ऐसी विचारधारा हो जिससे खुशी मिले : श्री संजय जोशी

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एक आदमी पत्थर तोडने का काम कर रहा था एक पथिक ने पूछा कि क्या कर रहे हो उसने कहा कि पत्थर तोड रहा हूं। उसने दूसरे से पूछा कि क्या कर रहे हो?  उसने कहा कि पत्थर तोड रहा हूं। इसकी मजदूरी से मेरे परिवार का व मेरा पेट भरेगा। पथिक ने तीसरे से पूछा तो उन्होने कहा कि पत्थर तराश रहा हूं, इससे मंदिर बनेगा और मेरे परिवार का पेट भरेगा, काम एक था लेकिन अपनी बात कहने का तरीका सभी का अलग था। यह अंतर है जिसे हमें समझने की जरूरत है । यह बात आज एसोचैम के द्वारा आयोजित आध्यात्मिक कार्यक्रम के दौरान भाजपा के वरिष्ठ नेता संजय विनायक जोशी ने कही।
उन्होने कहा कि माली में ताकत नही होती कि वह किसी बीज से पौधा बना सके।  वह साधन मात्र है खाद दे सकता है पानी दे सकता है , किन्तु पौधा नही बना सकता। यह ताकत बीज में ही होती है कि वह उसे पौधा बना दे। उन्होने कहा कि आज विश्व के कई नामचीन लोग यहां मौजूद है और उन्होने आध्यात्म पर अपने विचार व्यक्त किया। उनके अनुभवों से हमें बहुत कूछ सीखने को मिलता है। वास्तव में देखा जाय तो यह वह मार्ग है जिससे बहुत कुछ बिना कुछ किये मिलता है जिसे हमें अपने इच्छानुसार हम अपना सकते है।
उन्होने कहा कि आदमी के दिमाग मे एक तत्व होता है जिसके कारण उसके मन में निराशा आती हे। वह बाहर से नही आता, उसके जनक भी हम ही है।इसलिये निराशा , हताशा का भाव त्यागकर हमें एक एैसे विचार धारा के उद्भव को जागृत करने का प्रयास करना चाहिये, जिससे कि हम स्वस्थ रह सके। आंतरिक खुशी मिले।इस कार्यक्रम में देश के विभिन्न हिस्सों से आये आध्यात्म से जुडे लोगों ने हिस्सा लिया और अपने अनुभव शेयर किया। यह कार्यक्रम कनेडिया परिवार द्वारा लीमरेडियन होटल में आयोजित किया गया था इसलिये सभी अतिथियों को स्मृति चिन्ह कनेडिया परिवार के सदस्यों ने ही दिया।

2 COMMENTS

  1. संजय जी ने बिलकुल सही कहा। यही रहस्य है, यश और सफलता का। कोई बंधुआ मज़दूर बन जाता है।कोई नौकर की भाँति काम करता है। कोई कर्मचारी। कोई स्वामित्व के भाव से काम करता है। और कोई महान कर्मयोगी बनकर भगवत गीता के पथ पर चलकर आगे बढता है।
    बहुत सुन्दर बात, जोशी जी ने संक्षेप में कह डाली।

    धन्यवाद:

  2. अर्थशास्त्र, समाजसास्त्र, राजनीतिशास्त्र और अध्यात्म सभी का उद्देश्य मानव को सुखी या खुशी बनाना है। लेकिन आज लोगो को लगता है की हम भोग से सुखी बनेंगे। अध्यात्म बिना कोई भौतिक आलम्बन के हमे सुख के अक्षय भण्डार से रूबरू करा सकता है। और अध्यात्म के बगैर सुखी या खुशी प्राप्त होगी वो क्षणिक होगी, भोग तो सुरसा के मुँह की तरह है।

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