कांग्रेस के पतन की कहानी को अंजाम तक पहुंचाती सोनिया गांधी

0
334

आरबीएल निगम

गाँधी परिवार को संरक्षण देने वाले नेताओं को कांग्रेस की कितनी चिंता होती है, उस ओर किसी का ध्यान नहीं। दो मुख्यमंत्रियों की लड़ाई में पार्टी और जनता को कितना नुकसान हो रहा है, किसी नेता को परवाह नहीं।
कांग्रेस की ‘स्वयंभू’ अध्यक्ष सोनिया गांधी अपने ही दो मुख्यमंत्रियों की लड़ाई का तमाशा बंद आंख से देखने में लगी हैं। गहलोत की चिट्ठी मिल जाने के बावजूद सोनिया गांधी ने न तो छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल अनावश्यक रोड़े अटकाने के लिए डांट पिलाई है और न ही कोई बीच-बचाव का रास्ता सुझाया है। हालात यह हैं कि छत्तीसगढ़ में राजस्थान की पुरानी कोल माइंस में कोयला बिल्कुल खत्म हो गया है और नई माइंस में खनन की अनुमति छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल दे नहीं रहे हैं। दो कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों के झगड़े में कोयले की आपूर्ति न होने से राजस्थान में अब कभी भी बिजली संकट छा सकता है।
राजस्थान में कोयला संकट की स्थिति में छत्तीसगढ़ ने मदद से किया इनकार
कोयला खनन से जुड़े मुद्दे पर राजस्थान और छत्तीसगढ़ सरकारें आमने-सामने हैं. कोयले की एक खान को लेकर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के बीच ठन गई है। राजस्थान में कोयला संकट की स्थिति है लेकिन छत्तीसगढ़ ने मदद करने से इनकार कर दिया है. राजस्थान को छत्तीसगढ़ में अलॉट पारसा कोल ब्लॉक खान में माइनिंग के लिए छत्तीसगढ़ सरकार मंजूरी नहीं दे रही है, जबकि केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने इसकी क्लीयरेंस पहले ही दे दी है।

बीजेपी सरकार के दो मंत्रालयों ने क्लीयरेंस दी, कांग्रेस सरकार ने अटकाई
बीते महीने कोयला संकट के दौर में मुख्यमंत्री गहलोत ने हाईलेवल की बातचीत कर 2 नवंबर को कोल मिनिस्ट्री से इस खनन के लिए क्लीयरेंस जारी करवाई थी। इससे पहले वन, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से 21 अक्टूबर को ही क्लीयरेंस ले ली गई थी। बीजेपी सरकार के दो केंद्रीय मंत्रालयों से राजस्थान 15 दिनों में दो महत्वपूर्ण क्लीयरेंस लेने में सफल रहा। अब अपनी ही पार्टी की कांग्रेस सरकार ने क्लीयरेंस फाइल अटका दी है और इस पर कोई स्पष्ट बातचीत भी नहीं की जा रही है।

सीएम गहलोत ने पहले बघेल को फिर सोनिया गांधी को लिखी चिट्ठी
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल को पत्र लिखकर जरूरी स्वीकृतियां जारी करने का आग्रह भी किया था। लेकिन छत्तीसगढ़ सरकार ने टका सा जवाब दे दिया और अपने सियासी फायदे को देखते हुए अनुमति देने से इनकार कर दिया। इस पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपनी पार्टी की अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखकर इस मामले में हस्तक्षेप करने की गुजारिश की थी, ताकि उनके कहने पर भूपेश बघेल खनन की अनुमति दे दें। लेकिन अब तक सोनिया गांधी ने इस पर कोई प्रभावी कार्यवाही नहीं की है।

राजस्थान महंगी बिजली खरीद का भार उपभोक्ताओं पर ही डालेगा
इस बीच पुरानी माइंस में कोयला खत्म होने से राजस्थान में बहुत जल्द बिजली संकट उत्पन्न हो सकता है। अन्यथा राजस्थान को दूसरे राज्यों से ज्यादा महंगी बिजली खरीदनी होगी। इसका खामियाजा उपभोक्ताओं को ही भुगतना पड़ेगा। बता दें कि कोयला की कमी से बिजली संकट झेल रहे राजस्थान के लिए यह माइन लाइफ लाइन की तरह है। इस कोल ब्लॉक से रोजाना 12 हजार टन यानी करीब 3 रैक कोयला मिलेगा। मोटे अनुमान के अनुसार यहां से 5 मिलियन टन कोयला हर साल निकाला जा सकेगा। इस नए ब्लॉक से सालाना 1 हजार रैक से ज्यादा कोयला मिलने की संभावना है। अगले 30 साल के लिए 150 मिलियन टन कोयले का भंडार है। इससे राजस्थान केंद्र की कोल इंडिया और सब्सिडियरी कंपनियों पर कम निर्भर रहेगा।

जयपुर में 12 दिसंबर को ही कांग्रेस की महंगाई के खिलाफ हुई रैली में छत्तीसगढ़ सीएम भूपेश बघेल और राजस्थान सीएम अशोक गहलोत के बीच मुलाकात हुई थी। इस रैली में सोनिया-गांधी और राहुल गांधी भी शामिल हुए थे। आपसी बातचीत में राजस्थान के मुख्यमंत्री गहलोत ने कोल माइंस की मंजूरी का मुद्दा उठाया भी था। लेकिन तब बात नहीं बन पाई। दोनों राज्यों में एक ही पार्टी की सरकार होने के बावजूद मामला फंसा हुआ है। दरअसल, बघेल स्थानीय सियासत के चलते नहीं दे रहे हैं मंजूरी। पारसा के सेकेंड ब्लॉक और एक दूसरे ब्लॉक में राजस्थान सरकार को माइंस अलॉट है। कोल माइंस का इलाका वन विभाग के अंडर आता है और वहां ग्रामीण-आदिवासी खनन का विरोध कर रहे हैं। स्थानीय हल्के-फुल्के विरोध के कारण छत्तीसगढ़ सीएम बघेल कोल माइंस का मंजूरी देने में देरी कर रहे हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here