कल-कल करती बहती नदियाँ हर पल मुझसे कहती हैं ,
तीर का पाने की चाहत मैं दिन रात सदा वह बहती हैं,
कोई उन्हें पूछे यह जाकर जो हमसे नाराज बहुत ,
मैने सहा बिछुड़न का जो गम क्या इक पल भी सहती हैं |
मयूरा की माधुर्य कूकन कानो मैं जब बजती हैं ,
बारिश के आने से पहले बादल मैं बिजली चमकती हैं ,
प्रीतम से मिलाने की चाहत कर देती बेताब बहुत ,
बादल को पाने की खातिर जैसे धरती तड़पती हैं |
हो के जुदा कलियाँ डाली से कब वो खुश रह पाई हैं,
बाग़ उजड़ जाने की पीड़ा बस माली ने पाई हैं ,
तुम क्या जानो प्रेम-प्यार और जीने-मरने की कसमें,
अपने दिल की सुनना पाई , यह तो पीर पराई हैं |
चंदा अब भी इंतजार मैं उसको चकोरी मिल जाये ,
सुख गए जो वृक्ष घनेरे अब फिर से वो खिल जाये ,
काटी हैं कई राते हमने इक-दूजे के बिन रहकर ,
अब ऐसे मिल जाएं हम-तुम कोई जुदा न कर पाएं |
कुलदीप प्रजापति,
दिनकर का अभाश हुआ तन मल मल धोया
चित्त हुआ आराम अपिरमित मन जो भाया
देश ज्ञान हो रहा विलोपित क्या किसकी माया
राजनीति के भाव गिरगए विदूषक खल काया
wah kya bat kahi hain