पंद्रहवीं लोकसभा चुनाव की तारीख जैसे-जैसे नजदीक आ रही है, कई गुम्फित चेहरे चुनावी उत्सव में भाग लेने सामने आते दिखलाई पड़ रहे हैं। पिछले कई वर्षों से राजनीति की मुख्य धारा से खुद को अलग-थलग रखने वाले के.एन.गोविंदाचार्य भी चुनावी रंग को प्रभावित करने का मन बना चुके हैं। उनके संरक्षण में तैयार हुआ राष्ट्रवादी मोर्चा लोकसभा की लगभग 150 सीटों पर चुनाव लड़ने जा रहा है।इस मोर्चा का गठन 14-15 जनवरी को इलाहाबाद (प्रयाग) में आयोजित एक सम्मेलन में किया गया था। मोर्चा में फिलहाल 22 घटक दल शामिल हैं, जिनकी क्षेत्रीय स्तर पर खासा पहचान है। 15 फरवरी को मोर्चा के संचालन समिति की कोलकाता में बैठक बुलाई गई थी, जिसमें जाति एवं मजहब के आधार पर देश को बांटने के प्रयासों की निंदा की गई। साथ ही एक राजनीतिक प्रस्ताव पारित कर शक्तिशाली भारतीय राष्ट्र निर्माण की बात कही गई थी। तभी से यह अटकलें लगाई जाने लगी थी कि राष्ट्रवादी मोर्चा आगामी चुनाव में हिस्सा ले सकता है।
अंततः राष्ट्रवादी मोर्चा के संयोजक डा. सुरजीत सिंह डंग ने गोविंदाचार्य की मौजूदगी में राष्ट्रीय राजधानी में एक संवाददाता सम्मेलन के दौरान चुनाव में जाने की घोषणा कर दी।
आम चुनाव से ठीक पहले इस मोर्चा का गठन और बतौर संरक्षक गोविंदाचार्य के जुड़ने से राष्ट्रवादी मोर्चा का महत्व बढ़ गया है। राजनीति की बारीक देशी समझ रखने वाले और गोविंदाचार्य की काबिलीयत से वाकिफ लोगों का मानना है कि आम चुनाव में यह मोर्चा कहीं-न-कहीं राष्ट्रवाद की राजनीति करने वाली ताकतों को नुकसान पहुंचा सकता है। क्योंकि, अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदियों से निपटने की कला उन्हें खूब आती है। कभी अपनी इसी कला में निपुण होने और व्यापक दृष्टि रखने की वजह से वे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में अपने ही लोगों की आंखों की किरकिरी बन गए थे। जिसके बाद उन्होंने खुद को पार्टी से किनारा कर लिया था।
हालांकि, गोविंदाचार्य ने स्पष्ट करते हुए कहा है कि उनकी न तो किसी से दुश्मनी है, न ही दोस्ती। उनका मोर्चा भारत-परस्त और गरीब-परस्त राजनीति की वकालत करने के लिए चुनावी मंच का उपयोग भर करेगा।
संवाददाता सम्मेलन में गोविंदाचार्य ने कहा, ‘देश में गत 150 वर्षों से चली आ रही विकास की अवधारणा अब गलत प्रामाणित हो रही हैं। जरूरत इस बात की है कि विकास स्थानीय भौगोलिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए किया जाए। लेकिन परिस्थितियां बिल्कुल अलग हैं। फिलहाल हमलोग विकास के जिस रास्ते पर चल रहे हैं, वह रास्ता बंद गली की तरफ जाता है। यदि नजर डालें तो विदर्भ समेत देश में कई उदाहरण मिल जाएंगे।’
यहां पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा कि नजर बदलें तभी नजारा बदलेगा। अन्यथा वादे-दावे हवा में ही झूलते रह जाएंगे। अब चमक-दमक की राजनीति का बोलबाला हो गया है। दलों में जमीनी कार्य करते हुए नेता बनने की प्रक्रिया थम सी गई है। हम इन बातों को जनता तक पहुंचाएंगे।
फिलहाल आम चुनाव के मद्देनजर राष्ट्रवादी मोर्चा दिल्ली में 24 मार्च को एक सम्मेलन की तैयारी में है, जिसमें चुनाव सुधार व भ्रष्टाचार समेत अन्य कई मुद्दों को मुद्दा बनाने को लेकर विचार-विमर्श होने की संभावना है।
उधर, गोविंदाचार्य को जानने वालों का मानना है कि व्यवस्था परिवर्तन जैसे बड़े उद्देश्य के लिए चुना गया यह रास्ता काफी आसान है। इसके माध्यम से लक्ष्य तक पहुंच पाने की संभावना एकबारगी कम होती मालूम पड़ती है। क्योंकि, इस रास्ते में भटकाव ज्यादा हैं। देश की जनता उनसे एक व्यापक आंदोलन पैदा करने की उम्मीद रखती है और उनकी तरफ एक उम्मीद से टकटकी लगाए है। ताकि, संभावनाओं की नई किरणें पैदा हों और व्यवस्था परिवर्तन के अंतिम लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके।