हिंदुस्तान के सबसे बड़े आंतरिक विवाद ‘मंदिर निर्माण‘ पर अगर मध्यस्थता से कोई हल निकलता है तो मील का पत्थर कहा जाएगा। क्योंकि समूचा हिंदुस्तान उम्मीद लगाए बैठा है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित ‘मध्यस्थता समिति‘ पहाड़ जैसे विवादित ‘रार‘ को निपटाकर एक मिशाल पेश करे, जिससे एक बार फिर दोनों समुदायों के बीच अमन की बहाली हो सके। अयोध्या में भगवान राम की जन्मस्थली पर सदियों से विवादों में घिरे मंदिर निर्माण अडं़गे को सुलझाने के लिए ‘मध्यस्थता‘ रूपी आखिरी रास्ता खोजा गया है। सुखद यह है इसकी पहेल राजनेताओं की ओर से नहीं, बल्कि अदालत ने की है। हिंदू-मुसलमानों के दरमियान विवादित राम मंदिर निर्माण की जटिलता के समाधान के लिए ‘मध्यस्थता‘ को आखिरी दांव माना जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्तथा के लिए तीन विशेष लोगों का चुनाव किया है। सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता में पांच जजों वाली पीठ ने तीन सदस्यों को मध्यस्थता की जिम्मेदारी सौंपी है। समिति में आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर और वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीराम पंचू हैं जबकि प्रमुखता की भूमिका सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस फ़कीर मोहम्मद इब्राहिम ख़लीफ़ुल्ला निभाएंगे।
दुनिया में अमन-शांति की वकालत करने वाला मात्र एक मुल्क ‘हिंदुस्थान‘ जो सदियों से अपने दो गंभीर आंतरिक मसलों से कराह रहा है। एक घरेलू है तो दूसरा इंटरनेशनल? लाख कोशिशों के बाद भी ये दोनों कारण सुलझने का नाम नहीं ले रहे। पहला, सरहद पर पाकिस्तान और भारत के बीच व्याप्त तनाव, जो घटने के बजाय बढ़ता जा रहा है, वहीं दूसरा मसला, राम मंदिर निर्माण, जो आजादी के बाद से अबतक का सबसे नासूर जनाक्रोशी मुद्दा बना हुआ है। अयोध्या में राम जन्म भूमि स्थान पर भगवान का मंदिर निर्माण इस वक्त चर्चाओं का केंद्र बना हुआ है। गौरतलब है कि विवादित मसले को सुलझाने के लिए पूर्व में भी हर तरीके की कोशिशें की गईं, लेकिन नजीता कुछ खास नहीं निकला? मध्यस्थता पहले भी हुईं, जिसमें सभी धर्मा के विशेष लोगों ने प्रयास किए। लेकिन जनाक्रोश के चलते किसी की कोई दलीलें नहीं सुनी गईं। हिंदू किसी भी सूरत में अयोध्या में मंदिर का निर्माण चाहते हैं। कमोबेश उसी तरह मुसलमान भी वहां मस्जिद निर्माण पर अड़े हुए हैं।
सियासी पार्टियों ने इस मुद्दे को नासूर बनाकर छोड़ दिया है। दोनों प्रमुख पार्टियों भाजपा-कांग्रेस के अलग-अलग रूख हैं। भाजपा मंदिर निर्माण के पक्ष में है, तो वहीं कांग्रेस का ढुलमुल रवैया हमेशा सामने आता रहा है। मंदिर निर्माण को लेकर जनता का भारी दबाव है। इसलिए गेंद अब कोर्ट के पाले में चली गई है। खैर, कोर्ट अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह करते हुए मसले का हल अपने स्तर से खोजने में जुटा है। श्रीश्री रविशंकर, श्रीराम पंचू व फ़कीर मोहम्मद इब्राहिम ख़लीफ़ुल्ला की मध्यस्थता उसी दिशा में उठाया हुआ कदम है। इसमें कितनी सफलता मिलेगी, इस बात की फिलहाल कोई गारंटी नहीं? मध्यस्थता पर लोग अभी से संदेह करने लगे हैं। लोगों का तर्क है कि मसला उत्तर भारत से जुड़ा है और सुलझाने के लिए दक्षिण भारत के लोगों को चुना गया है। मध्यस्थता करने वाले तीनों लोग दक्षिण भारत से ताल्लुक रखते हैं। साधु-संत, हिंदु संगठन, मंदिर प्रेमी व सनातन धर्म के लोग अभी से मध्यस्थता को नकारकर चल रहे हैं। उनका तर्क है कि इस प्रयोग से सुप्रीम कोर्ट और मध्यस्थता के लिए चुने गए तीनों लोगों का समय बर्बाद होगा। नजीता कुछ भी नहीं निकलेगा।
राम जन्म भूमि की बात न करें तो मध्यस्थता से पूर्व में कई बड़े मसले सुलझने हैं। विवादित मुद्दों को हल करने के लिए मध्यस्थता का इस्तेमाल सबसे पहले भारत में किया गया। इसके बाद दूसरे मुल्कों ने अपनाया। कई देशों ने तो भारत का सहयोग भी मांगा। हिंदुस्थान में जटिल कानूनी प्रक्रिया के सरलीकरण, अप्रासंगिक कानूनों को समाप्त करने और मध्यस्थता कानून को सदृढ़ बनाने की ठोस पहल की, और अब भारत को मध्यस्थता कानून के वैश्विक केंद्र के रूप में स्थापित करने की भी केंद्र सरकार कोशिश कर रही है। पिछले दिनों एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मध्यस्थता तथा व्यवहार पंचाट को सुदृढ़ बनाने के लिए राष्ट्रीय पहल विषय पर देश में मध्यस्थता तथा व्यवहार कानून को मजबूत बनाने के लिए पहले वैश्विक सम्मेलन को संबोधित करते हुए विशेषज्ञों से अनुरोध किया कि मध्यस्थता कानून को अंतरराष्ट्रीय स्तर की सुदृढ़ता प्रदान की जानी चाहिए, ताकि भारत को मध्यस्थता के वैश्विक केंद्र के रूप में विकसित किया जा सके। उनका सोचना सही है लेकिन इसे जनमानस मान्यता दे, ये बड़ा सवाल है?
किसी भी देश की आर्थिक प्रगति के लिए इस तरह के कानून का अंतरराष्ट्रीय स्तर का होना आवश्यक होता है। क्योंकि सभी मसलों को कोर्ट व पुलिस-प्रशासन के हवाले नहीं किया जाना चाहिए। कानूनी जटिलता को दूर करके समस्याओं के समाधान के लिए मध्यस्थता और सुलह के साथ ही अन्य वैकल्पिक समाधान पर ध्यान देने की जरूरत है ताकि निवेशकों और व्यावसायियों को अतिरिक्त सुविधा दी जा सके ताकि देश की अदालतों पर लगातार बढ़ रहे बोझ को कम किया जा सके। सदियों पहले बनें निष्प्रभावी कानूनों को समाप्त किया जाना चाहिए। अगर मंदिर विवाद के लिए गठित मध्यस्थता समिति कुछ हल निकाल पाती है तो भविष्य में मध्यस्थता कानून को भारत में प्रभावी बनाने की राह में मील का पत्थर साबित होगा।
मध्यस्थता रूपी हिंदुस्थान को यह काननू अंतरराष्ट्रीय व संयुक्त राष्ट्र के आयुक्त द्वारा अनुमोदित है। मध्यस्थता के जरिए विवादों का समाधान बहुत आसानी से हो सकता है और इसमें संभावनाएं भी व्यापक हैं लेकिन इसे ज्यादा प्रभावी बनाने के लिए पूर्व में ठोस प्रयास नहीं किए गए। लेकिन मौजूदा समय में मध्यस्थता कानून को ज्यादा तवज्जों दी जा रही है। हमें उम्मीद करनी चाहिए कि मंदिर विवाद के लिए बनाई गई तीन लोगों की मध्यस्था समिति अपने मिशन में सफल हो। और नासूर बनें इस मसले का हल निकल सके जिससे देश में दोनों समुदाय के बीच अमन की बहाली हो सके। ताकि सभी लोग खुशहाली से रह सकें। मध्यस्थता से हर वर्ग को बहुत उम्मीदें हैं। सभी अच्छे परिणाम की राहें ताक रहे हैं। लेकिन ये तो वक्त ही बताएगा कि परिणाम क्या आएंगे।