जन-जागरण

सुप्रीम कोर्ट का स्वागतयोग्य फैसला है हज सब्सिडी पर रोक

सिद्धार्थ शंकर गौतम

धर्म के नाम पर सरकार द्वारा पिछले १८ वर्षों से दी जा रही हज सब्सिडी पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। कोर्ट ने सब्सिडी को पूरी तरह खत्म करने के लिए दस वर्ष का वक्त दिया है। कोर्ट ने केंद्र की उस नीति को गलत ठहराया है जिसके तहत हज यात्रियों के हवाई टिकट का दस फीसदी बोझ सरकार उठाती है। हालांकि शीर्ष न्यायालय के इस आदेश पर अमल के लिए १० वर्षों का समय नियत किया गया है किन्तु मुस्लिम उलेमाओं तथा बुद्धिजीवियों की तरफ से यह बात सामने आई है कि इसे तत्काल प्रभाव से बंद कर देना चाहिए| शीर्ष कोर्ट ने सरकारी प्रतिनिधिमंडल में शामिल सदस्यों की संख्या भी २ करने का आदेश सरकार को दिया है| गौरतलब है कि सरकार हर वर्ष ६०-६५ लोगों को सरकारी प्रतिनिधिमंडल में शामिल कर मुफ्त में हज यात्रा कराती थी लेकिन न्यायालय ने आदेश दिया है कि सरकारी प्रतिनिधिमंडल में दो से ज्यादा सदस्य शामिल नहीं होने चाहिए। गत वर्ष २७ लोगों का प्रतिनिधिमंडल हज यात्रा पर भेजा गया था जबकि इस वर्ष करीब ३० लोगों को सरकारी खर्चे पर हज यात्रा हेतु भेजे जाने के प्रयास थे| सरकार द्वारा भेजा जाने वाला यह प्रतिनिधिमंडल भारत-साउदीअरब के बीच बेहतर रिश्तों की प्रगाढ़ता को और मधुर करने की कोशिश करता है| अब यह कोशिश कितनी सफल होती है यह तो सरकार जाने किन्तु आम जनता के धन का दुरुपयोग रोककर न्यायालय ने निश्चित रूप से लोगों का दिल जीत लिया है|

दूसरी ओर हज सब्सिडी के नाम पर पिछले दरवाजे से एयर इंडिया की जेब भरने का काम भी सरकार नहीं कर पाएगी। यही वजह है कि ज्यादातर मुस्लिम संगठन सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का स्वागत कर रहे हैं। दरअसल हज सब्सिडी का सारा खेल हवाई टिकट को लेकर है। भारत से हर साल सवा लाख लोग हज कमेटी के जरिए हज करने जाते हैं जिन्हें सब्सिडी मिलती है। लगभग ५०-६० हजार लोग निजी ऑपरेटर के जरिये हज करने जाते हैं जिन्हें सब्सिडी नहीं मिलती किन्तु दोनों के खर्च में कोई खास फर्क नहीं होता। दोनों ही तरह से हज यात्रा करने पर प्रति व्यक्ति ९५ हजार से लेकर १.५ लाख रुपये तक खर्च आता है क्योंकि हज कमेटी सिर्फ एयर इंडिया की चार्टर्ड फ्लाइट बुक करती है। फ्लाइट काफी महंगी पड़ती है, जबकि निजी एयरलाइन से जाना सस्ता पड़ता है। मसलन अगर कोई जायरीन सब्सिडी न लेकर अपने खर्चे पर निजी एयरलाइन से हज पर जाता है तब भी उसे हज यात्रा के उतने ही पैसे चुकाने होते हैं जितने सब्सिडी पाकर एयर इंडिया के विमान से जाने पर चुकाने होते। इस कवायद में हाजियों को भले ही फायदा न हो रहा है, एयर इंडिया को सरकार से उनके टिकट पर अच्छी-खासी सब्सिडी मिल जाती है। अब इसपर रोक लग जाएगी। वहीं सरकार भी चुनाव के वक़्त अल्पसंख्यक कार्ड खेलकर मुस्लिम समुदाय को बरगलाती रहती है जिसपर रोक लगना सरकार के लिए किसी झटके से कम नहीं|

न्यायमूर्ति आफताब आलम और रंजना प्रकाश देसाई की पीठ ने केंद्र सरकार व प्राइवेट टूर ऑपरेटर्स की याचिकाओं पर अंतरिम आदेश जारी किए। इन संगठनों की मांग है कि सरकार हज के लिए एयर इंडिया के जहाज से यात्रा करने की अनिवार्यता खत्म करे। हजयात्रा किसी भी मुसलमान की सबसे बड़ी ख्वाहिश होती है, लेकिन इस पुण्ययात्रा को लेकर अरसे से एक विवाद चल रहा है। हजयात्रा पर आने वाले हवाई खर्च का दस फीसदी खर्च सरकार खुद वहन करती है जो मुस्लिम तुष्टीकरण के अलावा कुछ नहीं है। महत्वपूर्ण बात ये है कि मुस्लिम समुदाय का भी एक हिस्सा इसे गलत मानता है। उसके मुताबिक हज एक निजी धार्मिक यात्रा है जिसके लिए सिर्फ अपनी मेहनत की कमाई ही खर्च करनी चाहिए। यहाँ यह भी ध्यान देने योग्य तथ्य है कि सरकार सब्सिडी एयरइंडिया को किराए में देती थी और नाम हज यात्रियों का होता था| ऐसे में सरकार के लिए वाहवाही लूटना तथा अल्पसंख्यक हितों की बात करना सरकार के लिए संजीवनी का काम करता था| वहीं हज यात्रा को सरकारी अनुदान मिलने पर हिंदूवादी संगठन भी कई वर्षों से बाबा अमरनाथ तथा कैलाश मानसरोवर जैसी दुर्गम यात्राओं के लिए सब्सिडी की मांग कर रहे थे| अब शीर्ष न्यायालय के आदेश के बाद इनकी मांग कमजोर पड़ना तय है|

किसी भी समुदाय में धार्मिक यात्राओं का मसला निजी आर्थिक एवं सामाजिक आधार पर होता है| इसमें यदि राजनीतिक लाभ-हानि के मद्देनज़र सरकारी अनुदान दिया जाए तो अन्य समुदायों की भावनाएं आहत होना अनिवार्य है| चूँकि सरकारी अनुदान धार्मिक यात्राओं के लिए होता है तथा इनसे वर्ग विशेष की भावनाएं जुडी होती है अतः इस पर अंगुली उठाना वैमनस्यता का प्रतीक बन जाता है| शीर्ष न्यायालय का आदेश हर मायने में स्वागतयोग्य है तथा इसकी भरसक प्रशंसा होनी चाहिए|