बड़े सैन्य बदलाव की दिशा में सशक्त कदम

तीनों सेनाओं के बीच मजबूत सेतु बनेंगे सीडीएस बिपिन रावत

योगेश कुमार गोयल

      पिछले महीने एक ऐतिहासिक निर्णय में केन्द्रीय मंत्रिमंडल की सुरक्षा मामलों पर कैबिनेट समिति (सीसीएस) द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के नेतृत्व वाली उच्चस्तरीय समिति की रिपोर्ट को मंजूरी देते हुए तीनों सेेनाओं के नेतृत्व के लिए चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) पद के सृजन की स्वीकृति दे दी गई थी, जिसके बाद गत दिनों तत्कालीन सेना प्रमुख बिपिन रावत ने देश के पहले सीडीएस के रूप में अपना कार्यभार संभाल लिया। उल्लेखनीय है कि सचिव स्तर के इस पद के लिए डोभाल के नेतृत्व वाली उच्चस्तरीय समिति ने सीडीएस की जिम्मेदारियों और ढ़ांचे को अंतिम रूप दिया था। इटली, फ्रांस, स्पेन, अमेरिका, चीन, जापान, यूके, कनाडा इत्यादि कुछ दूसरे देशों में भी चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ या ऐसी ही व्यवस्था है। केन्द्र सरकार की घोषणा के अनुसार अब रक्षा मंत्रालय के अधीन सैन्य मामलों के नए विभाग ‘डिपार्टमेंट ऑफ मिलिटरी अफेयर्स’ (डीएमए) का मुखिया ‘सीडीएस’ ही होगा। डीएमए तीनों सेनाओं में खरीद, प्रशिक्षण तथा कर्मचारियों की जरूरत में संयुक्तता बरकरार रखने के लिए जवाबदेह होगा।

      सीडीएस बिपिन रावत अब चार स्टार वाले ऐसे जनरल बन गए हैं, जो सैन्य सुरक्षा मसले पर रक्षा मंत्री के मुख्य सलाहकार होंगे, जिनका वेतन सेना के तीनों अंगों के प्रमुख के बराबर ही होगा। रक्षा और रणनीतिक मामलों में वह प्रधानमंत्री तथा रक्षामंत्री के एकीकृत सैन्य सलाहकार के रूप में कार्य करेंगे। इस नियुक्ति के बाद अब प्रधानमंत्री तथा रक्षामंत्री को सैन्य सलाह के लिए तीनों सेनाओं के प्रमुखों पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा बल्कि वे एक ही अधिकारी से तीनों सेनाओं के बारे में वांछित जानकारियां और सलाह ले सकेंगे, वहीं तीनों सेनाओं के मुखिया पहले की भांति रक्षा मंत्री को अपनी सेनाओं के बारे में पर्याप्त सूचनाएं उपलब्ध कराते रहेंगे। सरकार के इस कदम को देश की आजादी के बाद सबसे बड़े सैन्य बदलाव के रूप में देखा जा रहा है। सरकार द्वारा सीडीएस की तय की गई जिम्मेदारियों के अनुसार सीडीएस सरकार के प्रधान सलाहकार होंगे, जो सरकार और सैन्य बलों के बीच सम्पर्क सेतु की भांति कार्य करेंगे। सीडीएस पद से रिटायर होने के बाद वह कोई भी अन्य सरकारी पद ग्रहण करने के पात्र नहीं होंगे तथा सेवानिवृत्ति के बाद पांच वर्ष तक सरकार की अनुमति के बिना किसी निजी कम्पनी अथवा कॉरपोरेट में भी नौकरी नहीं कर पाएंगे।

      तीनों सेनाओं के बीच तालमेल बढ़ाने के साथ-साथ सीडीएस सैद्धांतिक मामलों, ऑपरेशनल समस्याओं को सुलझाने के अलावा देश के सामरिक संसाधनों तथा परमाणु हथियारों का प्रबंधन बेहतर बनाएंगे और युद्ध अथवा अन्य परिस्थितियों में सरकार को एक सूत्री सैन्य सलाह मुहैया कराएंगे। सीडीएस पर तीनों सेनाओं में स्वदेशी साजो-सामान का उपयोग बढ़ाने का दायित्व भी होगा और वह सेना के तीनों अंगों के ऑपरेशन, प्रशिक्षण, ट्रंासपोर्ट, सपोर्ट सर्विसेस, संचार, रखरखाव, रसद पूर्ति तथा संयंत्रों में टूट-फूट संबंधी कार्य भी देखेंगे। सेना के लिए रणनीति विकसित करने के अलावा सैन्य अधिकारियों और जवानों के बीच विश्वास बनाए रखना सीडीएस का महत्वपूर्ण दायित्व होगा। सीडीएस हालांकि तीनों सेनाओं के ऊपर तो होगा और तीनों सेनाओं व सरकार के बीच सेतु का कार्य भी करेगा लेकिन तीनों सेनाओं का कामकाज पहले की ही भांति चलेगा, सीडीएस का उसमें सीधा दखल नहीं होगा। तीनों सैन्य प्रमुखों के अधिकार यथावत बरकरार रहेंगे और सीडीएस के पास सेनाओं के संचालनात्मक अधिकार नहीं होंगे। सीडीएस के पास तीनों सैन्य प्रमुखों सहित कोई मिलिट्री कमांड नहीं होगी।

      प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसी वर्ष स्वतंत्रता दिवस समरोह में लाल किले की प्राचीर से सेना के तीनों अंगों के प्रमुख के तौर पर इस पद का ऐलान करते हुए कहा था कि भारत में तीनों सेना के प्रमुख के रूप में सीडीएस होगा। 73वें स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री ने कहा था कि भारत में अब ‘चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ’ होगा, जिससे हमारे सशस्त्र बल और अधिक प्रभावशाली बनेंगे। उन्होंने कहा था कि सीडीएस थलसेना, नौसेना और वायुसेना के बीच तालमेल को सुनिश्चित करेगा और उन्हें प्रभावी नेतृत्व देगा। अभी तक सीडीएस की जगह ‘चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी’ (सीओएससी) होता था, जिसमें तीनों सेनाओं के प्रमुख शामिल होते हैं और सबसे वरिष्ठ सदस्य को इसका चेयरमैन नियुक्त किया जाता है, जिसे रोटेशन के आधार पर रिटायरमेंट दिया जाता है। पहले तत्कालीन वायु सेना प्रमुख बी एस धनोआ इसके चेयरमैन थे और उनकी सेवानिवृत्ति के बाद बिपिन रावत को इसका चेयरमैन बनाया गया। सीओएससी के चेयरमैन की भूमिका को ही बेहतर तरीके से निर्धारित करते हुए सीडीएस का पद सृजित किया गया है और अब सीडीएस बिपिन रावत ही ‘सीओएससी’ के स्थायी मुखिया होंगे, जो इस संगठन में स्थिरता लाएंगे।

      अब सवाल यह है कि देश को आखिर सीडीएस की क्या जरूरत है? सीडीएस की नियुक्ति का मुख्य उद्देश्य तीनों सेनाओं में युद्ध की चुनौतियों से निपटने के लिए तालमेल को बढ़ाना है। दरअसल आज दुनियाभर में सेनाओं में अत्याधुनिक तकनीकों के समावेश के चलते युद्धों के स्वरूप और तैयारियों में लगातार बड़ा बदलाव देखा जा रहा है और ऐसे में देश की सुरक्षा को चाक-चौबंद करने के लिए बेहद जरूरी है कि तीनों सेनाओं (जल, थल और वायु सेना) की पूरी शक्ति एकीकृत होकर कार्य करे क्योंकि तीनों सेनाएं अलग-अलग सोच से कार्य नहीं कर सकती। दुश्मन के हमलों को नाकाम करने के लिए सेना के तीनों अंगों के बीच तालमेल होना बेहद जरूरी है। यही वजह है कि लंबे समय से सीडीएस जैसे महत्वपूर्ण पद की जरूरत महसूस की जा रही थी, जिसके जरिये तीनों सेनाओं के बीच समन्वय की कमी को पूरा किया जा सके। वैसे इस पद को सृजित करने का विचार कोई एकाएक उपजा विचार नहीं था बल्कि इस पद की जरूरत आज से करीब बीस साल पहले तब महसूस की गई थी, जब वर्ष 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान तीनों सेनाओं के बीच समन्वय की कमी देखी गई थी। उस समय तत्कालीन उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी की अध्यक्षता में गठित ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स (जीओएम) ने कारगिल युद्ध की समीक्षा करने पर पाया था कि तीनों सेनाओं के बीच समन्वय की कमी थी।

      कारगिल समीक्षा समिति का मानना था कि अगर तीनों सेनाओं के बीच आपसी समन्वय होता तो नुकसान को कम किया जा सकता था। मंत्रियों के समूह ने तीनों सेनाओं में तालमेल स्थापित करने के लिए पेश की गई अपनी रिपोर्ट में कहा था कि तत्कालीन सेना प्रमुख तालमेल की कमी के चलते एक सूत्री रणनीति बनाने में नाकाम रहे। उसी आधार पर समिति ने तब सरकार को एकल सैन्य सलाहकार के तौर पर ‘चीफ आफ डिफेंस स्टाफ’ के पद का सृजन करने का सुझाव दिया था। हालांकि जीओएम की सिफारिशों को उस समय कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी ने स्वीकार भी कर लिया था किन्तु एयरफोर्स द्वारा इसका विरोध किए जाने के कारण इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था। अन्य दोनों सेनाओं ने समिति की सिफारिशों का समर्थन किया था। बाद के वर्षों में भी राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के चलते इस दिशा में कदम नहीं बढ़ाए गए। वर्ष 2011 में गठित नरेश चन्द्र टास्क फोर्स चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी ने कहा था कि जब तक सीडीएस की घोषणा नहीं होती, तब तक चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी के स्थायी अध्यक्ष की नियुक्ति की जानी चाहिए। उसके बाद वर्ष 2016 में लेफ्टिनेंट जनरल शेकटकर कमेटी ने भी सीडीएस की नियुक्ति पर जोर देते हुए तीनों सेना प्रमुखों के अलावा चार स्टार जनरल के तौर पर चीफ कोआर्डीनेटर का पद सृजित किए जाने की सलाह दी थी।

      बीस साल पहले कारगिल समीक्षा समिति द्वारा सीडीएस पद का दिया गया प्रस्ताव अभी तक लंबित था, जिसे मौजूदा सरकार ने अमलीजामा पहनाते हुए तीनों सेनाओं के बीच समन्वय की कमी को पूरा करने की दिशा में सराहनीय पहल की है। निश्चित रूप से यह देश की सुरक्षा की नींव मजबूत करने की दिशा में एक बड़ा कदम है। बहरहाल, चूंकि सीडीएस बिपिन रावत अब देश की तीनों सेनाओं के बीच एक मजबूत सेतु की भांति कार्य करेंगे, इसलिए सीडीएस की नियुक्ति से सशस्त्र बलों को मजबूती मिलेगी और तीनों सेनाएं बेहतर तालमेल के साथ काम कर सकेंगी। दरअसल सशस्त्र बलों की परिचालनगत योजनाओं में कई बार खामियां सामने आई हैं। सीडीएस की नियुक्ति के बाद दुश्मन के खिलाफ की जाने वाली बड़ी सैन्य कार्रवाईयों में जब तीनों सेनाओं के बीच बेहतर तालमेल होगा तो ऐसे में किसी भी साझा मिशन में भारतीय सेनाओं की मारक क्षमता कई गुना बढ़ जाएगी, जिससे ऐसे मिशनों की सफलता की संभावनाएं भी काफी बढ़ेंगी।

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