कल रात मेरा शानदार जानदार साठवां जन्म दिन था। मैंने यह श्रीमती के आदेश पर सोलहवें जन्म दिन की तरह धूमधाम से मनाया। क्या है न कि वह नहीं चाहती कि मैं बूढ़ा होने पर भी बूढ़ा हो जाऊं। कौन मालिक चाहेगा कि उसका गधा बूढ़ा हो? जग बूढ़ा हो रहा हो तो होता रहे।
देर रात तक उधार के माल की अच्छी पार्टी जमी। जिन मेरे दोस्तों के घुटने कई दिनों से जुड़े हुए थे वे भी उस बर्थ नाइट पार्टी में घुटने खोलकर नाचे। इसे कहते हैं मस्ती।
उसने मेरे पास गिफ्ट देत कान में फुसफुसाते कहा,’ यार जन्म दिन मुबारक हो! इंपोर्टिड है।’
‘थैंक्स!!’ मैंने गिफ्ट का भार तोलते कहा। असल में क्या है न कि आजकल गिफ्टों के वजन से ही रिश्ते, दोस्ती के वजन का पता चलता है।
‘स्पैशल गिफ्ट है। इसे आन करते समय ही जिसकी भी आवाज को पकड़ना चाहेगा पलक झपकते वह आवाज पकड़ में आ जाएगी।’
‘सच!!!’
दोस्त के पैदा होने की खुशी में डटकर भड़ास निकाल सब अपने घर को लौटे तो पत्नी ने गिफ्ट खोलने शुरू किए। गिफ्ट पत्नी के हाथों बेदर्दी से फटते रहे और उनका तथाकथित मोल लगता रहा। वह गिफ्ट तोल तोल कर अनुमानित रेट बताती रही और मैं कागज पर रेट लिखता रहा। जब सारे गिफ्टों के रेट लिख लिए गए और टोटल किया तो हम दोनों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा कि जन्म दिन पार्टी कुल मिलाकर फायदें में रही। पहली बार। मतलब पार्टी पर खर्च हुआ दो हजार और मिले तेइस सौ। यानी, तीन सौ का विशुद्ध लाभ।
मित्र का दिया गिफ्ट उस रात चुपके से खोला, गिफ्ट का स्विच आन किया। गिफ्ट से आवाज आई, ‘किसकी आवाज सुनना चाहते हो मेरे आका?’ मैंने इधर उधर नजर दौड़ाई। निश्चिंत हो गया कि कमरे में कोई नहीं तो गिफ्ट को आदेश दिया, ‘मेरे पहले खोए प्यार की आवाज सुना।’
‘उसका नाम??’
‘राधा!’
‘ठीक है। दो मिनट इंतजार करो।’ और तीसरे मिनट आवाजें आने लगी…..’जी कहिए!’
‘तुम राधा ही हो न?’
‘हां!!’
‘किस वाली??’
‘सतनाम वाली।’
‘घनश्याम वाली नहीं।’
‘नहीं! सारी रांग नंबर।’ गिफ्ट से आवाज आई तो बहुत गुस्सा आया। ये कैसा यंत्र है यार! कहा घनश्याम के पहले प्यार की आवाज को पकड़ तो पकड़ रहा है सतनाम के पहले प्यार की आवाज को। पर तभी यंत्र ने तकनीकी खराबी कह अपना पल्ला झाड़ते कहा,’ सारी! गलती हो गई । गलती के लिए खेद है। कोई और नाम लो।’
‘तो मुझे कृष्ण की वो आवाज सुनाओ जिसके पीछे गोपियां दीवानी थीं।’
‘अभी लो मेरे आका।’…….अरे ये क्या! गोपियों वाले कृश्ण के बदले मेरे पड़ोसी जयकृष्ण की आवाजें यंत्र में से आने लगीं। कम्बख्त अभी भी दफ्तर में डटा हुआ था। मैंने परेशान हो दोनों कान बंद कर लिए। साहब, ऐसा क्यों होता है कि हम बड़े आत्मविष्वास के साथ पकड़ने चलते हैं चोर और पकड़ी जाती है पुलिस! मिलावट के चक्कर में पकड़ने चलते हैं दुधिया और पकड़ी जाती हैं भैंस! न्याय के चक्कर में पकड़ने चलते हैं अपराधी और पकड़ा जाता है शरीफ! बाजू चढ़ाकर निकलते हैं बेइमानी को पकड़ने और हाथ लगती है ईमानदारी। हल्ला बोल पकड़ने चलते हैं झूठ को और पकड़ में आ जाता है सच! बड़े लाव लश्कर के साथ शेर होकर पकड़ने निकलते हैं जीवन और हाथ आती है मौत! बोल यंत्र!! बोल तंत्र ऐसा क्यों होता है? तंत्र तो चुप है पर अबके फिर यंत्र मुस्कराते हुए बोला,’ तकनीकी खराबी के लिए खेद है।’
-डॉ. अशोक गौतम
tantra chup hain kyunki wo jhoot bolna nahi chahta…..
aut yantr sach bol nahi sakta isliye khed vyakt kar diya…
insan ki sachhi mansikta ko darshata sttk vyngy .
लाजवाब व्यंग है बधाई जन्म दिन से अधिक गिफ्ट और *फायदे* की
धारदार व्यंग |