साहित्य मार्कण्डेय : जीवन के बदलते यथार्थ के संवेगों का साधक July 10, 2010 / December 23, 2011 by अरुण माहेश्वरी | Leave a Comment -अरुण माहेश्वरी ‘निर्मल वर्मा की कहानियों में लेखकीय कथनों की एक कतार लगी हुई है। जहां जरा-सा गर्मी-सर्दी लगी कि कमजोर बच्चों को छींक आने लगती है। यदि और सफाई से कहें, तो जैसे रह-रह कर बैलगाड़ी के पहिये की हाल उतर जाती है, ठीक वैसे ही, पात्र जरा-सा संवेदनात्मक संकट पड़ते ही खिड़की के […] Read more » Markandeya मार्कण्डेय
साहित्य मार्कण्डेय : जिनके पास अंतर को पढ़ लेने की एक्सरे जैसी आंखें थी May 14, 2010 / December 23, 2011 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment -सरला माहेश्वरी पिछले वर्ष दो अक्तुबर को पिताजी हमें छोड़ कर चले गये। पिताजी की शब्दावली में, शहरीले जंगल में सांसों की हलचल अचानक थम सी गयी। कोलाहल के आंगन में जैसे सन्नाटा पसर गया। इस सन्नाटे को कोई कैसे स्वराए? किससे बात करे एकाकी मन ? सागर जैसा एकाकीपन, नीले जल सा खारा तन–मन, […] Read more » Markanday मार्कण्डेय
साहित्य जिंदादिल कथाकार मार्कण्डेय नहीं रहे March 19, 2010 / December 24, 2011 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | 1 Comment on जिंदादिल कथाकार मार्कण्डेय नहीं रहे आज सुबह मार्क्सवादी आलोचक अरुण माहेश्वरी का फोन आया और बताया कि भाई मार्कण्डेय नहीं रहे। सुनकर धक्का लगा और बेहद कष्ट हुआ, विश्वास नहीं हो रहा था भाई मार्कण्डेय का मौत हो गयी है। अभी कुछ दिन पहले ही अरुण-सरला माहेश्वरी उन्हें अस्पताल जाकर देखकर आए थे और दो -तीन दिन पहले मार्कण्डेयजी की […] Read more » Markandey मार्कण्डेय