व्यंग्य

व्यंग्य/ तो तुम किसके बंदे हो यार?

भाई ढाबे में टूटी बेंच पर चिंता की मुद्रा में बैठा था। बेंच के सहारे रखे डंडे में उसने अपनी टोपी पहना रखी थी। सामने टेबल पर चाय का गिलास ठंडा हो रहा था। पर वह उस सबसे बेखबर न जाने किस लोक में खोया था। मेरे देश में वर्दी वाला चिंता में? वह तो पूरे देश को चिंता में डुबोए रखता है। तभी एक मक्खी उड़ती हुई आई और उसके चाय के गिलास में डूब आत्महत्या कर गई। मैंने उसे चिंता से उठा चौकस करते कहा, ‘भाई साहब! ओ भाई साहब!’

‘क्या है? क्यों परेशान कर रहे हो? कानून को थोड़ा आराम करने दो। कानून पैदा होने आजतक बजते बजते थक गया है। वह अब सुस्ताना चाहता है।’

‘साहब! क्यों मजाक करते हो! माना आप कानूनवाले हैं। माफ करना, जो बुरा लगे। इस देश में कानून जागा ही कब जो उसे सुस्ताने दें। जबसे होश संभाला है तबसे तो मैंने उसे सुस्ताते ही देखा है। कभी अपने गांव की खाप में सुस्ताते हुए तो कभी अपनी तहसील के कोर्ट में। आपके पुलिस थाना में तो जितनी बार गया उसे सुस्ताते ही पाया। उसे कई बार नोट दिखा जगाने की कोशिश भी की पर वह हर बार नोट ले फिर सुस्ताने लग गया। क्या आपका ये कानून सुस्ती की गोलियां खाए रहता है चौबीसों घंटे? पकड़ना कोई होता है और सुस्ती में पकड़ किसी और को देता है।’ मैंने कहा तो वह वर्दी वाला रोने लगा, मैं डरा। यार! ये क्या हो गया! ये वर्दी इतनी संवेदनशील कबसे हो गई?

कुछ देर बाद ठंडी चाय की घूंट ले उसने कहा, ‘मेरी व्यथा सुनोगे तो समझोगे मेरी चिंता का कारण।’

‘कहो? क्या बीवी से अनबन चल रही है?’

‘नहीं। वर्दी वाले की बीवी से अनबन हो जाए, ये तो सपने में भी संभव नहीं। वह तो औरों की बीवियों को भी संभाल कर रखता है।’

‘तो क्या अंतरआत्मा जाग गई?’ मैंने उसके गिलास से ही चाय की घूंट ली पर बंदे ने चूं तक नहीं की, ‘इस देश में अंतर आत्मा किसीकी जागे तो तब अगर उसके पास हो। मेरी चिंता का कारण कुछ और है, ‘वह फिर चिंता में डूब गया। अपने देश में ये उल्टी गंगा क्यों बहनी शुरू हो गई भाई साहब! जिसे देश चिंता करने के ऐवज में पगार देता है वे एक दूसरे पर कुर्सियां उछाले जा रहे हैं और जिसे देश ने खाने की पूरी छूट दे रखी है वह चिंता में डूबा है, ‘क्या कारण है आपकी चिंता का?’ मैंने पूरी हमदर्दी के साथ कहा तो उसने बीच बीच में सिसकते कहना शुरु किया, ‘क्या बताऊं यार! विश्‍वास नहीं करोगे। मैं पिछले जन्म में भी इसी वर्दी वाला था। बड़े मजे किए थे तब। लगता था जैसे मैं अजर-अमर हूं। खुद भी खाता और अफसरों को भी खिलाता। जनता को छोड़ किसी को मुझसे कोई शिकायत नहीं थी। जनता को तो राम राज में भी शिकायत ही रही थी, ‘फिर उसने अपनी जेब से सिगरेट की डिबिया निकाल मेरी ओर बढ़ाई तो मुझे लगा मानो मैं कोई सपना देख रहा होऊं। मैंने उससे सिगरेट ले सुलगाई तो उसने आगे आत्म कथा कहनी शुरु की, ‘एक दिन मेरा गरूर टूटा और चोर के साथ माल बांटते बांटते खुशी के मारे मैं स्वर्गवासी हो गया।’

‘तो??’

‘तो क्या! चोर की तरह गच्चा देने की बहुत कोशिश की। पर यमदूत लेकर ही गए।’

‘तो?’

‘सारा का सारा मार माल धरा का धरा रह गया। यार! हम सच्ची को यहां साथ कुछ नहीं ले जा सकते तो जोड़ते मारते क्यों हैं? पर मैंने ऐसा नहीं सोचा था।’

‘तो??’

‘यमराज ने मुझे देखते ही मेरी कोई दलील सुने बिना मुझे नरक की सजा सुनाई।’

‘तो??’ मैं भी डर गया। यार! ये बंदा अपने पिछले जन्म की आत्मकथा सुना रहा है या मुझे डरा रहा है, ‘तो क्या! मैं पांव पकड़कर बड़ों बड़ों को पटाने के फन में माहिर तो था ही, सो उनके भी मैंने पांव पकड़ लिए, ‘साहब! सुधरने का एक मौका तो भगवान भी देते हैं, मेरे देश का कानून भी देता है….’

‘तो तुम क्या चाहते हो गंगा दास?’

‘एक मौका, बस एक मौका सुधरने का। अगर तब भी न सुधरूं तो जो आप सजा देंगे मुझे सहर्ष स्वीकार होगी,’ कह मैंने उनके पांव ऐसे पकड़े कि….

‘तो ???’ मैंने उसकी जेब से सिगरेट निकाली और सुलगा ली।

‘तो क्या! मेरा गिड़गिड़ाना रंग लाया और वे मान गए, बोले- अच्छा चलो ! तुम्हें एक मौका देता हूं। कहो, किस विभाग में जन्म लेना चाहते हो?’ तो मैंने कहा, जिस विभाग से खा खाकर मरा हूं।’

‘तो?’

‘तो वे बोले ,उसी विभाग ही क्यों? तो मैंने कहा, ‘प्रभु! जिस विभाग ने मुझे नरक का अधिकारी बनाया है उसी में पुनर्जन्म ले अपने पाप धोना चाहूंगा।’

‘तो??’

‘और वे मान गए। मेरा पुनर्जन्म फिर इसी विभाग में हो गया।’

‘तो खाने की पुरानी आदत थी, वह जा नहीं रही होगी?’

‘सुबह का भूला शाम को घर आना चाहता था।’

‘तो??’

‘नाके पर दो महीने से तैनात हूं। ऊपर वालों ने नाक में धुंआ कर रखा है कि हिस्सा नहीं आ रहा। पिछले हफ्ते ईमानदारी से नाके पर डटा था कि पता चला अफीम की खेप आ रही है। यों ही लाल बत्ती को हाथ दे डाला। खेप पकड़ी गई। अभी साहब को फोन भी नहीं कर पाया था कि साहब का ही फोन आ गया। सोचा, शाबाशी मिलेगी। पर साहब ने गुस्से में कहा कि ये किसको पकड़ लिया? ऊपरवालों का बंदा है। देखो, मामले को हर हाल में दबाने का। मीडिया को कुछ नहीं बताने का। प्रमोशन इसी में है कि सादर सुरक्षा के साथ जहां कहता है वहां छोड़ आओ। नहीं तो नक्सलियों के इलाके में तबादले को तैयार रहो। मैं डर गया। चुप हो गया…. परसों पता चला कि कोई साधु अप्सराओं के साथ यहां से भाग निकलने वाला है। मैं फिर सबसे आगे सीना तान नाके पर खड़ा हो गया। गाड़ी पकड़ी गई और साधुजी महाराज अप्सराओं के साथ कानून द्वारा धरे गए…’

‘तो?’

‘अभी साधु बाबा से बात भी नही कर पाए थे कि ऊपर से फोन आ गया कि पार्टी के बाबा हैं इन्हें चुपचाप जाने दो।’

‘तो??’

‘तो क्या यार! अबकी बार आज तक ईमानदारी से नौकरी करते जिसे भी पकड़ रहा हूं वह लंबे हाथों वाला ही निकल रहा है। यहां आम जनता साली अपराध क्यों नहीं करती? सोचा था, इस जन्म में कम से कम एक बार तो मैं ईमानदारी का परिचय दे यमराज को प्रसन्न कर देता। बार बार मेरी जेब से सिगरेट निकाल कर जो बड़े मजे से पी रहे हो, तुम किसके बंदे हो यार?’

-डॉ. अशोक गौतम