सिन्धु दर्शन उत्सव 2011

कमल खत्री

15वें सिन्धु दर्शन उत्सव का आगाज 21 जून को दिल्ली में विदाई समारोह से हुआ। 22 जून को फ्लाइट से जाने वाले यात्री न्यू रोहतक रोड पर स्थित सनातन धर्म सभा के सभागार में इक्टठा हुए। इससे पूर्व सड़क मार्ग से जाने वाले यात्रियों को सिन्धु भवन राजेन्द्र नगर से 19 जून को विदाई दी गई। ये यात्री मनाली मार्ग से जाने वाले थे।

सिन्धु दर्शन उत्सव के प्रथम दिन लेह के मुख्य बाजार में स्थित शंकर गुम्फा (चोगंम विहार गोम्पा) में कैलाश मानसरोवर मुक्ति संकल्प सभा का आयोजन किया गया। शिव स्थली कैलाश मानसरोवर के लिए लेह के कारू से रास्ता खोले जाने की मांग हिमालय परिवार गत वर्षों से करता आ रहा है। इसी मांग को लेकर हिमालय बुद्धिस्ट कल्चरल ऐसो., हिमालय परिवार व सिन्धु दर्शन यात्रा समिति के संयुक्त तत्वाधान में इस संकल्प सभा का आयोजन किया गया। मुख्य वक्ता इन्द्रेश जी ने इस अवसर पर कहा हिमालय परिवार पूरे देश में कैलाश मानसरोवर मुक्ति के लिये कार्यक्रमों के माध्यम से कोशिश कर रहा है। कि श्रद्धालुओं की श्रद्धा पर आघात न लगे निर्बाध रूप से शिव की भूमि पर हम वन्दन कर सकें । इसी शृंखला में यह प्रदर्शन हिमालय परिवार ने किया। इससे पूर्व सिन्धु दर्शन उत्सव में रायपुर (छ.ग.) से आए मुख्य अतिथि शदाणी दरबार के संत साई युधिश्ठरलाल शदाणी ने कैलाश को हिन्दू धर्म की आस्था का मुख्य केन्द्र बताते हुए सरकार से इस बारे में विचार करने को कहा। हिमालय परिवार,लेह के श्री ताशी तरगश ने भोटी भाषा को संविधान के आठवें अनुच्छेद में मान्यता देने की पुरजोर वकालत की। इस अवसर पर लेह के मुख्य बाजार में कैलाश मानसरोवर की मुक्ति हेतु एक विशाल प्रदर्शन भी निकाला गया। प्रदर्शन को श्री इन्द्रेश जी, संत अमरज्योति जी महाराज व संत युधिष्‍ठरलाल जी ने हरी झंडी दिखाकर आगे बढ़ाया। कैलाश का रास्ता खोल दो, कैलाष का रास्ता खोल दो भोटी भाषा  को मान्यता – दो के नारों से लेह के बाजार गूंज उठे। पूरे भारत आये हुए लोग, स्थानीय लद्दाख वासी सभी पूरे उत्साह और जोश  के साथ लेह के मुख्य बाजार में बढ़ने लगे। दिल्ली, राजस्थान, हिमाचल, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तराचंल, आसाम, बंगाल, बिहार से आये हुए हिमालय परिवार के कार्य कर्त्ताओं व लेह के ताशी तरगश, सोनम, अनिल जी, रूनचुन (पद्म श्री) डोलमा, छिरिंग आदि के साथ सैकड़ों की संख्या में लेह वासी सबने मिलकर के कैलाश की ओर कूंच किया। कैलाष मानसरोवर मुक्त करो मुक्त करो के नारे लगाता हुआ कारवाँ कांरू की ओर बढ़ते लोग लेह के नागरिक हतप्रभ थे परन्तु इस मांग में अपना भी स्वर मिलाते हुए साथ-साथ चलने लगे – रैली का नेतृत्व आदरणीय इन्द्रेश जी, सुरेश सोनी जी पू. स्वामी यतीन्द्रनाथ गिरी जी, दिनेश जी, राकेश जी, भूपेन्द्र कंसल जी कर रहे थे। वन्दना पाठक, मुरलीधर मखीजा, हेमनदास मोटवानी, सोमेश लिलौठिया, मनोज गोगिया, जितेन्द्र फौजदार, रणबीर पहलवान, सुरेश पटोदिया, डा. विक्रम, दिलबाग सिंह, गोपाल जी, नरेश वासवानी, कमल खत्री, सब नारे लगाते हुए चल रहे थे।

सिन्धु दर्शन उत्सव के पहले दिन 23 जून 2011 की षाम को सिन्धु दर्शन तीर्थ यात्रियों का अभिनंदन समारोह स्थानीय सोलर कालोनी चोगलमसर में लद्दाख कल्याण संघ तत्वाधान में किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री इन्द्रेश कुमार ने की। कार्यक्रम में संत अमरज्योतिजी महाराज, संत साई युधिष्‍ठरलाल जी शदाणी, लेह के संघ प्रचारक व लद्दाख कल्याण संघ के अध्यक्ष श्री रिचंन शास्त्री, श्री अषोक प्रभाकर, श्री राजिन्दर चढा के अलावा मंच पर श्री मुरलीधर माखीजा (अध्यक्ष, सिन्धु दर्षन यात्रा समिति), श्री हेमनदास मोटवाणी(महामंत्री, सिन्धु दर्शन यात्रा समिति) व श्री भूपेन्द्र कंसल(महामंत्री, हिमालय परिवार) उपस्थित थे। सोलर कालोनी वो स्थान है जो पिछले वर्श लेह में हुई भयानक त्रासदी का केन्द्र था, सबसे ज्यादा जानमाल का नुकसान यही हुआ था। लेह के प्रचारक डा. अनिल जी ने विस्तार से घटना के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि त्रासदी वाले दिन से ही किस प्रकार स्वंयसेवकों ने स्थानीय लोगों की मदद की। उन्होनें बताया कि सोलर कालोनी को पुनःनिर्मित करने में लद्दाख कल्याण संघ व सेवा भारती के स्वयंसेवकों का बहुत बड़ा हाथ है। सिन्धु दर्शन यात्रा समिति के संयोजक व रा.स्व.संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य श्री इन्द्रेश जी ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में यात्रा के प्रकल्प के उद्गम के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि हिमालय हमारी सुरक्षा में करौड़ो वर्षों से भारतवर्श की सुरक्षा में अडिग खड़ा है, लद्दाख क्षेत्र उसी हिमालय की सुरक्षा प्रकृति का अंग है। भोटी भाशा के मुख्य केन्द्र लद्दाख शुरू से ही व्यापार का मुख्य केन्द्र रहा है, इसे सिल्क रूट यानि रेशम मार्ग के जाना जाता रहा है। सन् 1947 के बाद यह हमारे पड़ोसी देषों की विशेष पंसद रहा जिसके कारण चीन ने इसका एक बड़ा भूभाग अपने में मिला लिया व एक छोटा भूभाग पाकिस्तान के अधिकार में है। कश्‍मीर से पूरे देष परिसंख्य संभव हो इस लिए देष की राष्‍ट्रवादी ताकतों ने यात्राओं के पार्दृभाव को जन्म दिया। श्रीनगर, कश्‍मीर से खीर भवानी यात्रा, बाबा अमरनाथयात्रा व लद्दाख, लेह से सिन्धु दर्शन यात्रा के प्रकल्प का जन्म हुआ। उन्होने लद्दाख के समक्ष तीन स्पष्‍ट चुनौतियों का उल्लेख किया। लद्दाख में उपजाऊ भूमि कम होने के कारण यहां के परिवारों में एक बहुपति व्यवस्था थी कि जमीन बंट न जाए इसलिए समाज स्त्री प्रधान हो गया व स्त्रियों की संख्या में इजाफा हुआ। सिल्क मार्ग से जब इस्लाम व ईसाई आए तो उन्होनें अपना प्रभाव दिखाना षुरू किया व साथ ही बौद्ध पंरपरानुसार हर घर में लामा बनने की पद्धति के कारण बौद्ध बहुलता वाला क्षेत्र अल्पसंख्यक बौद्ध क्षेत्र में परिवर्तित हो गया। अस्तित्व का संकट खड़ा हुआ, दलाई लामा जी ने विचार कर इस क्षेत्र को लामा बनने की पद्धति से मुक्त करके इस सुकट को कम करने का प्रयास किया। भारत का लद्दाख के लोगों से परिचय संभव हो व लद्दाख के लोग भारत को अपना माने इसका उपाय ढूढ़ने का प्रयास किया गया। तीसरा इस क्षेत्र का आर्थिक आधार मजबूत करना। सिन्धु दर्शन यात्रा ष्ुारू होने से इन चुनौतियों पर काबू पाया जा सका है सिन्धु दर्षन यात्रा यात्रियों के लिए पर्यटन जरूर हो सकती है पर इस यात्रा का एक सुनिश्चित उद्देश्‍य है जिसमें धार्मिकता का पोशण हो व राष्‍ट्रीय सुरक्षा की भावना से ओत-प्रोत यह यात्रा हिन्दू बौद्ध समन्व्य का परिचायक बने। लद्दाख में आई आपदा के बारे में उन्होने डा. अनिल द्वारा दिए गए वक्तव्य को आगे तक बतलाया व हिमालय परिवार द्वारा दी गई सहायता राशि यहां के कार्यकर्ताओं को सौपी। उन्होने भारतीय सिन्धु सभा द्वारा भी दी गई सहायता राषि लेह के कार्यकर्ताओं को सौंपी। इसके बाद यात्री भी अपने अपने मन से धन राषि देने लगे। ऐसा करते करते कई लाख की धन राशि लेह आपदा कार्य के लिए इक्टठी हुई।

श्री इन्द्रेश  जी ने हर वर्ष की सिन्धु दर्शन यात्रा के प्रमुख कार्यों के बारे में विस्तार से बताया, उन्होंने बताया कि विगत वर्षों में कैसे विद्या भारती द्वारा संचालित विद्यालय का अनावरण किया गया जिसमें आज एक उच्चकोटि का छात्रावास है जिसके कारण देश के इस सुदूर क्षेत्र में उच्च शिक्षा यहां कि विद्यार्थियों को सुलभ हो पाई है। यह सब सिन्धु दर्शन तीर्थ यात्रियों की तन-मन-धन सेवा द्वारा ही संभव हो पाया। उन्होंने जानकारी देते हुए कहा कि तीर्थयात्रियों के सहयोग से विद्याभारती विद्यालय के समीप ही एक भूमि खरीद गई जिसका क्षेत्रफल लगभग 24000 हजार वर्गफुट है व जिसका भूमिपूजन व शिलान्यास भी हो चुका है व जल्द ही उस स्थान पर एक भव्य सिन्धु भवन दिखाई देगा। सारा माहौल ‘भारत माता की जय’, ‘वंदेमातरम्’ व ‘आयोलाल झूलेलाल’ के नारों से गूजं उठा।

24 जून 2011

सिंधु दर्शन उत्सव 2011 की शुरूआत 24 जून को लेह के शे-मानला स्थित सिंधु घाट पर बहराणा पूजन से हुई। इस सिंधु पूजन के लिए यात्री सुबह 8:00 से ही एकत्रित होना शुरू हो गये थे। 9:00 बजे जहाँ एक ओर दिल्ली से आये हुए समिति के कार्यालय मंत्री श्री कमल खत्री बहराणा पूजन की तैयारी में थे वहीं दूसरी ओर तीर्थयात्री पवित्र सिन्धु में स्नान कर अपने को भाग्यशाली जान हर्षित हो रहे थे व इस बीच में एक ओर बौद्ध पंरपरानुसार पूजा ‘हो रही थी तो दूसरी ओर वैदिक मंत्रों के अनुसार घाट पर ही एक हवन हिन्दू भवन ट्रस्ट लेह की ओर से आयोजित किया गया था। इसमें यात्रियों के साथ साथ संत साई युधिष्ठिरलाल जी व श्री इन्द्रेश जी ने पूर्णाहूति दी। ठीक 9 बजे सिंधु घाट पर बहराणा पूजन कार्यक्रम में संत साई युधिष्‍ठरलाल जी, माननीय श्री इन्द्रेश जी, व श्री मुरलीधर माखीजा(अध्यक्ष, सिंधु दर्शन यात्रा समिति), श्रीमती व श्री वागीश ईसर, डा. विक्रम, ने कमल खत्री द्वारा पवित्र बहराणा ज्योत (सिंधी पूजन पद्धति) का पूजन करवाया। सभी ने मिलकर भगवान झूलेलाल जी की आरती की व पूजन के अन्त में पल्लव डालकर (अरदास,प्रार्थना कर ) राष्ट्र की समृद्धि व शान्ति के साथ-साथ सिंधु दर्शन कार्यक्रम को सफल बनाने की कामना की। एक तरफ पूजा अर्चना हो रही थी तो दूसरी ओर पहली बार लेह के सिन्धु तट तट पर मुंबई से आए दो सिन्धी युवाओं के जनेऊ संस्कार स्थानीय हरे कृष्‍णा मंदिर के पुजारी द्वारा संपन्न करवाए जा रहे थे। साथ ही पंडित जी ने नागपुर से आए हुए श्री सुरेन्द्र ढोलवानी के पिता की अस्थियों की विसर्जन की क्रिया भी सिन्धु तट पर संपन्न करवाई।

इसके बाद शुरू हुआ भव्य सांस्कृतिक कार्यक्रम। सिन्धु दर्षन उत्सव के कार्यक्रम के लिए अतिथियों के लिए अलग मंच की व्यवस्था की गई थी व सांस्कृतिक कार्यक्रम के लिए सिन्धु घाट के समीप दूसरे मंच की। अतिथि मंच पर पूज्य संत श्री अमरज्योति जी महाराज, संत साई श्री युधिष्‍ठरलाल जी शदाणी, पूज्य स्वामी यत्रिद्रानंद गिरि जी महाराज, पूज्य लामा जी, श्री इन्द्रेश कुमार जी, श्री मुरलीधर माखीजा, श्री हेमनदास मोटवानी, लद्दाख हिल कांउसिंल के श्री शिंरिंग दोरजे आदि उपस्थित थे।

मंच पर सर्वप्रथम मुख्य अतिथियों ने मिलकर भगवान मैत्रय के चित्र पर दीप प्रज्ल्लिवत करके कार्यक्रम की शुरूआत की। अतिथियों ने भगवान मैत्रेय के चित्र पर खतक(पाखर) ओढ़ाकर उनका आषीवार्द भी लिया। आए हुए अतिथियों का स्वागत लद्दाख कल्याण संघ के कार्यकर्ताओं ने खतक ओढ़ाकर किया। कार्यक्रम का संचालन हिमालय परिवार के महामंत्री श्री भूपेन्द्र कंसल ने हिन्दी में व लद्दाखी भाशा में पदमश्री नामग्याल जी ने किया।

अब मंच पर आए लद्दाखी वेषभूशा व पांरपारिक ढोल नगाड़ों के साथ लद्दाखी कलाकार। शादी व उत्सवों पर किए जाने वाले इस नृत्य की प्रस्तुति को तीर्थयात्री गौर से देख रहा था। कदम से कदन का मिलना, नगाड़ों का एक साथ सुर मिलाना, सचमुच लग रहा था कि अगर बालीवुड की कुषल नृत्य प्रशिक्षक यहां हो तो यह नृत्य देख हीनभावना से ग्रस्त हो जाएं। जम्मू मार्ग से आए हूए यात्रियों के समूह ने मंच पर जब ‘यह देश है वीर जवानों का’ यह गीत गाना शुरू किया तो दर्षक दीर्घा से यात्री क्या कार्यकर्ता क्या या स्थानीय सबके सब मंच पर आए गए और गाने वालों के साथ थिरकने लगे। कार्यक्रम का संचालन इस प्रकार किया गया था कि सांस्कृतिक कार्यक्रमों के बीच में आए हुए अतिथियों का उद्बोधन भी हो जाएं।

15 वें सिन्धु दर्षन उत्सव के मुख्य अतिथि संत साई युधिष्‍ठरलाल जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि सिन्धी परंपरा में सदैव जल व ज्योति की पूजा रही है व सिन्धु दर्षन उत्सव में यह सौभाग्य हमें मां सिन्धु के किनारे प्राप्त हुआ है। सिन्धु दर्शन उत्सव के जरिए हम सब लद्दाख वासियों की परंपरा व जीवन से रूबरू हुए है इसके लिए समस्त सिन्धी समाज ही नही अपितु सभी यात्री धन्यवाद के पात्र है। उन्हे अति हर्ष ही नहीं बल्कि गर्व महसूस हो रहा है कि आज सिन्धु के किनारे नई सनातन पंरपराओं की शुरूआत हुई है आज इस सिन्धु तट पर दो बच्चों के जनेऊ संस्कार सपन्न हुए है व एक ने अपने पिता की अस्थियों को सिन्धु में प्रवाहित किया है। सिन्धु संस्कृति की उन महान पंरपराओं ने लेह के सिन्धु तट पर उनकी पुनरावृति की है। उन्होने सर्वे भवन्तु सुखिनः मंत्र के जाप से सबको आशीर्वचन दिया।

हिमालय परिवार के राष्‍ट्रीय अध्यक्ष व पूज्य महामंडलेष्वर स्वामी यत्रिद्रानंद गिरि जी महाराज ने अपने आशीर्वचन में कहा कि सिन्धु दर्शन यात्रा के माध्यम से पूरा देश लेह से परिचित हो पाया है व इस बात का सटीक प्रमाण है कि पिछले वर्श जब लेह पर प्राकृतिक आपदा आई तो उसी क्षण से पूरा देश उसके साथ खड़ा हो गया है व जहां भी जैसे भी जो भी मदद जिसे सूझी उसने वह लेह पहुँचाने का काम किया। उन्होंने सिन्धु दर्शन यात्रा समिति के कार्यकर्ताओं को साधुवाद देते हुए कहा कि वे अपने इस दैवीय कार्य को और अधिक गति से अपने उद्देष्य की ओर ले जाएंगे। इसके बाद मंच पर हो गई बल्ले बल्ले। यात्री के रूप में आए श्री गोपाल जी जोकि भंटिडा में सेवा भारती से जुड़े हुए है अपने साथियों के साथ उन्होने बल्ले बल्ले पंजाबी गीत की मनमोहक प्रस्तुति दी। सिन्धु दर्षन यात्रा समिति के संयोजक व मुख्य प्ररेक श्री इन्देश जी ने सिन्धु दर्शन उत्सव के 15वें वर्श पर आए हूए अतिथियों व तीर्थयात्रियों का अभिनंदन करते हुए कहा कि सिन्धु दर्शन तीर्थ यात्री उस दीये के प्रकाश के समान है जो इस लद्दाख के आर्थिक अंधकार को दूर करने आए है। सिन्धु से हिन्दू व हिन्दुस्तान की पहचान है। सिन्धु दर्शन उत्सव सिन्धी समाज को लेकर शुरू जरूर किया गया पर आज यह हर धर्म हर पंथ हर जाति हर बोली बोलने वाले व समस्त 121 करोड़ भारतवासियो व 700 करोड़ विष्व में रहने वाले हर व्यक्ति का अपना उत्सव है।

उन्होंने हम सब भारतीय है व एक है इसकी सटीक तरीके से एक षादी उत्सव में मनाए जाने वाली परंपराओं में एक दो का उल्लेख कर ही प्रतिपादित किया। उन्हानें कहा कि चाहे कश्‍मीर हो या कन्याकुमारी या गुजरात हो या नागालैंड, सनातन पद्धति मानने वाला हो या इस्लामिक पद्धति का हो या फिर कोई ओर हमेशा मामा ही अपनी भांजी के विवाह का भात भरता है। हमने इस धरती पर जन्म लिया है इसलिए हम सब इंडियन यानि कि भारतीय है। हमने ही दुनिया को सहअस्तित्व का षन्ति का प्रेम का भाई चारे का व समरसता का मार्ग दिखलाया है। यही इस सिन्धु दर्शन यात्रा का मुख्य उद्देष्य है। उन्होने सरकारों को भी तीर्थों के विकास की ओर ध्यान देने की बात कहा क्योंकि देश की मुख्य इकोनोमी में तीर्थों में हो रहे कारोबार प्रमुख है। उन्होने सिन्धु तट से देश की संसद व नेताओं को 14 नवम्बर 1962 व 22 फरवरी 1994 को संसद में पास हुए प्रस्ताव की याद दिलवाई जिसमें उन्होने चीन व पाक द्वारा हथियाई गई अपनी एक एक इंच भूमि को वापिस लेने का संकल्प लिया था। इसी संदर्भ में उन्होने भारतीय सैनिको द्वारा निरंतर हो रहे बलिदान को नमन करते हुए कहा कि इस दुर्गम व जान लेने वाले मौसम में हमारे जवान हमारे लिए अपनी जान की परवाह करे बगैर हमारी सीमाओं की रक्षा करते रहते है। उन्होने सिन्धु दर्षन यात्रा की ओर से सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित की।

उन्होंने कहा कि आज 2011 में देष स्वतंत्रता की दूसरी लड़ाई लड़ने जा रहा है उन्होने किसी दल नेता व सरकार का नाम लिए बगैर कहा कि आज राष्‍ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लोगों पर जो आरोप लगाये जा रहे है व उसके बाद जो बात नित प्रतिदिन सामने आ रही है उससे तो यही साबित होता है कि वे कहीं न कही विदेशी ताकतो द्वारा संचालित है। उन्होंने 15 वे सिन्धु दर्शन उत्सव पर यही संदेश दिया कि हमारा लोकतंत्र दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है इस पर जुल्म नहीं होने देंगे व लोकतांत्रिक मूल्यों को समाप्त नहीं होने देंगे व इस जुल्म के खिलाफ एक होकर व इस अन्याय के विरूद्ध एक होकर, इसका निडर होकर व डटकर मुकाबला करेंगे।

इसके बाद संत श्री अमरज्योति जी महाराज का व्क्तव्य श्री इन्द्रेश जी ने पढ़ा क्योकि संत जी फोटोग्राफी के शौकीन है व इस कार्यक्रम को अपने कैमरे में कैद कर रहे थे। संत श्री के बारे में कई आश्‍चर्यजनक तथ्य है, मंच पर बताया गया कि उनका 1902 में बना हुआ पासपोर्ट है व उन्होने जब लद्दाख पर आक्रमण हुआ तो एक चीते के बच्चे के साथ उन्होने उसकी अगुवाई की। देखने में संतश्री 50 वर्ष से ज्यादा के नहीं दिखते। उन्होंने अपने व्क्तव्य में सर्वप्रथम लद्दाख के वीरों जैसे नामग्याल व जोरावार सिंह जैसों को नमन किया। उन्होनें सिन्धु दर्शन यात्रियों को भी सौभाग्यशाली बताया कि उन्हें इस अभावग्रस्त क्षेत्र में अपना सहयोग देने के के लिए ईश्‍वरीय बल मिला हैं। उन्होंने कहा कि सदैव सदाचारी को ही कष्‍ट व दुख सहने होते है व उसे ही संकटों से गुजरना पड़ता है ताकि वे आततायी को अपने इस प्रभाव से दूर कर सके।

सिन्धु दर्शन उत्सव के 15 वें वर्ष पर एक नई पंरपरा का उद्घोष भी इन्द्रेश जी ने किया कि निकट ही बनने वाले सिन्धु भवन में पूजा स्थल के लिए पत्थरों को सिन्धु नदी में हरेक यात्री ले जाएगा। उस पत्थर पर वह अपने इष्‍ट देव व अपना नाम लिखेगा जब वह पूजा स्थल बनेगा व वहां पूजा होगी तो वह यात्री अपने आप ही उस पूजा से लाभाविन्त हो सकेगा। इस अवसर पर सिन्धु भवन के लिए आए हुए यात्रियों ने दिलखोलकर दान राशि दी जैसे कि गांधी धाम गुजरात से 7 लाख की राशि, राजस्थान द्वारा 7 लाख रू की राशि, कोटा से अमीन पठान व सूरत तीर्थ यात्रियों द्वारा 25000रू, संस्कार भारती, नागपुर द्वारा 11000रू की राशि, विद्यायक रणबीर पहलवान द्वारा 50000रू की राशि व अनेकोअनेक दानराशि इस समय दी गई। कार्यक्रम के संचालक भूपेन्द्र कंसल ने भारत विकास परिषद् लुधियाना जिले द्वारा लेह में आपदा कार्य में किए गए सहायता कार्यों को विस्तार से बताया। उन्होंने सिन्धु दर्शन उत्सव में लेह के कार्यकर्ताओ खासकर डा. अनिल जी व श्री विजय जी की टीम का हार्दिक धन्यवाद व सम्मान किया।

इसके बाद शुरू हुई सांस्कृतिक गतिविधियां। लद्दाख की आर्यन संस्कृति की मनमोहक प्रस्तुति की गई। उनकी पांरपारिक वेशभूषा देखकर सब चकित रह गए। लद्दाख की संस्कृति में आधुनिक संगीत भी बहुत मायने रखता है इस संगीत पर एक मनमोहक प्रस्तुति दी गई। इसके बाद रायपुर छतीसगढ़ से अमीत गगंवानी के नेतृत्व में वंदेमातरम् रीमिक्स पर देशभक्ति से भरपूर प्रस्तुति दी गई। इस प्रस्तुति का असर ऐसा हुआ कि पूरा सिन्धु तट राजपथ में परिवर्तीत हो गया हर तरफ तिरंगा ही तिरंगा लहरा रहा था क्या अतिथि, क्या संत, क्या यात्री, क्या स्थानीय , क्या बच्चे व बूढ़े व महिलाएं, हरेक हाथ में तिरगा व जुबान पर वंदेमातरम् की धुन। गीत की समाप्ति पर शदाणी दरबार ने अमीत गंगवानी को विशेष आशीर्वाद दिया।

इसके बाद हिमाचली गीत पर पारंपारिक नृत्य की प्रस्तुति की गई। बंगलोर कर्नाटक के विधान परिषद् के सदस्य ने सिन्धु कावेरी के संबधों से देश की एकता व अखण्डता को मजबूत करने की बात कही। विद्यायक रणबीर पहलवान ने अपने को सौभाग्यशाली बताते हुए मां सिन्धु को प्रणाम किया। लेह के प्रचारक श्री रिचंन शास्त्री ने आए हुए सिन्धु दर्शन यात्रियों को धन्यवाद प्रकट करते हुए उन्हे भोजन के लिए आमंत्रित करते हुए कार्यक्रम का समापन किया।

25 जून 2011

24 जून की शाम व 25 जून को तीर्थ यात्री लेह भ्रमण करते है। लेह में कई दर्शनीय स्थल है जिन्हे देखने के लिए देशी विदेशी सैलानी लेह को आते हैं

25 जून की शाम को शहर के बीचोंबीच स्थित पोलो ग्राउण्ड पर एक रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम सिन्धु दर्शन यात्रा समिति की ओर से आयोजित किया जाता है जिसमें स्थानीय दर्शकों की संख्या कई हजार हो जाती है व वे इसका पूरा वर्ष इंतजार करते है। शाम 6 बजे से शुरू हुए इस कार्यक्रम में लेह के आधुनिक संगीत पर युवा लद्दाखियों ने कदम से कदम व ताल से ताल मिलाकर नृत्य प्रस्तुत किए। इस अवसर पर 15 वें सिन्धु दर्शन उत्सव के मुख्य अतिथि संत युधिष्‍ि‍ठरलाल जी शदाणी व सिन्धु दर्षन यात्रा समिति के राष्‍ट्रीय अध्यक्ष श्री मुरलीधर माखीजा ने लद्दाख कल्याण संघ के अध्यक्ष श्री रिंचन शास्त्री व उनके कार्यकर्ताओं को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया। गुजरात के श्री सुरेश निहालानी का भी उनके योगदान के लिए स्वागत सम्मान किया गया।

देशभक्ति की प्रस्तुति में बार्डर फिल्म के दृश्‍यों पर दी गई प्रस्तुति सबसे सराहनीय गिनी गई। लद्दाखी पारंपरिक नृत्यों के अलावा सिंधी गीत भी गाए गए। दिल्ली के कमल खत्री व मनोज गोगिया ने सिंधी गीत पर सबके कदम थिरकाए। मंच संचालन हिमालय परिवार की संपादक श्रीमती वंदना पाठक ने किया। 16 वें सिन्धु दर्शन उत्सव के आंमत्रण के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।

(लेखक सिन्धु दर्शन यात्रा के राष्ट्रीय कार्यालय मंत्री हैं)

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