कब थमेगा यह खूनी मंजर
हर आतंकवादी वारदात के बाद समय के साथ जख्म तो भर जाते हैं लेकिन इनका असर लम्बे समय तक बना रहता है। मानवता स्वयं को जख्मी महसूस करती है, घोर अंधेरा व्याप्त हो जाता है। यह जितना सघन होता है, आतंकियों का विजय घोष उतना ही मुखर होता है। आतंकवाद की सफलता इसी में आंकी जाती है कि जमीन पर जितने अधिक बेकसूर लोगों का खून बहता है, चीखें सुनाई देती है, डरावना मंजर पैदा होता है उतना ही आतंकवादियों का मनोबल दृढ़ होता है, हौसला बढ़ता है। इन घटनाओं के बाद उन मौत के शिकार हुए परिवारों के हिस्से समूची जिन्दगी का दर्द और अन्य लोगों के जीवन में इस तरह की घटनाओं का डर – ये घटनाएं और यह दर्द जितना ज्यादा होगा, आतंकवादियों को सुकून शायद उतना ही ज्यादा मिलेगा। इससे उपजती है अलगाव की आग, यह जितनी सुलगे कट्टरपंथियों की उतनी ही बड़ी कामयाबी।