व्यंग्य अभिव्यक्ति और प्रतिबन्ध [व्यंग्य] August 1, 2013 by राजीव रंजन प्रसाद | 1 Comment on अभिव्यक्ति और प्रतिबन्ध [व्यंग्य] राजीव रंजन प्रसाद “सर जी सहारा प्रणाम” “काहे का सहारा वो तो डूब गया भाई, और कौन सा प्रणाम? आज कल हम लाल सलाम करते हैं” “कल तक तो वहीं की गा रहे थे” “भाई वो खिला रहे थे, हम खा रहे थे” “कल यह लाल कहीं हरा, नीला या पीला हो गया तो?” “देख […] Read more » अरुंधती नक्सलवाद राजेंद्र यादव वामपंथ
साहित्य श्री राजेंद्र यादव के नाम एक खुला पत्र September 11, 2009 / September 2, 2012 by प्रेम जनमेजय | 38 Comments on श्री राजेंद्र यादव के नाम एक खुला पत्र आदरणीय श्री राजेंद्र यादव जी, परनाम साहित्य के इस तथाकथित असार संसार में ‘हंस’ को पढ़ने/देखने के, ‘जाकि रही भावना जैसी, प्रभु मूरति देखी तिन तैसी’ के अंदाज में अनेक अंदाज हैं। कोई साहित्यिक संत इसकी कहानियों के प्रति आकार्षित हो संत भाव से भर जाता है, कोई ‘हमारा छपयो है का’ के अंदाज में […] Read more » letter in the name of Rajenr राजेंद्र यादव