व्यंग्य मुखड़ा देख ले प्राणी जरा दर्पण में August 30, 2020 / August 30, 2020 by आत्माराम यादव पीव | Leave a Comment आत्माराम यादव पीवजगत को रचनेवाला विधाता बड़ा जादूगर है। जब विधाता ने रचने का वर्कशाप खोला तो पहले उसने जगत की रचना की। समुद्र से लेकर नदियों तक, टीले से लेकर पहाड़तक और घास से लेकर विशाल वृक्षों का पूरा जाल धरती पर बिछाया। फिर जीव-जन्तुओं की रचना की जिसमें पानी में रहने वाले, जमीन […] Read more » दर्पण
समाज साहित्य साहित्य समाज का दर्पण है April 9, 2018 by आर के रस्तोगी | 2 Comments on साहित्य समाज का दर्पण है आर के रस्तोगी “साहित्य समाज का दर्पण है” वो कैसे ?जिस तरह से आप दर्पण या शीशे (Miror) में अपने आप को देखते हो या निहारते हो तो आप उसी तरह से दिखाई देते हो जैसे आप हो| ठीक उसी तरह से साहित्य भी ऐसे देखने को मिलेगा जैसा समाज है क्योकि कोई लेखक या […] Read more » "कफ़न" "निर्मला" "मंगल सूत्र" Featured इतिहास गोदान दर्पण समाज साहित्य