साहित्य कहो कौन्तेय-६८ November 27, 2011 / November 27, 2011 by विपिन किशोर सिन्हा | Leave a Comment विपिन किशोर सिन्हा (अर्जुन द्वारा जयद्रथ-वध की प्रतिज्ञा) कर्ण और दुर्योधन ने उन्हें जी-भर प्रताड़ित किया। उनकी निष्ठा की खिल्लियां उड़ाईं। आचार्य का धैर्य टूट गया। उन्होंने वह कार्य किया जो एक गुरु से किसी भी परिस्थिति में अपेक्षित नहीं था। “पितामह भीष्म सच कहते थे – पुरुष अर्थ का दास है, अर्थ किसी का […] Read more » अर्जुन द्वारा जयद्रथ-वध की प्रतिज्ञा कहो कौन्तेय
साहित्य कहो कौन्तेय-६७ November 26, 2011 / November 27, 2011 by विपिन किशोर सिन्हा | Leave a Comment विपिन किशोर सिन्हा (महाभारत पर आधारित उपन्यास अंश) (अभिमन्यु का प्राणोत्सर्ग) युद्ध का तेरहवां दिन। आज नन्दिघोष पर बैठने के पूर्व ही न जाने क्यों मेरी बाईं आंख फड़क गई। सामने से एक शृगाल रोते हुए मार्ग काट गया। एक क्षण के लिए किसी अनिष्ट की आशंका प्रबल हुई। लेकिन मन ने मन को समझाया […] Read more » अभिमन्यु का प्राणोत्सर्ग कहो कौन्तेय
साहित्य कहो कौन्तेय-६६ November 25, 2011 / November 27, 2011 by विपिन किशोर सिन्हा | Leave a Comment विपिन किशोर सिन्हा (भीम और सात्यकि का पुरुषार्थ) ग्यारहवें दिन का सूर्य विहंसकर उदित हुआ। उस पर सूर्यवंशियों और चन्द्रवंशियों के विनाश का कोई प्रभाव नहीं था। आज पितामह के स्थान पर गुरु द्रोण व्यूह के मुहाने पर थे। कर्ण उनकी दाईं ओर था। हमेशा की तरह मैं और भीम अपनी व्यूह-रचना के अग्रिम स्थान […] Read more » कहो कौन्तेय भीम और सात्यकि का पुरुषार्थ
धर्म-अध्यात्म कहो कौन्तेय-६४ (महाभारत पर आधारित उपन्यास अंश) November 19, 2011 / December 3, 2011 by विपिन किशोर सिन्हा | Leave a Comment (भीष्म-वध के लिए भीष्म से मंत्रणा) विपिन किशोर सिन्हा सूर्यवंशी क्षत्रिय नित्य ही लक्ष-लक्ष की संख्या में विनाशकारी युद्ध की भेंट चढ़ रहे थे। लेकिन सूर्य को इससे क्या? वह चौथे दिन भी प्रखरता से निकला। कौरवों ने वृषभ व्यूह की रचना की, हमने गजराज। प्रतिदिन कम से कम एकबार मैं और पितामह आमने-सामने होते […] Read more » कहो कौन्तेय
साहित्य कहो कौन्तेय-६३ November 18, 2011 / December 3, 2011 by विपिन किशोर सिन्हा | Leave a Comment विपिन किशोर सिन्हा (महासमर का तीसरा दिन) महासमर के तीसरे दिन पितामह गरुड़ व्यूह की रचना के साथ और हम अर्द्धचन्द्राकार व्यूह के साथ कुरुक्षेत्र में थे। गत रात्रि युद्ध-बैठक में मुझपर पितामह और गुरु द्रोण के साथ मृदुयुद्ध करने का आरोप लगाया गया। आरोप लगाने वाले भ्राता भीम या अग्रज युधिष्ठिर नहीं थे। वे […] Read more » कहो कौन्तेय
साहित्य कहो कौन्तेय-६२ November 16, 2011 / November 28, 2011 by विपिन किशोर सिन्हा | Leave a Comment विपिन किशोर सिन्हा (महासमर का पहला और दूसरा दिन) महासमर के लिए श्रेष्ठ जनों की आज्ञा और उनका आशीर्वाद ले, हमलोग अपनी सेना के मध्य लौट आए। अब और कोई औपचारिकता शेष नहीं बची थी। दोनों पक्षों की ओर से आकाश का हृदय विदीर्ण करने वाले शंखनाद हुए, रणभेरियां बजीं। युद्ध का महायज्ञ प्रदीप्त हो […] Read more » Kaho Kauntey कहो कौन्तेय
साहित्य कहो कौन्तेय-६१ November 15, 2011 / December 3, 2011 by विपिन किशोर सिन्हा | 2 Comments on कहो कौन्तेय-६१ विपिन किशोर सिन्हा (श्रीकृष्ण का गीतोपदेश एवं अर्जुन का मोह-भंग) मैं पारिवारिक स्नेह के मिथ्या शोक से अभिभूत था। श्रीकृष्ण ने पल के शतांश में ही मेरा भाव ताड़ लिया। अब वे हंस रहे थे। अपने मधुर स्वरों पर स्नेह का अतिरिक्त लेप लगा बोलने लगे – “हे पार्थ! तुम पाण्डित्यपूर्ण वचन तो कह रहे […] Read more » Kaho Kauntey कहो कौन्तेय
साहित्य कहो कौन्तेय-६० November 15, 2011 / December 3, 2011 by विपिन किशोर सिन्हा | Leave a Comment विपिन किशोर सिन्हा (युद्ध के पूर्व अर्जुन का विषाद) पितामह के श्वेत दाढ़ी-मूंछों से मैं अक्सर खेला करता था। मुझे आभास भी नहीं होता था कि उन्हें खींचने से दादाजी को दर्द भी होता होगा। वे भी तो कभी बताते नहीं थे। उनका श्वेत उत्तरीय ले मैं भाग जाता और वे जानबूझकर मेरे पीछे-पीछे धीरे-धीरे […] Read more » Kaho Kauntey कहो कौन्तेय
साहित्य कहो कौन्तेय-५९ November 12, 2011 / December 3, 2011 by विपिन किशोर सिन्हा | 1 Comment on कहो कौन्तेय-५९ विपिन किशोर सिन्हा (महासमर की तैयारी) हमारे संधि-प्रस्ताव दुर्योधन के अहंकार और धृतराष्ट्र के अनिर्णय की भेंट चढ़ चुके थे। हृदय पर पत्थर रखकर हमने मात्र पांच ग्रामों के बदले हस्तिनापुर को शान्ति देने का प्रस्ताव रखा था। दुर्योधन ने वह भी ठुकरा दिया। धृतराष्ट्र असहाय थे, पितामह मौन। सत्य और न्याय के लिए हस्तिनापुर […] Read more » Kaho Kauntey कहो कौन्तेय
धर्म-अध्यात्म कहो कौन्तेय-५८ (महाभारत पर आधारित उपन्यास अंश) November 12, 2011 / December 3, 2011 by विपिन किशोर सिन्हा | Leave a Comment (श्रीकृष्ण का विराट रूप दर्शन और महासमर की घोषणा) विपिन किशोर सिन्हा दुर्योधन का क्रोध दावानल की भांति बढ़ता जा रहा था। सांप की तरह फुफकारते हुए अपने सैनिकों को आदेश दिया – “मथुरा के कारागार में जन्म लेनेवाले इस यादव को इसके मूल स्थान पर भेजना अत्यन्त आवश्यक है। बांध लो इस छलिया को […] Read more » Kaho Kauntey कहो कौन्तेय
धर्म-अध्यात्म कहो कौन्तेय-५५ November 6, 2011 / December 5, 2011 by विपिन किशोर सिन्हा | Leave a Comment (शान्ति-दूत के रूप में श्रीकृष्ण) विपिन किशोर सिन्हा शान्ति-स्थापना के अन्तिम प्रयास के रूप में श्रीकृष्ण को हस्तिनापुर भेजना निश्चित किया गया। जाने के पूर्व मैं, युधिष्ठिर, भीमसेन, नकुल. सहदेव और सात्यकि मंत्रणा के लिए श्रीकृष्ण के पास बैठे। महाराज युधिष्ठिर युद्ध के पक्ष में नहीं थे। शान्ति-स्थापना हेतु वे अपने आधे राज्य का त्याग […] Read more » Episodes of Mahabharata Kaho Kauntey कहो कौन्तेय
धर्म-अध्यात्म कहो कौन्तेय-५४ November 6, 2011 / December 5, 2011 by विपिन किशोर सिन्हा | Leave a Comment (संजय को श्रीकृष्ण और अर्जुन का उत्तर) विपिन किशोर सिन्हा श्रीकृष्ण हमारे लिए भगवान बन चुके थे। वे हमारे प्रत्येक कार्य के कारक और नियंत्रक की भूमिका में आ चुके थे। वे हम पांचो भ्राताओं और द्रौपदी के आत्मबल थे। संकट के समय लगता था, कृष्ण ही एकमात्र संबल हैं। संजय के कुटिल प्रस्ताव का […] Read more » episodes of mahabharta Kaho Kauntey कहो कौन्तेय