सुमन आग भीतर लिए

0
128

jivan harहार जीत के बीच में, जीवन एक संगीत।

मिलन जहाँ मनमीत से, हार बने तब जीत।।

 

डोर बढ़े जब प्रीत की, बनते हैं तब मीत।

वही मीत जब संग हो, जीवन बने अजीत।।

 

रोज परिन्दों की तरह, सपने भरे उड़ान।

सपने गर जिन्दा रहे, लौटेगी मुस्कान।।

 

रौशन सूरज चाँद से. सबका घर संसार।

पानी भी सबके लिए, क्यों होता व्यापार।।

 

रोना भी मुश्किल हुआ, आँखें हैं मजबूर।

पानी आँखों में नहीं, जड़ से पानी दूर।।

 

निर्णय शीतल कक्ष से, अब शासन का मूल।

व्याकुल जनता हो चुकी, मत कर ऐसी भूल।।

 

सुमन आग भीतर लिए, खोजे कुछ परिणाम।

मगर पेट की आग ने, बदल दिया आयाम।।

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

13,061 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress