मध्यम वर्गीय जीवन का आइना है ‘सॉफ़्ट कार्नर’

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                                           प्रभुनाथ शुक्ल

साहित्यकार रामनगीना मौर्य का हालिया में प्रकाशित कहानी संग्रह ‘सॉफ़्ट कार्नर’ मध्यवर्ग जीवन का अनूंठा संग्रह है। संग्रह में सभी ग्यारह कहानियां उसकी आइना हैं , जो पाठक को अंत तक बांध रखती हैं। कहानियों को पढ़ने से ऐसा लगता है कि कहानीकारजीवन की विसंगतियों को जिया है। लेखक खुद के जीवन संघर्ष और कटु अनुभवों को अपनी कहानियों में जिया है। जब पाठक मौर्य की कहानियों से गुजरता है तो ऐसा लगता है जैसे पात्रों का जीवन उसके जीवन संघर्ष से कहीं न कहीं से जुड़ा है। 
मध्मवर्गीय जीवन में आने वाले परेशानियां और मामूली बातें किस तरह समस्या बनती हैं उसका चित्रण कहानीकार ने संवाद के जरिए बेहद साफगोई से किया है। देशी कहावतों और मुहावरों के साथ अंग्रेजी शब्दों का भी खूब प्रयोग किया गया है। कहानियों में लोकभाषाओं के साथ उदाहरणों में संस्कृत का भी प्रयोग हुआ है।जिस कहानी ‘सॉफ़्ट कार्नर’ पर कहानी संग्रह का नाम पड़ा है, उसमें पति-पत्नी के वैवाहिक जीवन के पूर्व घटनाओं को अच्छी तरह पिरोया गया। इस दौरान कहानीकार ने रामचरित मानस की चैपाईयों का भी खुल कर प्रयोग किया है। कहानियां मध्यमवर्गीय परिवार के मध्य से निकलती हैं। कहानियों को पढ़ कर पाठक सोचता है कि यह तो हमारे बीच की समस्याएं और बातें हैं। जिसे कहानीकार ने बेहद संजीदगी से पिरोया है। 
‘सॉफ़्ट कार्नर’ की कहानियां पाठक को आगे पढ़ने को प्रेरित करती हैं। कहानीकार ने पाठक पर खुद की सोच नहीं हाबी होने देता। कहानियां पाठक को उबाऊ और बोझिल नहीं लगती। वह आम आदमी के जीवन के रोज-मर्रा के संघर्ष की कहानी हैं। जैसा कि लेखक रामगनीना मौर्य खुद मानते हैं कि मेरी कहानियों का विषय बेहद गंभीर नहीं है। जहां हैं जैसा के अधार पर कहानियों की रचना हुई है। कहानियों में बेवकूफ लड़का, अनूंठा प्रयोग, अखबार का रविवारीय परिष्ट, लोहे की जालियां, छुट्टी का सदुपयोग, बेकार कुछ भी नहीं होता, ग्लोब, आखिरी चिट्ठी, संकल्प, उसकी तैयारियां और अंतिम ‘सॉफ़्ट कार्नर,  है। कहानियों में संवाद के बीच कविताओं का भी प्रयोग हुआ है। अंग्रेजी, हिंदी के साथ देशी शब्दों का की भी खूब प्रयोग हुआ है। अखबार का रविवारीय परिशिष्ट उम्दा कहानी हैं। एक रचनाधर्मी के जीवन संघर्ष और अखबार के परिशिष्ट को लेकर उसके भीतर द्वंद्व  संघर्ष को अच्छी तरह कहानीकार में संजोया गया है।  इसके अलावा ‘ग्लोबल’ कहानी में आधुनिक होती शिक्षा और उसके तकनीकी विकास को लेकर गूगल और चाक-पटरी वाली पीढ़ी की सोच का अच्छा विश्लेषण है।कहानी ‘आखिरी चिट्ठी’ में लेखक के लिए उसकी रचनाओं के रख रख- रखाव और आधुनिक तकनीकी विकास पर चिंतन है। जबकि ‘संकल्प’ में फिजूलखर्ची पर पति-पत्नी के बीच टकराव का संघर्ष साफ दिखता है। कहानी ‘लोहे की जालियों’ में शहरी जिंदगी की उलझनों को बेहतर तरीके से विश्लेषित किया गया है। किराए के मकान में रहने वाले परिवारों का भी इस कहानी में संघर्ष दिखता है। कुल मिलाकर लेखक की सभी कहानियां पठनीय हैं। पाठक को यह शुरुवाती दौर से बांधे रखती हैं। हालांकि कुछ कहानियों में व्यंग का अच्छा पुट दिखता है। कहानी संग्रह का नामकरण भी अंग्रेजी शब्द ‘सॉफ़्ट कार्नर’ पर रखा गया है। लेखक उत्तर प्रदेश की राजकीय सेवा से जुड़े हैं। जिसका असर कई कहानियों में देखने को मिलता है। कहानी ‘छुट्टी का सदुपयोग’ इसका अच्छा उदाहरण है। लेखक को अदरक, कालीमिर्च और इलायची वाली चाय लगता है बेहद पसंद है। क्योंकि कई कहानियों में इस चाय का उल्लेख किया गया है। ‘सॉफ़्ट कार्नर’ में भी अंतिम में इसका प्रयोग हुआ है। कहानीकार रामनगीना मौर्य की ‘सॉफ़्ट कार्नर’ बेहद चर्चित कहानी है। सचिवायल में संयुक्त सचिव पद पर कार्यरत होने और काफी व्यस्तता के बाद भी उनकी रचनाधर्मिता काबिले गौर है। इसके पूर्व उनके दो कहानी संग्रह ‘आखिरी गेंद’ और ‘आप कैमरे’ की निगाह में है प्रकाशित हो चुकी है। ‘सॉफ़्ट कार्नर’ तीसरा कहानी संग्रह है। उन्हें उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने ‘यशपाल’ सम्मान और राज्यकर्मचारी साहित्य संस्थान ने आखिरी गेंद के लिए ‘डा. विद्यानिवास मिश्र’ पुरस्कार से सम्मानित किया है। रामनगीना मौर्य एक सफल कहानीकार और साहित्यकार हैं। ‘सॉफ़्ट कार्नर’ पाठकीय कसौटी पर पूरी खरी है। इसे जरुर पढ़ना चाहिए।
पुस्तकः सॉफ़्ट कार्नरलेखकः रामनगीना मौर्यप्ररकाशन : रश्मि प्रकाशनमूल्य:  175 रुपए समीक्षक : प्रभुनाथ शुक्ल

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