कविता कविता : मर्द और औरत – विजय कुमार January 18, 2012 / January 18, 2012 by विजय कुमार सप्पाती | 3 Comments on कविता : मर्द और औरत – विजय कुमार मर्द और औरत हमने कुछ बनी बनाई रस्मो को निभाया ; और सोच लिया कि अब तुम मेरी औरत हो और मैं तुम्हारा मर्द !! लेकिन बीतते हुए समय ने जिंदगी को ; सिर्फ टुकड़ा टुकड़ा किया . तुमने वक्त को ज़िन्दगी के रूप में देखना चाहा मैंने तेरी उम्र को एक […] Read more » Hindi Poem poems by Vijay kumar कविता विजय कुमार विजय कुमार की कवितायें हिन्दी कविता
कविता कविता : ‘तू’ और ‘प्यार’ – विजय कुमार January 16, 2012 / January 18, 2012 by विजय कुमार सप्पाती | Leave a Comment तू मेरी दुनिया में जब मैं खामोश रहती हूँ , तो , मैं अक्सर सोचती हूँ, कि खुदा ने मेरे ख्वाबों को छोटा क्यों बनाया …… एक ख्वाब की करवट बदलती हूँ तो; तेरी मुस्कारती हुई आँखे नज़र आती है, तेरी होठों की शरारत याद आती है, तेरे बाजुओ की पनाह पुकारती है, […] Read more » Hindi Poem poems by Vijay kumar कविता विजय कुमार विजय कुमार की कवितायें हिन्दी कविता
कविता कविता : सलीब – विजय कुमार January 16, 2012 / January 17, 2012 by विजय कुमार सप्पाती | Leave a Comment सलीब कंधो से अब खून बहना बंद हो गया है … आँखों से अब सूखे आंसू गिर रहे है.. मुंह से अब आहे – कराहे नही निकलती है..! बहुत सी सलीबें लटका रखी है मैंने यारों ; इस दुनिया में जीना आसान नही है ..!!! हँसता हूँ मैं , कि.. […] Read more » Hindi Poem poems by Vijay kumar कविता विजय कुमार विजय कुमार की कवितायें हिन्दी कविता
कविता कविता : परायों के घर – विजय कुमार January 16, 2012 / January 17, 2012 by विजय कुमार सप्पाती | 2 Comments on कविता : परायों के घर – विजय कुमार परायों के घर कल रात दिल के दरवाजे पर दस्तक हुई; सपनो की आंखो से देखा तो, तुम थी …..!!! मुझसे मेरी नज्में मांग रही थी, उन नज्मों को, जिन्हें संभाल रखा था, मैंने तुम्हारे लिये ; एक उम्र भर के लिये …! आज कही खो गई थी, वक्त के धूल भरे […] Read more » Hindi Poem poems by Vijay kumar कविता विजय कुमार विजय कुमार की कवितायें हिन्दी कविता
कविता कविता : जानवर – विजय कुमार January 16, 2012 / January 17, 2012 by विजय कुमार सप्पाती | Leave a Comment जानवर अक्सर शहर के जंगलों में ; मुझे जानवर नज़र आतें है ! इंसान की शक्ल में , घूमते हुए ; शिकार को ढूंढते हुए ; और झपटते हुए.. फिर नोचते हुए.. और खाते हुए ! और फिर एक और शिकार के तलाश में , भटकते हुए..! और क्या कहूँ […] Read more » Hindi Poem poems by Vijay kumar कविता विजय कुमार विजय कुमार की कवितायें हिन्दी कविता