सोनिया व राहुल गांधी के विरोध के निहितार्थ

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– निर्मल रानी

राजीव गांधी की 20 मई 1991 में हुई हत्या तथा उसके पश्चात हुए संसदीय चुनावों के बाद हालांकि नरसिंहाराव कांग्रेस के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार में प्रधानमंत्री अवश्य बन गए थे। परंतु उनके प्रधानमंत्री बनने तथा सीताराम केसरी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद जिस प्रकार पार्टी रसातल की ओर बढ़ती चली गई, वह भी कांग्रेस पार्टी के इतिहास के सबसे बुरे दौर की घटना मानी जाती है। यह वही दौर था जबकि 6 दिसंबर 1992 की अयोध्या घटना घटी तथा उसके बाद कांग्रेस का पारंपारिक वोट बैंक समझे जाने वाले मुस्लिम मतदाता कांग्रेस पार्टी से दूर चले गए। और यही वह दौर भी था जबकि कांग्रेस से जुड़े एक से बढ़कर एक दिग्गज नेता यहां तक कि देश के तमाम रायों के अनेक वरिष्ठ पार्टी नेतागण यह सोचकर कांग्रेस को अलविदा कह गए कि शायद अब सत्ता कांग्रेस के लिए दूर की कौड़ी साबित होगी। ज़ाहिर है जहां वह समय कांग्रेस जनों के लिए संकट कासमय था वहीं कांग्रेस विरोधी राजनैतिक संगठन खासतौर पर वे राजनैतिक दल जो कांग्रेस को सत्ता प्राप्ति की अपनी राह का कांटा समझते थे उन दल के नेताओं ने बहुत बड़ीराहत की सांस ली थी। यहां यह बात भी गौरतलब है कि यही वह दौर भी था जबकि राजीव गांधी की हत्या के बाद तमाम वरिष्ठतम कांग्रेस नेता गण सोनिया गांधी से इस बात की मान मुनौव्वल करने में लगे थे कि वे किसी भी तरह से सक्रिय राजनीति में भाग लेकर कांग्रेस को संकट से उबारें। परंतु अपनी सास इंदिरा गांधी तथा पति राजीव गांधी की राजनैतिक कारणों के परिणाम स्वरूप हुई हत्या से दुखीसोनिया गांधी राजनीति में अपनी सक्रियता के मुद्दे पर कई वर्षों तक बार-बार इंकार करती रहीं।

बहरहाल सोनिया गांधी से अधिक समय तक कांग्रेस पार्टी की दुदर्शा होते नहीं देखा गया और आंखिरकार वह इंदिरा गांधी व राजीव गांधी की राजनैतिक विरासत संभालने के लिए तैयार हो गईं। सोनिया गांधी को न केवल कांग्रेस महासमिति ने पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष निर्वाचित किया बल्कि उस समय से लेकर आज तक चाहे वह कर्नाटक में बेल्लारी की लोकसभा सीट रही हो या फिर उत्तर प्रदेश में अमेठी यारायबरेली के लोकसभा क्षेत्र, जहां भी सोनिया गांधी ने संसदीय चुनाव लड़े वहीं जनता ने उन्हें भारी बहुमत से जिताकर लोकसभा के लिए भेजा। सोनिया गांधी की राजनैतिक सक्रियता के कुछ ही समय बाद राहुल गांधी ने भी अपनी मां को सहयोग देना शुरू कर दिया। इस प्रकार कांग्रेस पार्टी एक बार फिर केंद्रीय स्तर पर अपने आप को सुरक्षित व संरक्षित महसूस करने लगी। इंदिरा नेहरू घराने की गत 6 दशकों से राष्ट्रीय स्तर पर चली आ रही स्वीकार्यता के परिणामस्वरूप देश की जनता ने सोनिया गांधी व राहुल गांधी को भी गंभीरता से लिया। परिणामस्वरूप पार्टी से अपने बुरे दिनों से उबरना शुरु कर दिया तथा कई रायों में मृतप्राय: सी होती जा रही कांग्रेस में पुन: जान आना शुरु हो गई। जाहिर है पार्टी के इस पुनर्उत्थान से जहां कांग्रेसजनों के हौसले बुलंद होते जा रहे थे वहीं कांग्रेस विरोधियों की रातों की नींद हराम होने लगी।

कांग्रेस विरोधी राजनैतिक दलों द्वारा अब सीधे सोनिया गांधी व राहुल गांधी पर निशाना साधने की रणनीति बनाई जाने लगी। सर्वप्रथम सोनिया गांधी को विदेशी मूल की महिला बताकर उनपर राष्ट्रीय स्तर पर राजनैतिक आक्रमण किया गया। तरह-तरह के अपमानजनक शब्दबाण उनपर छोड़े गए। कई वरिष्ठ नेतागण जिनमें कि वर्तमान समय में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज भी शामिल हैं, को सोनिया गांधी की अंग्रेजी बोलने की उनकी शैली व उनके उच्चारण की सार्वजनिक रूप से जनसभाओं में नक़ल करते व खिल्ली उड़ाते देखा गया। बावजूद इसके कि देश की जनता ने सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री के पद के बिल्कुल करीब तक पहुंचा दिया था। उसके बाद सुषमा स्वराज व उमा भारती जैसी नेताओं ने उनके प्रधानमंत्री बनने का इस निचले स्तर तक विरोध किया जिसकी दूसरी कोई मिसाल भारतीय राजनीति में देखने को नहीं मिलती। किसी ने कहा यदि सोनिया गांधी प्रधानमंत्री बनती हैं तो हम उल्टी चारपाई पर लेटना शुरु कर देंगे। किसी ने कहा कि हमसूखे व भुने चने खाना शुरु कर देंगे। तथा किसी ने अपना सिर मुंडाने तक की बात कह डाली।

णरा सोचिए कि भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में यदि देश की जनता संवैधानिक रूप से किसी व्यक्ति को प्रधानमंत्री अथवा मुख्‍यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाए तो विरोधियों द्वारा इस प्रकार व्यक्तिगत् स्तर कीर् ईष्या का प्रदर्शन क्या न्यायसंगत कहा जा सकता है? परंतु सोनिया गांधी ने मई 2004 में कांग्रेस संसदीय दल द्वारा नेता चुने जाने के बावजूद प्रधानमंत्री का पद अस्वीकार कर अपने विरोधियों को राजनैतिक महात्याग रूपी ऐसा करारा तमाचा मारा कि जिसकी धमक से कांग्रेस विरोधी दल आज तक उबर नहीं पा रहे हैं। हां इतना जरूर है कि इन कांग्रेस विरोधियों विशेषकर सोनिया गांधी और राहुल गांधी से व्यक्तिगत् रूप से ईर्ष्‍या रखने वालों की समझ में शायद यह बात अवश्य आ गई है कि सोनिया गांधी के विरुध्द किया जाने वाला विदेशी महिला का उनका विलाप उन्हें मंहगा पड़ा तथा देश की जनता ने इस तर्क को पूरी तरह अस्वीकार कर दिया। परंतु सोनिया व राहुल दोनों पर प्रहार करने तथा उनके विरुद्ध अनाप-शनाप बोलने का यह सिलसिला अभी भी पूर्ववत् जारी है। तमाम नेता तो ऐसे भी हैं जो केवल मीडिया में सुर्खियां बटोरने की गरज से ही सोनिया व राहुल का सीधा विरोध करते हैं।

जब सोनिया अथवा राहुल गांधी उत्तर प्रदेश में दलित चौपाल में जाते हैं अथवा राहुल गांधी दलितों के घरों में जाकर उनके साथ रात गुजारते हैं अथवा उनके साथ भोजन ग्रहण करते हैं तो उस समय दलितों की स्वयंभू मसीहा तथा उत्तर प्रदेश की मुख्‍यमंत्री मायावती को अपना सिंहासन डोलता नार आने लगता है। और अपनी राजनैतिक जमीन अपने पैरों से खिसकते देख कर वह भी तिलमिला कर कह बैठती हैं कि दलितों के घर से दिल्ली वापसी के बाद राहुल गांधी को गंगाजल से नहला कर उनका शुद्धिकरण किया जाता है। परंतु न तो सोनिया गांधी और न ही राहुल गांधी अपने ऊपर लगने वाले इन घटिया आरोपों का कभी उत्तर देना मुनासिब समझते हैं न ही ऐसे नेताओं को यह लोग इन्हीं की भाषा व शैली में जवाब देना पसंद करते हैं। बजाए इसके यह लोग जनता के विवेक पर ही सब कुछ छोड़ देते हैं।

इन दिनों बिहार राज्‍य विधानसभा के चुनाव संपन्न हो रहे हें। तमाम चिरपरिचित चेहरे बिहार की राजनीति में जनता या बिहार के भाग्य का नहीं बल्कि शायद अपने ही राजनैतिक भाग्य का फैसला करने के लिए तरह-तरह के तिकड़म भिड़ा रहे हैं। कांग्रेस पार्टी पर परिवार वाद का आरोप लगाने वाली तमाम पार्टियों व उनके नेताओं को अपने-अपने परिवार मोह में उलझे देखा जा सकता है। कल तक कांग्रेस पार्टी की बैसाखी बने लालू यादव ने इस बार अपने तेजस्वी नामक एक पुत्र को भी चुनाव प्रचार में उतारा है। लालू यादव इस गलतंफहमी के अभी से शिकार हो चुके हैं कि उनका पुत्र अभी से राहुल गांधी से भी आगे निकल गया है। कल तक तमाम कांग्रेस विरोधी नेता राहुल गांधी को राजनीति में बच्चा बताने की कोशिश में लगे थे तो अब लालू यादव के पुत्र ने तो राहुल गांधी को बूढ़ा ही कह कर संबोधित कर दिया है। अब आखिर इस प्रकार के राहुल विरोध को किस स्तर तथा किस मंकसद के विरोध की संज्ञा दी जाए? यहां हम सोच सकते हैं कि लालू यादव के पुत्र ने अपनी कम उम्र और नासमझी के तहत ही शायद यह बात कही हो। परंतु शरद यादव जैसे वरिष्ठ नेता को न हम कम उम्र कह सकते हैं न ही कम तजुर्बेकार या अपरिपक्व राजनीतिज्ञ। यह जनाब भी पिछले दिनों बिहार की एक चुनावी जनसभा में न केवल राहुल गांधी की नंकल करते हुए अपनी आस्तीन चढ़ाते देखे गए बल्कि जनता के बीच उन्होंने यह तक कह डाला कि राहुल गांधी को तो गांगा नदी में फेंक दिया जाना चाहिए। स्पष्ट है कि राजनीति में उपरोक्त किस्म के विचारों अथवा शब्दावलियों की कोई गुंजाईश नहीं होनी चाहिए। परंतु यह कहने में कोई हर्ज नहीं कि जिन नेताओं द्वारा सोनिया गांधी व राहुल गांधी के विरुध्द ऐसे शब्दों या विचारों का प्रयोग किया जाता है, वे यह बात भलि-भांति जानते हैं कि दरअसल नेहरु-गांधी परिवार ही सत्ता की उनकी राह में सबसे बड़ा कांटा है। और यही ईर्ष्‍या इस प्रकार के अपशब्दों, विचारों तथा आचरण के रूप में सार्वजनिक रूप से अलग-अलग पार्टियों के अलग-अलग नेताओं द्वारा समय-समय पर व्यक्त होते हुए देखी जाती है।

12 COMMENTS

  1. रानी जी बिहार इलेक्शन के बाद बिहारियों ने सोनिया और उसके पुत्तर राहुल को औकात दिखा दी है!
    सोनिया राहुल की चापलूसी के अतिरिक्त भी अगर कुछ आता हो तो लिखिए. २ग स्पेक्ट्रुम मैं सोनिया राहुल ने बहुत पैसे बनाये हैं उसके बारे मैं भी बोलिए, मेरठ के जमीन घोटाले के बारे मैं भी बोलोइए.

  2. सच वो नहीं जो दीखता है!!!! लम्बे समय मैं आने वाले परिणाम ही षड़यंत्र का खुलासा करते हैं
    इतने सालों मैं देश की दुर्गति क्यों हुयी…?
    अमीर लोग अरबपति बन बैठे क्यों?
    गरीब लोग दाने दाने को मोहताज़ हैं ?
    स्विस बैंकों मैं देश का धन क्यों जा रहा है?
    हिन्दू धर्म पर हमले क्यों?
    अन्य धर्मो द्वारा धर्मान्तरण क्यों?
    विदेशी कम्पनियां देश के उधोगों को नष्ट कर रही है?
    देश के महत्वपूर्ण संसाधनों पर विदेशियों का कब्ज़ा होता जा रहा है?

    गंभीरता से विचार करे कोन लोग एजेंट का काम कर रहे हैं?

  3. वाह बाबा सुदर्शन – आपने तो कमाल कर दिया। कांग्रेसी अब सारे देश में अपनी रानी मधुमक्खी की असलियत बयान करते हुए प्रदर्शन कर रहे है। देशवासियो को असलियत से वाकिफ कराने का इस से अच्छा तरिका और क्या हो सकता था। वैसे विदेशी निवेष वाले टीवी चैनल बडे दुष्ट है – वह सिर्फ ईत्ता भर कह रहे है की बाबा जी सोनिया के खिलाफ “आपत्तिजनक बाते” कही हैं। सारी बाते खोल कर नही कह रहे है। वैसे बांकी का काम कांग्रेसीजन भुंक भुंक कर कह रहे हैं। वैसे आरोपो पर विस्तार से चर्चा हो तो अच्छा है। कोई टीवी चैनल वाला आरोपो पर विस्तृत चर्चा क्यो कही करवा रहा है

  4. प्रिय पाठकगन ऐसे चापलूसी भरे व्यर्थ लेखों पर कृपया अपना अमूल्य समय नष्ट न करें. ऐसे लेख व्यक्ति और परिवार पूजा के अलावा कुछ भी नहीं है.
    आजकल ऐसे लेखकों की भरमार है. आप लेखिका से पूछिये की क्या उनकी अंतरात्मा गवाही देती है की ये एक निष्पक्ष पत्रकारिता का नमूना है?

  5. अच्छा होता कि सोनिया जी राजीव गांधी की हत्या के बाद देश छोङकर चली जाती….पर देश का दुर्भाग्य की वे यहां सत्ता की चाशनी चखने के लिए यहां रुकी…..उनके एरा मैं कांग्रेस का राष्ट्रवादी नेतृत्व पिछवाङे मैं डाल दिया गया….या रास्ते से हटाया गया….इससे भी बङा दुर्भाग्य हो गा जब राहुल माईनो और उनकी कोलंबियन महिला मित्र की सत्ता चलेगी इस देश में……और आप जैसे चमचे पत्रकार उसका गान प्रारंभ कर चुके हैं

  6. निर्मल रानी जी आप पत्रकार है या गाँधी खानदान के फोपू आपका लिखा पढ़ने के बाद कही से किसी पत्रकार का आलेख नहीं लगा आखिर आपलोग अपनी हीन भावना से उबरेगे या नहीं सोनिया अगेर त्यागी थी तो वाजपयी जी की सरकार गिराने के बाद झूठा दावा करते हुए राष्ट्रपति के यहाँ क्यों गयी थी वह तो मुलायम सिंह ने समर्थन देने से मन केर दिया इस लिए अपना मुह लेकर रह गयी तब उनका त्यागी और सन्यासिनी वाला चेहरा कहा था और अब मीडिया को साध केर राहुल के प्रधान मंत्री बनने का माहोल बनाने का ड्रामा चल रहा है.क्या कांग्रेस को पूर्ण बहुमत मिल गया क्या कोई मुलायम उनके रस्ते में नहीं आ सकता,अपने बेटे को जो कही से इतने बड़े देश का प्रधानमंत्री बनने की योग्यता और किसी तरह का अनुभव नहीं रखता इस पद पैर किसी भी तरह किसी कीमत पर पदारूढ़ करना किस तरह का देश हित है मेरी समझ के बाहर है.निर्मल रानी जैसे लोग राहुल बाबा को देशको विडिओ गेम की तरह खेलने को देने का ख्याब देखना चाहती है.इस देश की जनता इतनी मुर्ख नहीं है.इसका इशारा भी राजस्थान,गुजरात,और सबसे बढ़ केर दिल्ली विश्व विद्यायालय के चुनाव में जनता ने दे दिया है अब बिहार की बारी है उसके बाद फिर बंगाल में ममता के सहारे और उत्तर प्रदेश भी लोकसभा चुनाव के बाद इनलोगों की हसियत दर्जन भर उपचुनावों में मत्र एक सीट वह भी लालजी टंडन की नाराजगी के चलते मिला हमें यह नहीं समझ आता की किस आधार पर इतनी उचल कूद हो रही है.बिलावजह राहुल को जोकर की तरह घुमाया जा रहा है और उनके मुह से उलजलूल बकवाया जा रहा है जैसे उन्होंने सिम्मी की तुलना आर.एस.एस, से कर के हास्य का पत्र बनाया गया या उड़ीसा में आदिवासियो के आन्दोलन के चलते bedanta का kam band hone पर उनके rahnuma बनने जा pahuche jab कि unaki सरकार jharkhand और chattisgarh में opration green hunt chala कर आदिवासियो का sanghar कर रही है.

  7. निर्मला जी आप बड़ी पत्रकार लगती है इसलिए टिप्पणियों का जवाब नहीं देती या कांग्रेस में ऐसी परंपरा है कि अपने ऊपर उठने वाले किसी भी सवाल का जवाब ही न दो ऊपर आपने अपने लेख में बताया है कि जनता ने राहुल को जबरदस्त समर्थन दिया लेकिन आपने ये नहीं बताया कि अब तक राहुल ने जनता को वापस क्या दिया
    देखिये ये भारत है यहाँ शिक्षित लोग भी प्रचार के भ्रम में फँस जाते है जबकि भारत की आधी से भी ज्यादा जनसँख्या अनपढ़ है तो उनसे क्या उम्मीद करें
    सभी मल्टीनेसनल कंपनियों की प्रचार की एक रणनीति होती है वो बाज़ार में एक प्रोडक्ट लांच करते है और उसका खूब प्रचार करते है और दिन भर दिखा सुना कर आम जनता को ये विश्वास दिला देते है कि ये एकदम नयी तकनीक से बना हुआ है और अन्य सभी ब्रांडो से श्रेष्ठ है और जबतक बाज़ार को उस प्रोडक्ट कि सच्चाई पता चलती है ये मुनाफा कमा चुके होते है और एक नया प्रोडक्ट लांच कर देते है और ये क्रम बदस्तूर जारी रहता है
    नेहरू गाँधी परिवार कांग्रेस का ऐसा प्रोडक्ट है जिसे वो बार बार नए नामों से लांच करते है और जनता को ये बताने में लगे रहते है कि ये नवीनतम प्रोडक्ट सबसे अच्छा है जिन सोनिया गाँधी नाम के प्रोडक्ट की आप चर्चा कर रहीं है कांग्रेस भी जानती थी की वो पिट चुका है और इस बार के चुनाव में नहीं चलेगा इसलिए राहुल नाम का नया प्रोडक्ट प्रोजेक्ट तो कर दिया लेकिन अब दुविधा ये है कि कैसे ज्यादा से ज्यादा समय तक इस प्रोडक्ट की सच्चाई को जनता से दूर रक्खा जाय क्योंकि एक बार इस प्रोडक्ट की सच्चाई सामने आ गयी तो समस्या खड़ी हो जाएगी क्योंकि अभी नया प्रोडक्ट तैयार नहीं हुआ है इसलिए मनमोहन सिंह जी को कहा गया है की वो जो भी लोक लुभावन फैसले ले उसकी ब्रांडिंग राहुल नाम से हो और शासन की असफलताएं आप आपने सर पर ले ले ये प्रक्रिया अगले चुनाव तक चलती रहेगी क्योंकि तब तक राहुल नाम के ब्रांड का उपयोग अनिवार्य हो जायेगा और हो सकता है कि देश की मीडिया जो पैसे लेकर कुछ भी बेच सकती है देश के भोले भले नागरिको पर एक और घटिया प्रोडक्ट थोप दे

  8. सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री न बन कर कोई त्याग नहीं किया। बल्कि वह उनके लिए दूर की कौड़ी था। अगर उन्हें त्यागभाव ही दिखाना था तो चुनाव के नतीजे के तुरंत बाद ही घोषणा कर देती कि मुझे प्रधानमंत्री नहीं बनना, वे तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे कलाम साहब के पास अपना बहुमत लेकर गईं, लेकिन अचानक ही उनसे बातचीत के बाद उन्होंने प्रधानमंत्री का पद ठुकरा दिया और फिर एक पपेट को देश का प्रधानमंत्री बना दिया जिसे देश की जनता ने प्रत्यक्ष चुना ही नहीं। लोकसभा से गए सांसद को वह जानबूझ कर प्रधानमंत्री नहीं बना सकती थी क्योंकि लोक सभा सांसद का प्रत्यक्ष जनाधार होता है और वह किसी मैडम माइनो के इशारे पर डांस नहीं करता। जहां तक राहुल की बात है तो वे राजनीति में वाकई अपरिपक्व हैं हाल ही के उनके बयानों ने यह जग जाहिर कर लिया। उनकी ग्लैमरस छवि कि वजह से जनता उनकी सभाओं में जुटती है। उनके नेतृत्व में कांग्रेस ने अभी तक किसी राज्य में चुनाव नहीं जीते हैं। बिहार चुनाव में भी निश्चित ही मुंह की खानी पड़ेगी। वैसे सोनिया और राहुल गांधी ने मीडिया मैनेजमेंट बहुत अच्छा किया है, यही उनकी सफलता की जड़ है।
    और ताजा-ताजा जानकारी सोनिया की रैली के लिए धन उगाही होती है यह आज बिहार में सोनिया की सभा के दौरान एक कांग्रेस कार्यकर्ता से लाखों रुपए मिलने सेे साबित होता है।

  9. nirmal jee aap apanee lekhanee kee nirmalastaa kaa dhyaan rakhen. is pariwaar ne desh kaa jo winaash kiyaa hai, usakee kahaanee saamane aakar rahegee. swanaam dhany nehru jee ne apanee preyasee adwina mount baitan ke moh jaal mein fans kar desk ke bantwaare tathaa domin state kaa patr binaa kisee se puche likh kar de diyaa thaa. apnee waasanaa kee purtee ke liye desh ka saudaa kar daalaa. yahee hai unakee mahaanataa ? kaashmeer kaa naasuur bhee to neharu jee kee hee den hai n . aap itihaas n jaanatee hon to mujhsse kahen, bhej dungaa.
    buraa n maanen, par aap desh kaa naash karane waalon kee prashansaa karen, yah to aap aur aapke prashansakon ke liye peedaa w apmaan pradaaii hai.kripayaa dhyaan den.

  10. निर्मल जी, इन्ही सोनिया के मुह पर तेज झन्नाटेदार तमाचा गुजरात की जनता प्रत्येक चुनाव में मारती है, इन्होने बड़े ही संयम का परिचय देते हुए वहा के मुख्यमंत्री नरेन्द्र भाई को मौत का सौदागर कहा था. तब से आज तक अँगुलियों के निशान नहीं मिट रहे.
    नेहरू का देश प्रेम जग जाहिर है, कैसे उनके कुकर्मो का दंड भारत की जनता भोग रही है, यह भी सोचनीय है. इंदिरा ने तो सबसे आगे जाकर माननीय कोर्ट का फैसला न मान कर देश को आपातकाल के हवाले कर दिया था और जब जब देश में करप्शन और कोर्ट का फैसला न मानने की बात उठती है तब तब राजीव और शाहबानो याद आते है. बड़े अच्छे कर्म हैं गांधी परिवार के. राहुल बाबा का किया कोई काम अभी तक तो नहीं दिखा लेकिन सफ़ेद झूठ बोलना कोई इनसे सीखे.
    याद रखना,जब कभी भी देश की जनता जागेगी इतिहास से इनका नामों निशान मिट जाएगा, विश्व में हुई तमाम घटनाये इसका उदाहरण हैं.

  11. “कांग्रेस का पारंपारिक वोट बैंक समझे जाने वाले मुस्लिम मतदाता कांग्रेस पार्टी से दूर चले गए।”

    क्या कांग्रेस एक सांप्रदायिक पार्टी है जो इस तरह से धर्म और संप्रदाय के आधार पर मतों का आंकलन करती है या फिर यह लेखिका की निजी राय है ?

  12. निर्मल रानी जी
    मैं ना तो किसी पार्टी से जुडा हूँ और ना ही किसी नेता से और शायद समर्थन की बात हो तो सबसे ज्यादा समर्थन भी इस कांग्रेस पार्टी को ही दिया है ..लेकिन जब इस बात की विवेचना करता हूँ की इस देश की इस दर्दनाक अवस्था यानि हर व्यक्ति चोरी और बेईमानी के बिना अपना और अपने बच्चों को जिन्दा ही नहीं रख सकता तो लगता है की इस कांग्रेस पार्टी और खासकर इस सोनिया गाँधी का सबसे बड़ा योगदान रहा है इस देश और समाज को इस स्तर तक लाने में …अब तो भगवान ही इस सोनिया गाँधी और उसके परिवार से इस देश को निजात दिला सकता है …आपसे आग्रह है की आप भी जरा इनके स्वार्थों और सत्ता सुख के लिए देश और समाज को बरबाद करने की नियत के बारे में सोचें …

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