अशोक गौतम
उनकी पार्टी के बीसियों समाज सेवकों के पास बीसियों धक्के खाने के बाद बड़ी मुश्किल से अपनी चिंता पर उनकी चिंता व्यक्त करा अपनी चिंता से मुक्त होने के लिए उनके दरबार में हाजिर हुआ तो देखता क्या हूं कि वे तो चिंताओं से मुझसे भी अधिक शोभायमान हैं। सिर से पांव तक चिंताओं से सुसज्जित हुए- हुए। उन्हें चिंता में मग्न देखा तो मैं अपनी चिंता भूलता सा लगा कि तभी मेरी चिंता ने मुझे झिंझोड़ा,’ ये क्या कर रहा है चिंतामणि? चिंता मत कर, ये चिंता पर चिंता व्यक्त करने की ही खाते हैं। इसलिए खुलेमन से इन्हें अपनी चिंता कह और उस पर इनकी चिंता व्यक्त करा भवसागर पार हो जा।’
और मैं लोई सी फटी चिंता को सिर से पांव तक ओढ़ उनके सामने खड़ा हो गया तो उनके पीए ने पूछा,’ क्या बात है? दरबार में क्यों आए हो?’ मैंने चिंता को उसके सामने फैला कर कहा,’ साहब बहुत चिंता में हूं। राषन का आटा हमारे राशन के डिपू वाला खुले बाजार में बेच रहा है। हमें चोकर भी नहीं मिल रही। मेरी चिंता पर हुजूर की चिंता व्यक्त हो तो मुझ गरीब की आत्मा को शांति मिले!’
मेरे इतना कहते ही उनके पीए ने उनके माथे की चार चिंता की रेखाएं मेरे माथे पर पोतते कहा,’ बस इतनी सी बात! एक चिंता के लिए इतने परेशान हो! इन्हें देखो! पूरे देश की चिंताओं पर चिंता व्यक्त करते करते चला भी नहीं जा रहा तो भी देष की जनता के हित में हर चिंता पर निरपेक्ष भाव से, पूरी ताकत से चिंता व्यक्त कर अपना धर्म निभाए जा रहे हैं। मिलेगा कहीं तुम्हें ऐसा सकाम कर्मयोगी! मैं तो कहता हूं कि विपक्ष सर्वे करा कर देख ले तो सिद्ध हो जाए कि आजतक जितनी भी सरकारें बनीं ये उनमें से सबसे बड़े सकाम कर्मयोगी होंगे।’
तभी वे मेरी चिंता को पीए के हवाले कर अचानक मेरी ओर मुड़ चिंतित लहजे में बोले,’ बस नागरिक! एक चिंता से हार गए यार! मुझे देखो! मेरा तो ये कार्यकाल भी जैसे चिंता व्यक्त करते हुए ही गुजर जाएगा। आप लोगों के लिए ही तो सुबह उठकर शौच जाने से पहले मीडिया के सामने हर ऐरी गैरी चिंता पर भी चिंता व्यक्त करना शुरू कर देता हूं और रात को भी जब जब नींद खुलती है, यह दीगर बात है कि राजा कि कारनामे के कारण नींद आती ही किसे है? चौबीसों घंटे चलने वाले खबरिया चैनलों के आगे चिंता व्यक्त करता रहता हूं। ये चैनल भी न! न खुद सोते हैं और न सरकार को सोने देते हैं। सच कहूं, थक गया मैं तो चिंताओं पर चिंता व्यक्त करता- करता। अब तो बस संन्यास लेना चाहता हूं,’ उन्होंने वैराग्य की आधी लंबी सांस भरी ही थी कि तभी उनकी सांस को बीच में रोक उन्हें उनके पीए ने बताया,’ बुरी खबर है दार जी! न्यूज चैनलों से पता चला है कि आसमान छू रहे प्याज के दाम आपके चिंता व्यक्त करने के बाद भी नहीं गिरे। वैश्णव हैं कि प्याज के बिना थाली की ओर देखना भी नहीं चाहते। उनका मन प्याज के वियोग में वैसे ही वियोगी हो गया है जैसा कृष्ण के बिना गोपियों का हो गया था। प्याज भी जैसे अब आपको इगनोर कर रहा है! ऊपर से आपके चिंता व्यक्त करने की औपचारिक रस्म की रही सही टांग शरद जी ने तोड़ दी। प्याज द्वारा जनता को रूलाने पर उनका निर्भीक बयान आया है कि प्याज के दाम अभी और बढ़ेंगे। जनता और रोने को तैयार रहे।’
‘ये शरद भी न! एक तो ऐसे ही हांड़ कंपाने वाली सर्दी और ऊपर से जनता को और रोने के लिए तैयार रहने का आवाहन! बुजुर्ग हो गए, पर समझते ही नहीं कि ऐसे बयान से जनता कम सरकार अधिक रोती है। अब?’
पीए ने उनसे भी अधिक चिंतित होते कहा,’ सर! चिंता की कोई बात नहीं। इस चिंता से उबरने का भी हमारे पास रास्ता है! पटा सको तो रामदेव को कहो कि वे प्याज के नुकसान जनता को बढ़ चढ़ कर बताएं । आजकल जनता उनपर अपने से अधिक विश्वास कर रही है। या फिर प्याज के आसमान छूते दामों पर अब ऐसी भयंकर चिंता व्यक्त कीजिए कि शरद जी का बयान उसके नीचे दब जाए और प्याज तो प्याज, उसका बीज तक शरम से सड़ कर पानी पानी हो जाए तो इस सरकार को तो इस सरकार को, आने वाली सरकारों को भी हमेशा-हमेशा के लिए प्याज से मुक्ति मिल जाए जहांपनाह!’