मेहमान बनकर भारतीयों के सीने में खंजर उतार रहे हैं तबलीगी जमात के लोग !

                                                                                    मुरली मनोहर श्रीवास्तव

दिल्ली का निजामुद्दीन तबलीगी जमातियों का केंद्र बना। इस केंद्र पर देश दुनिया से बड़ी संख्या में लोगों ने शिरकत की, यहां तक तो ठीक है। मगर इनके मकसद और मनसूबों पर देश के अन्य मुस्लिम तबके को चुप्प ही रहना चाहिए। क्योंकि इस मरकज से जुड़े लोग लगातार पॉजिटिव पाए जा रहे हैं। अगर ये सही मायनों में धर्म प्रचारक थे तो इस कदर छुपकर देश के विभिन्न हिस्सों में जाने के आखिर क्या हैं मायने ? भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है, यहां किसी को भी किसी तरह की कोई पाबंदी नहीं है। इसका मतलब ये तो नहीं कि खुशहाल भारत को तंगहाल बना दिया जाए।  तबलीगी मरकज के निजामुद्दीन कोरोना केन्द्र के दो आयाम सामने नजर आ रहे हैं उनमें एक तो वे भारतीय नागरिक जिन्होंने कई दिनों चले तबलीगी जमात के मरकज में हिस्सा लिया और दूसरे वे विदेशी नागरिक जिन्होंने इसमें बतौर मेहमान और धर्मोपदेशक के तौर पर शिरकत की।

तबलीगी का मतलब मौत का सौदागर !

तबलीगी मरकज से जुड़े लोगों का काम है कि वो अपने धर्म का प्रचार-प्रसार करें। अल्लाह की कही बातों का प्रचार करें। जमात का मतलब होता है एक खास धार्मिक समूह। यानी धार्मिक लोगों की टोली, जो इस्लाम के बारे में लोगों को जानकारी देने के लिए निकलते हैं। मरकज का मतलब होता है बैठक या फिर इनके मिलने का केंद्र। मगर अफसोस कि ये रास्ते से ही भटक गए और अपने तरीके से पूरे देश को ही संक्रमित करने में लग गए हैं। अब तक जो भी आंकड़े सामने आए हैं सरकारी सूत्रों के हवाले से समाचार एजेंसी एएनआई की मानें तो दुनिया भर के करीब 41 से अधिक देशों के लोगों ने इस कार्यक्रम में हिस्सा लिया था, जिनकी संख्या करीब 960 है। इनमें सबसे अधिक नागरिक इंडोनेशिया (379), बांग्लादेश (110), मलेशिया (75) और थाईलैंड के लोग शामिल थे। इतना ही नहीं, इस कार्यक्रम में अमेरिका, वियतनाम जैसे देशों का भी नाम शामिल है। हालांकि, यह स्पष्ट कर दें कि अभी यह टेंटेटिव लिस्ट है। 

मरकज में शामिल लोग शक के दायरे में !

किसी भी घटना के होने के बाद जब उसके अंश कुछ आपको सामने दिखने लगते हैं तो शक विश्वास में बदल जाता है। कुछ ऐसे ही हालात खड़े हुए निजामुद्दीन के तबलीगी मरकज जमात के इस जमात में देशभर के लगभग 9000 लोगों की पहचान कर क्वारंटाइन किया जा चुका है। स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक देश भर में मिले 1965 पॉजिटिव केस में से 400 निजामुद्दीन मरकज से जुड़े हुए हैं। हालांकि, देश भर में तबलीगी जमात के जो 9000 लोगों की पहचान की गई है, उनमें से 1300 लोग विदेशी बताए गए हैं। इस तरह से मिल रहे प्रमाण का मतलब ही है कि कही न कहीं इस मरकज के मायने जरुर देश को तबाह करने की होगी। वर्ना जब सरकार और देश को मानते हैं तो यहां घोषणा के बाद उन्हें छुपने की क्या जरुरत है वो सामने आते क्यों नहीं।

धर्म प्रचार या कुत्सित मानसिकताः

मरकज का उद्देश्य धर्म प्रचार है तो किसी से दुर्व्यवहार क्यों किया जा रहा है जमात के द्वारा। उत्तर प्रदेश में इलाज कर रही महिला चिकित्सकों के साथ गलत तरीके से पेश आना। कहीं मल-मूत्र को यू ही फेंक दिया जाना, क्या यही सीख मिली थी मरकज के इन जमातियों को। क्या इसी तरह से इंसान से पेश आने के लिए उन्हें सबक दी गई थी। अगर नहीं तो ऐसा क्यों कर रहे हैं, अगर कर रहे हैं तो इससे साफ जाहिर होता है कि इनके मनसूबे गलत थे। मुट्ठी भर मरकज के इन मुस्लिमों ने भारतीय देशभक्त मुसलमानों पर ही सवाल खड़ा कर दिया है। इस धर्म से जुड़े लोगों को इनकी हरकत पर अफसोस भी हो रहा है कि ऐसी घिनौनी हरकत क्यों कर रहे हैं। हजरत मौलाना इलियास कांधलवी ने 1926-27 में सुन्नी मुसलमानों के संगठन तबलीगी जमात की स्थापना दिल्ली में निजामुद्दीन स्थित मस्जिद से की थी। इनका मकसद था इस्लाम की शिक्षा देना। इलियास शुरुआत में हरियाणा के मेवात के मुस्लिम समुदाय के लोगों को पहली जमात में ले गए थे। मगर इस समय इनके जमात के द्वारा किए जा रहे कार्य इनकी कार्यशैली पर ही सवाल खड़ा कर रहा है। 

अपने मूल से भटक गया है मरकजः

जमात दुनिया के 213 मुल्कों में फैली है और इससे दुनियाभर के 15 करोड़ लोग इसके सदस्य हैं। बिना सरकारी मदद के संगठन का संचालन करने का दावा करते हुए इन लोगों ने बताया कि जमात अपना अमीर (अध्यक्ष) चुनती है और लोग उसी की बात मानते हैं। कहा जाता है कि यह सुन्नी मुस्लिमों का संगठन है। इसका पहला धार्मिक कार्यक्रम 1941 में भारत में हुआ था। इसमें 25000 लोग शामिल हुए थे। 1940 तक जमात का कामकाज सिर्फ भारत तक ही था। लेकिन बाद में इसकी शाखाएं पाकिस्तान और बांग्लादेश में खुलीं। जमात द्वारा हर साल होने वाले कार्यक्रम को इज्तेमा कहते हैं। मगर इस इज्तेमा के शायद पहले वाले मायने नहीं रह गए हैं, तभी तो देश दुनिया में तबाही को जन्म देना ही अपना धर्म समझने लगे हैं अगर ऐसा नहीं तो अभी भी वक्त है इंसानियत को समझें और अपने मूल पर लौट जाएं।

                                                देश में कुछ ऐसे हालात हो गए हैं कि इस धर्म पर से लोगों को विश्वास कमजोर होता जा रहा है। यह वहीं मुल्क है जहां कहा जाता है ‘..तू हिंदु बनेगा न मुसलमान बनेगा, इंसान की औलाद है इंसान बनेगा….’ फिर इस परिभाषा को क्यों दागदार कर रहे हैं कुछ लोग, आखिर क्यों नहीं समझते की अपराध की परिभाषा का मतलब ही कुछ दिनों के बाद इस समुदाय का नाम लिया जाने लगेगा। भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की अपनी जो पहचान है इसको छेड़ने की कोशिश नहीं कि जानी चाहिए। इतिहास गवाह है कि लाख जुल्मों सितम के बावजूद भी भारत अपने गौरव को कभी नहीं खोया और जिसने भी इसकी तरफ आंख उठाया तो उसे भी निशतानाबुद करने में कोई कसर नहीं छोड़ेगा।

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