सिंधु ने रचा इतिहास

भारतीय बैडमिंटन की प्रिंसेस पीवी सिंधु

2013 में पहली बार विश्व बैडमिंटन चैम्पियनशिप में कदम रखने वाली भारत की
बैडमिंटन खिलाड़ी पी वी सिंधु ने 25 अगस्त को स्विट्जरलैंड के बासेल शहर में बीडब्ल्यूएफ
विश्व चैम्पियनशिप के फाइनल मे अपने कौशल, फिटनेस और मानसिक शक्ति का प्रदर्शन करते
हुए जापान की नोजुमी ओकुहारा को 21-7, 21-7 से मात देकर विश्व बैडमिंटन चैम्पियनशिप का
महिलाओं का एकल खिताब अपने नाम करके एक नया इतिहास रच दिया और साथ ही नोजुमी
से दो वर्ष पहले 2017 के फाइनल में मिली हार का हिसाब भी चुकता कर लिया। 2017 और
2018 में उन्हें रजत पदक से ही संतोष करना पड़ा था लेकिन अब वह यह प्रतिष्ठित
चैम्पियनशिप जीतने वाली पहली भारतीय शटलर बन गई हैं। उनसे पहले कोई भी भारतीय पुरूष
या महिला खिलाड़ी यह कारनामा नहीं कर सका है। पूरे फाइनल मैच में जापान की तीसरी
वरीयता प्राप्त नोजोमी ओकुहारा पांचवी वरीयता प्राप्त सिंधु के सामने कही नहीं टिकी। खुद
सिंधु ने भी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि फाइनल मुकाबला इस कदर एकतरफा होगा।
दरअसल सिंधु ने अपनी पुरानी कमियों को ध्यान में रखते हुए उनसे उबरकर फाइनल खेला और
उसका भरपूर फायदा उन्हें इस टूर्नामेंट में मिला। हालांकि उन्होंने इस साल कोई भी खिताब नहीं
जीता था, इसलिए उनसे यह करिश्मा कर दिखाने की उम्मीद कम ही थी लेकिन जब सिंधु ने
क्वार्टर फाइनल में दूसरी वरीयता प्राप्त ताईवान की ताई जू यिंग को मुकाबले में हरा दिया, तब
उनका आत्मविश्वास बढ़ गया। इसी आत्मविश्वास के साथ उन्होंने सेमीफाइनल मुकाबले में चीन
की चेन यू फेई को बेहद आसानी से 21-7, 21-14 से हराया और फाइनल में तो इतना तेज मैच
खेला कि मुकाबले को एकतरफा बनाकर शानदार और दमदार जीत हासिल की। इससे पहले वह
वर्ष 2013 और 2014 में कांस्य पदक तथा 2017 और 2018 में रजत पदक जीत चुकी थी और
विश्व चैम्पियनशिप में उनके खाते में केवल स्वर्ण पदक की कमी थी, जो पूरी हो गई है। 2013
में पहली बार इस टूर्नामेंट में हिस्सा लेने के बाद से सिंधु अब तक इसमें कुल पांच दशकों के

साथ 21 मैच जीत चुकी हैं। अभी तक इसमें उनसे ज्यादा पदक कोई भी महिला खिलाड़ी नहीं
जीत सकी है।
2016 के रियो ओलम्पिक में रजत पदक विजेता और गत वर्ष राष्ट्रमंडल खेलों, एशियाई
खेलों तथा विश्व चैंम्पियनशिप में रजत पदक जीतने के बाद इस वर्ष विश्व चैम्पियन बनकर पी
वी सिंधु (पुसरला वेंकट सिंधु) ने हर भारतीय का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया है। यह खिताबी
जीत हासिल कर उन्होंने भारतीय बैडमिंटन के इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय जोड़ दिया है।
वह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उस समय सुर्खियों में आई थी, जब 2013 में चीन के ग्वांगझू में
आयोजित विश्व बैडमिंटन चैम्पियनशिप में कांस्य पदक जीतकर वह यह सफलता हासिल करने
वाली पहली भारतीय खिलाड़ी बनी थी और उसके अगले ही वर्ष कोपेनहेगन में फिर से इसी
सफलता को दोहराकर उन्होंने हर किसी का ध्यान आकर्षित किया था। सिंधु को अभी तक
फाइनल मुकाबलों में कुल 14 बार शिकस्त झेलनी पड़ी है जबकि वह अपने कैरियर में एक
दर्जन से भी अधिक खिताब अपने नाम कर चुकी हैं। पिछले साल उन्हें विश्व चैम्पियनशिप,
एशियाई खेलों, राष्ट्रमंडल खेलों, थाईलैंड ओपन तथा इंडिया ओपन के फाइनल में हार का सामना
करना पड़ा था लेकिन जब उन्होंने गत वर्ष जापान की नोजोमी ओकुहारा को शिकस्त देकर
‘विश्व टूर फाइनल्स’ खिताब जीता था, जिसे पहले ‘सुपर सीरिज फाइनल्स’ के नाम से जाना
जाता था तो वह यह खिताब जीतने वाली पहली भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी बनी थी। उस
टूर्नामेंट में भी लगातार तीन बार खेली लेकिन 2016 में सेमीफाइनल में पराजित हो गई थी
जबकि 2017 में फाइनल में मुकाबला हारकर उन्हें रजत पदक से संतोष करना पड़ा था। भारत
की ओर से साइना नेहवाल ने इसी टूर्नामेंट के लिए कुल सात बार क्वालीफाई किया और टूर्नामेंट
के फाइनल तक भी पहुंची थी किन्तु खिताब जीतने में असफल रही थी लेकिन सिंधु ने पिछले
साल वह टूर्नामेंट जीतकर और अब विश्व चैम्पियनशिप जीतकर साबित कर दिया है कि मौजूदा
वक्त में भारतीय बैडमिंटन की प्रिंसेस वही हैं।
सिंधु के बारे में विख्यात खिलाड़ी और उनके कोच गोपीचंद फुलेला कहते हैं कि वह छुपी
रूस्तम साबित होती है। दरअसल सिंधु अक्सर विश्व वरीयता प्राप्त खिलाडि़यों को मुकाबले में
परास्त कर चौंकाती रही हैं किन्तु जब उनका मुकाबला कम रैकिंग वाली खिलाडि़यों से होता है
तो कई बार उनसे हार जाती हैं। रियो ओलम्पिक में भी वह उच्च रैंकिंग वाली खिलाडि़यों को
हराकर फाइनल तक पहुंची थी। गत वर्ष के एशियाई खेलों में वह भारत का 36 वर्षों का सूखा
खत्म करते हुए ताइवान की ताई जू यिंग को हराकर रजत पदक जीतने में सफल रही थी। जिस
उम्र में बच्चे पड़ोस में जाने से भी डरते हैं, 8-9 साल उस छोटी सी उम्र में सिंधु प्रतिदिन 56

किलोमीटर की दूरी तय कर बैडमिंटन कैंप में ट्रेनिंग लेने जाया करती थी। आंध्र प्रदेश के
हैदराबाद में 5 जुलाई 1995 को पेशेवर वालीबॉल खिलाडि़यों पी.वी. रमण और पी. विजया के घर
जन्मी पीवी सिंधु को खेलों के प्रति जुनून अपने माता-पिता से विरासत में ही मिला था किन्तु
उन्होंने वालीबॉल के बजाय बैडमिंटन को अपने कैरियर के लिए चुना। दरअसल उनके माता-पिता
दोनों ही पेशेवर वालीबॉल खिलाड़ी रहे हैं। उनके पिता पीवी रमण को तो राष्ट्रीय वालीबॉल में
उल्लेखनीय योगदान के लिए वर्ष 2000 में भारत सरकार का प्रतिष्ठित अर्जुन पुरस्कार प्राप्त हो
चुका है।
सिंधु ने मात्र 6 साल की उम्र में ही 2001 के ऑल इंग्लैंड ओपन बैडमिंटन चैम्पियन बने
पुलेला गोपीचंद से प्रभावित होकर बैडमिंटन को अपना कैरियर चुन लिया था और 8 साल की
उम्र से ही सक्रिय रूप से बैडमिंटन खेलना शुरू कर दिया था। शुरूआत में उन्होंने सिकंदराबाद में
इंडियन रेलवे सिग्नल इंजीनियरिंग और दूरसंचार के बैडमिंटन कोर्ट में महबूब अली के मार्गदर्शन
में बैडमिंटन की बारीकियां सीखी और कुछ ही समय बाद पुलेला गोपीचंद की बैडमिंटन अकादमी
में शामिल होकर गोपीचंद के मार्गदर्शन में अपने खेल को निखारती चली गई। उसी का नतीजा
है कि आज वह भारतीय बैडमिंटन का जगमगाता सितारा बन चुकी हैं। गोपीचंद फिलहाल
भारतीय बैडमिंटन टीम के मुख्य कोच हैं।
एक के बाद एक मिली सफलताओं ने विश्व वरीयता प्राप्त भारतीय महिला बैडमिंटन
खिलाड़ी पीवी सिंधु को सदैव सुर्खियों की सरताज बनाए रखा है। वह 2009 में कोलंबो में
आयोजित उप-जूनियर एशियाई बैडमिंटन चैंम्पियनशिप में कांस्य पदक, 2010 में ईरान फज्र
अंतर्राष्ट्रीय बैडमिंटन मुकाबले में महिला एकल में रजत पदक, 2011 में डगलस कॉमनवेल्थ यूथ
गेम्स में स्वर्ण पदक, जुलाई 2012 में एशिया युवा अंडर-19 चैम्पियनशिप, दिसम्बर 2013 में
मलेशियाई ओपन के दौरान महिला सिंगल्स का ‘मकाऊ ओपन ग्रैंड प्रिक्स गोल्ड’ खिताब, 2013
तथा 2014 में विश्व चैम्पियनशिप में कांस्य पदक, 2016 में गुवाहाटी दक्षिण एशियाई खेलों में
स्वर्ण पदक, 2016 में रियो ओलम्पिक में रजत पदक जीत चुकी हैं। सिंधु ने ब्राजील के रियो डि
जेनेरियो में आयोजित 2016 के ग्रीष्मकालीन ओलम्पिक खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व किया
था और महिला एकल स्पर्धा के फाइनल में पहुंचने वाली वह पहली भारतीय महिला खिलाड़ी
बनी थी। ओलम्पिक खेलों में भारत की ओर से महिला एकल बैडमिंटन का रजत पदक जीतने
वाली सिंधु पहली खिलाड़ी हैं। उससे पहले वे भारत की नेशनल चैम्पियन भी रह चुकी थी।
नवम्बर 2016 में उन्होंने चीन ओपन खिताब भी अपने नाम किया था।

सिंधु चीन के ग्वांग्झू में आयोजित 2013 की विश्व बैडमिंटन चैम्पियनशिप में एकल
पदक जीतने वाली भी पहली भारतीय महिला बैडमिंटन खिलाड़ी हैं, जिसमें उन्होंने ऐतिहासिक
कांस्य पदक जीता था। वर्ष 2014 में उन्हें एनडीटीवी द्वारा ‘इंडियन ऑफ द ईयर’ घोषित किया
गया था। 2013 में सिंधु को ‘अर्जुन पुरस्कार’ तथा 30 मार्च 2015 को भारत के चौथे सर्वोच्च
नागरिक सम्मान ‘पद्मश्री’ से भी सम्मानित किया जा चुका है। वह केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल
(सीआरपीएफ) और विजाग स्टील की ब्रांड एम्बेसडर हैं। सिंधु भारत के आर्थिक रूप से सम्पन्न
खिलाडि़यों में से एक हैं। पिछले साल फोर्ब्स पत्रिका द्वारा जारी विश्व में सर्वाधिक कमाई करने
वाली शीर्ष 10 महिला खिलाडि़यों की सूची में सिंधु सातवें स्थान पर रही थी। बहरहाल, सिंधु इस
समय जिस बेहतरीन फॉर्म में हैं और दुनिया की चोटी की खिलाडि़यों को जिस प्रकार धूल चटा
रही हैं, उससे वो भारतीय बैडमिंटन के सुखद भविष्य की उम्मीदें जगा रही हैं और अब उनका
अगला लक्ष्य टोक्यो ओलम्पिक-2020 है तथा ओलम्पिक में स्वर्ण जीतना ही उनका सपना है।
उम्मीद की जानी चाहिए कि ओलम्पिक में स्वर्ण जीतने का सिंधु का सपना साकार होगा और
वो ओलम्पिक में भी सफलता का इतिहास रचकर भारत का नाम रोशन करेंगी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं)

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