कम मतदान ने भाजपा की परेशानी बढ़ाई

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प्रमोद भार्गव

               देश  में हुए दो चरणों के चुनाव में 190 सीटों पर मतदान हो चुका है। यानी कुल 543 में से 35 प्रतिशत  संसदीय क्षेत्रों के उम्मीदवारों का भाग्य ईवीएम में बंद हो चुका है। इन दो चरणों में हुए कम मतदान ने राजनीतिक दलों के साथ मतदाता को भी भ्रमित कर दिया है। जबकि चुनाव प्रचार चरम पर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तो ओबीसी के कोटे में कांग्रेस द्वारा कर्नाटक में मुस्लिमों को आरक्षण देने का मुद्दा उछालकर हिंदु वोटों को धु्रवीकृत करने का काम भी किया, बावजूद मतदान का नहीं बढ़ना भाजपा के लिए चिंता का सबब बन गया है। मध्यप्रदेश  में लोकसभा चुनाव के पहले चरण के बाद दूसरे चरण में भी मतदान में कमी ने भाजपा नेताओं की परेशानी बढ़ा दी है। दूसरे चरण में उन महिला मतदाताओं अर्थात लाडली बहनों ने भी कम मतदान किया है, जिन्होंने विधानसभा चुनाव में बढ़-चढ़कर मतदान करके भाजपा को 163 सीटें दिलाई थीं। मतदाता के इस रुख के चलते जीत-हार का अनुमान लगाने वाली एजेंसियां भी असमंजस में है। मतदाता की उदासीनता ने ऊंट किस करवट बैठेगा, यह संशय बढ़ा दिया है।

               लोकतंत्र में वैसे तो जनता देश  की भाग्य-विधाता होती है, लेकिन जीत के बाद नेता और दल जनता के भाग्य-विधाता विकास का दावा करते-करते बन जाते है। इस कथित भाग्य-विधाता की दूसरे चरण में हुए कम मतदान के बाद नींद उड़ी हुई है। कम मतदान को राजनैतिक दल अपने हिसाब से परिभाशित करते हैं। ज्यादातर इसे सत्ताधारी दल के विपरीत हुआ मतदान माना जाता है। लेकिन नरेंद्र मोदी के आक्रामक प्रचार और हिंदुओं के धु्रवीकरण की रणनीति के चलते फिलहाल यह कहना जल्दबाजी होगी कि मतदाता ने अपना रुख बदल दिया है। 60 प्रतिशत  के आसपास पहुंचा मतदान अभी भी इस बात का संकेत है कि समूचे देश  में भाजपा की बढ़त बनी हुई है। लेकिन जिस मध्यप्रदेश  में भाजपा को लाडली बहनों से सबसे ज्यादा उम्मीद थी, वे मतदान के प्रति उदासीन दिखाई दी है। दूसरे चरण में खजुराहो, टीकमगढ़, दमोह, होषांगाबाद, रीवा और सतना में 59 प्रतिशत  मतदान हुआ है। जबकि यहां 2019 में 67 प्रतिशत  मतदान हुआ था। 2019 की तुलना में इनमें से चार सीटों पर महिलाओं ने कम मतदान किया है। टीकमगढ़ में 2019 में 63.80 प्रतिशत  मतदान हुआ था, जबकि 2024 में 56.35 प्रतिशत  रह गया। सतना में 2019 में 70.77 था, जो अब 59.21 रह गया। खजुराहो में 2019 में 64.76 प्रतिशत  मतदान हुआ था, जो अब 53.06 रह गया। हालांकि दमोह और होशंगाबाद  में महिलाओं ने वोट 2019 की तुलना में ज्यादा डाले। 

               दो चरणों में 190 सीटों पर हुए मतदान में ज्यादातर सीटों पर कम मतदान के चलते भाजपा को झटका लगा है। जबकि अच्छे मतदान के लिए भाजपा ने प्रत्येक मतदान केंद्र पर सूक्ष्म प्रबंधन के दावे किए थे। कार्यकर्ताओं को जुटाकर अमित शाह तक ने मतदाता को मतदान केंद्र तक पहुंचाने के गुर सिखाए थे। उधर जिला प्रशासन भी अधिक मतदान के लिए उन सब टोने-टोटकों को आजमाता रहा है, जिन्हें मतदान बढ़ाने का परंपरागत फार्मूला माना गया है। हालांकि इन टोटकों में ज्यादा कुछ असरकारी कभी दिखाई नहीं दिया। प्रशासन की हुंकार पर सरकारी स्कूलों के विद्यार्थियों, आंगनवाड़ी महिला कार्यकर्ताओं और स्व-सहायता समूह की महिलाओं को इकट्ठा करके मानव श्रृंखला बनाकर और कुछ नारे लगाकर इन टोटकों की इतिश्री न केवल प्रदेश  बल्कि पूरे देश  में कर ली जाती है। जिसके नतीजे लगभग शून्य  होते हैं।

               बहरहाल भाजपा संगठन इस तैयारी में लगा रहा था कि मतदान लगभग 10 प्रतिशत  तक बढ़ जाए। इस नाते भाजपा ने प्रत्येक मतदान केंद्र पर 370 वोट बढ़ाने का पाठ भी कार्यकर्ताओं को पढ़ाया था। परंतु हुआ इसका उल्टा, 10 से 12 प्रतिशत  तक मत-प्रतिशत  कम हो गया। साफ है, वोट बढ़ाने का फार्मूला कारगर साबित नहीं हुआ है। संभव है अगले पांच चरणों में भी अब यही ट्रैंड देखने में आए ? मध्यप्रदेश  में भाजपा ने विधानसभा चुनाव में युद्ध स्तर पर मतदान केंद्रों तक मतदाता को पहुंचाने की जिम्मेबारी लेते हुए वोट-प्रतिशत  48.55 प्रतिशत  तक पहुंचा दिया था। इसी का नतीजा रहा कि 230 विधानसभा सीटों में से भाजपा ने 163 सीटों पर विजय प्राप्त कर ली थी। भाजपा के इस केंद्र प्रबंधन की तारीफ भाजपा के राश्ट्रीय अधिवेशन में भी हुई। अतएव इसी फार्मूले को लोकसभा चुनाव में भी अजमाने के प्रबंध किए गए। बड़ी संख्या में कार्यकर्ताओं को कार्यशालाएं लगाकर प्रशिक्षित भी किया गया। लेकिन मत-प्रतिशत  बढ़ने की बजाय घट गया। कार्यकर्ता और मतदाता के उदासीन होने के कारणों में विधानसभा चुनाव परिणाम में स्पष्ट  बहुमत के बावजूद मुख्यमंत्री के चयन में उम्मीद से ज्यादा देरी और फिर मंत्रीमंडल के गठन में भी इसी देरी को दोहराना प्रमुख कारण रहे हैं। इस उदासीनता के पीछे एक बड़ा कारण शिवराज सिंह चैहान को हाशिए पर डालना भी रहा है। जबकि विधानसभा चुनाव में जीत का प्रमुख आधार उनकी लाडली लक्ष्मियां और बहनें रही हैं। शिवराज की लोक-लुभावन भाषण कला भी इस बड़ी जीत का एक राज रही है। जबकि मोहन यादव के मुख्यमंत्री बनने के बाद से लेकर अब तक उनका करिष्माई नेतृत्व किसी भी क्षेत्र में देखने में नहीं आया है। हालांकि अब नरेंद्र मोदी ने कहा है कि शिवराज को केंद्र में ले जाएंगे।

                देश  और मध्यप्रदेश  में कम मतदान की झलक यह जता रही है कि फिलहाल कांग्रेस शून्य  नहीं हो रही है। सुविधा भोगी मतदाता ने कम मतदान किया है। ज्यादातर शहरी मतदाता इन दोनों चरणों में शुक्रवार को मतदान के चलते शनिवार और रविवार की छुट्टी होने के कारण सपरिवार पर्यटन पर निकल गया। नतीजतन ऐसे लोगों ने मतदान की जिम्मेदारी से पलड़ा झाड़ लिया। दूसरी तरफ दलों और कार्यकर्ताओं ने मतदाताओं को मतदान केंद्रों तक पहुंचाने से किनारा कर लिया। भाजपा कार्यकर्ताओं ने यह किनारा इसलिए किया, क्योंकि वे इस अतिविश्वास के शिकार हो गए हैं कि मोदी और राम में लहर बन जाने के कारण भाजपा 400 पार जा रही है। कांग्रेस और अन्य दलों के कार्यकर्ता इस गलतफहमी में हैं कि मोदी लहर के चलते उनके दल का पार पाना मुश्किल  है। इसलिए उसने मतदाता को मतदान केंद्र तक पहुंचाने से दूरी बनाए रखी। कांग्रेस के पास संसाधनों की कमी के चलते भी यह स्थिति देखने में आई है। विपक्षी दल मतदाता को मुद्दों के आधार पर लुभाने में भी सफल नहीं हुए। विपक्षी दलों के बिखराव ने भी मतदाता को उदासीन बनाने का काम किया है। मतदाता ने सोच बना लिया कि इंडिया गठबंधन बन जाने के बावजूद इसका कोई केंद्रीय नेतृत्वकर्ता सामने नहीं है। इसलिए मोदी पर भरोसा करना ही ठीक है। लेकिन यह उदासीनता देश हित में कतई उचित नहीं है।

प्रमोद भार्गव

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