समाधान देते हैं न कि उससे हिंसा इत्यादि करते है। इसमें कोई दो मत नहीं कि राष्ट्रीय समस्याओं के संदर्भ में हमारे बीच मतभेद हो सकते हैं, पर मनभेद नहीं होना चाहिए। मनभेद और मतभेद बहुत बड़ा अंतर है। यद्यपि भारत में पत्रकारिता के मुख्य मुद्रण-प्रकाशन पर जब हम दृष्टि डालते हैं तो उसमें 29 जनवरी, 1780 में जेम्स आगस्टस हिक्की द्वारा प्रकाशित ‘हिक्की गजट’ से लिया जाता है। लेकिन क्या इससे पूर्व भारत में पत्रकारिता नहीं था? यह कहना ठीक नहीं होगा। देवर्षि नारद तथा महाभारत काल में युद्धक्षेत्र में संजय द्वारा धृतराष्ट्र को एक-एक घटनाओं का चित्रण कराना पत्रकारिता नहीं तो और क्या था?

1813 के चार्टर के अनुसार जिस तरह बहुराष्ट्रीय कंपनियों का भारतभूमि पर पदार्पण हुआ तथा उनका हित राष्ट्रीय हित न होकर विदेशियों एवं साम्राज्यवादियों का पृष्ठ पोषण करना ही था। उसी प्रकार भारतीय संस्कृति एवं भारतीय जीवन-मूल्यों पर कुठाराघात करना ही उनकी पत्रकारिता का लक्ष्य था। श्रीगुरुजी ने बहुत ही बारीकी से उपरोक्त संस्थाओं का अध्ययन किया था और उसके विकल्प के रूप में ‘पांचजन्य’, ‘राष्ट्रधर्म’, ‘दैनिक स्वदेश’ तथा एकमात्र संवाद समिति ‘हिन्दुस्थान समाचार’ की स्थापना में मार्गदर्शन किया।

* लेखक, पत्रकार, कॅरियर लेखक, फिल्म समीक्षक, समाजसेवी, नवोत्थान लेख सेवा, हिन्दुस्थान समाचार में कार्यकारी फीचर संपादक तथा ‘आधुनिक सभ्यता और महात्मा गांधी’ पर डी. लिट् कर रहे हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

12,746 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress