लेख साहित्य गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-70 March 16, 2018 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment राकेश कुमार आर्य    गीता का तेरहवां अध्याय और विश्व समाज श्री अरविन्द का कहना है कि कर्म को और ज्ञान को हम अपनी इच्छा से चलायें या इन्हें भगवान की इच्छा में लीन कर दें? -गीता ने इस प्रश्न को उठाकर इसका उत्तर दिया है। हमारा कर्म, हमारा ज्ञान कितना संकुचित है, […] Read more »  गीता का कर्मयोग आज का विश्व  गीता का तेरहवां अध्याय Featured आज का विश्व कर्मयोग गीता गीता का कर्मयोग गीता का बारहवां अध्याय विश्व विश्व समाज
लेख साहित्य गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-69 March 16, 2018 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment राकेश कुमार आर्य   गीता का बारहवां अध्याय और विश्व समाज यहां पर गीता के 12वें अध्याय के जिस श्लोक का अर्थ हमने ऊपर दिया है-उसमें ‘सर्वारम्भ परित्यागी’ शब्द आया है। इसके विषय में सत्यव्रत सिद्घान्तालंकार जी बड़ी तार्किक बात कहते हैं :-”सर्वारम्भ त्यागी का अर्थ कुछ लोग यह करते हैं कि जो किसी […] Read more »  गीता का बारहवां अध्याय Featured आज का विश्व कर्मयोग गीता गीता का कर्मयोग विश्व विश्व समाज
लेख साहित्य गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-25 December 28, 2017 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment राकेश कुमार आर्य   गीता का चौथा अध्याय और विश्व समाज गीता के इन श्लोकों में यह तथ्य स्पष्ट किया गया है कि संसार में जब अनिष्टकारी शक्तियों का प्राबल्य होता है तो उस अनिष्ट से लडऩे वाली शक्तियों का भी तभी प्राकट्य भी होता है। जब बढ़ता संसार में घोर पाप अनाचार। तभी […] Read more » Featured आज का विश्व कर्मयोग गीता गीता का कर्मयोग विश्व
लेख साहित्य गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-17 December 10, 2017 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment राकेश कुमार आर्य गीता के दूसरे अध्याय का सार और संसार योगेश्वर कृष्ण जी का कहना है कि हमें अपना मन ‘परब्रह्म’ से युक्त कर देना चाहिए, उसके साथ उसका योग स्थापित कर देना चाहिए। उससे मन का ऐसा तारतम्य स्थापित कर देना चाहिए कि उसे ब्रह्म से अलग करना ही कठिन हो जाए। भाव […] Read more » Featured गीता गीता का कर्मयोग विश्व
लेख गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-16 December 9, 2017 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment राकेश कुमार आर्य गीता के दूसरे अध्याय का सार और संसार गीता यह भी स्पष्ट करती है कि ”हे कौन्तेय! पुरूष चाहे कितना ही यत्न करे, कितना ही विवेकशील हो-ये मथ डालने वाली इन्द्रियां बल पूर्वक मन को विषयों की ओर खींच लेती हैं। मन विषयों के पीछे भागता है और इस प्रकार भागता हुआ […] Read more » Featured आज का विश्व कर्मयोग गीता गीता का कर्मयोग विश्व
लेख साहित्य गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-12 December 2, 2017 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment राकेश कुमार आर्य   गीता के दूसरे अध्याय का सार और संसार गीता और शहादत अपनी मजहबी मान्यताओं को संसार पर बलात् थोपने वाले जिहादियों को लालच दिया गया है कि यदि ऐसा करते-करते तुम मृत्यु को प्राप्त हो जाते हो तो तुम शहीद कहे जाओगे। जबकि श्रीकृष्ण जी अर्जुन से इसके ठीक विपरीत […] Read more » Featured गीता गीता का कर्मयोग विश्व
लेख साहित्य गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-11 December 2, 2017 / December 2, 2017 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment राकेश कुमार आर्य  गीता के दूसरे अध्याय का सार और संसार आजकल पैसा कैसे कमाया जाए और कैसे बचाया जाए?-सारा ध्यान इसी पर केन्द्रित है। आय के सारे साधन चोरी के बना लिये गये हैं, जिससे व्यक्ति उन्हें किसी को बता नहीं सकता, इसलिए उनकी मार को चुप-चुप झेलता रहता है। जितना दिल साफ […] Read more » Featured geeta karmayoga of geeta गीता गीता का कर्मयोग गीता के दूसरे अध्याय का सार विश्व
लेख साहित्य गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-10 November 27, 2017 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment गीता के दूसरे अध्याय का सार और संसार हमारे देश में लोगों की मान्यता रही है कि शत्रु वह है जो समाज की और राष्ट्र की व्यवस्था को बाधित करता है। ऐसा व्यक्ति ही अधर्मी माना गया है। धर्म विरूद्घ आचरण करने वाला व्यक्ति समाज, राष्ट्र और जन-जन का शत्रु होता है। ऐसे व्यक्ति का […] Read more » Featured geeta karmayoga of geeta Shri Krishna गीता गीता का कर्मयोग विश्व
लेख साहित्य गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-9 November 27, 2017 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment राकेश कुमार आर्य   गीता के दूसरे अध्याय का सार और संसार अर्जुन समझता था कि दुर्योधन और उसके भाई, उसका मित्र कर्ण और उसका मामा शकुनि युद्घ क्षेत्र में उसके हाथों मारे जा सकते हैं, इसके लिए तो वह मानसिक रूप से पहले से ही तैयार था। वह यह भी जानता था कि […] Read more » Featured geeta karmayoga of geeta Shri Krishna गीता गीता का कर्मयोग विश्व
लेख साहित्य गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-8 November 25, 2017 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment गीता का पहला अध्याय और विश्व समाज गीता के विषय के संक्षिप्त या विस्तृत होने की सभी शंका आशंकाओं, सम्भावना और असम्भावना के रहते भी गीता का पहला अध्याय गीताकार के उच्च बौद्घिक चिन्तन और विश्व समाज के प्रति भारत की जिम्मेदारियों को स्पष्ट करता है। गीताकार ने जो कुछ भी व्यवस्था पहले अध्याय में […] Read more » Featured geeta karmayoga of geeta गीता गीता का कर्मयोग विश्व
लेख साहित्य गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-6 November 21, 2017 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment वैदिक गीता-सार सत्य गीता ज्ञान व्यक्ति को भी परिमार्जित करता है और समाज को भी परिमार्जित करता है। उसका परिमार्जनवाद उसे हर व्यक्ति के लिए उपयोगी और संग्रहणीय बनाता है। अपने इस प्रकार के गुणों के कारण ही गीता सम्पूर्ण संसार का मार्गदर्शन हजारों वर्षों से करती आ रही है। विश्व के अन्य ग्रन्थों में […] Read more » Featured गीता गीता का कर्मयोग विश्व
लेख साहित्य गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-5 November 21, 2017 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment वैदिक गीता-सार सत्य हम अपनों को अपना मानकर उधर से किसी हमला की या विश्वासघात की अपेक्षा नहीं करते। अपनों की ओर से हम पीठ फेरकर खड़े हो जाते हैं। यह मानकर कि इधर से तो मैं पूर्णत: सुरक्षित हूं। कुछ समय बाद पता चलता है कि हमारी पीठ पर तीर आकर लगता है और […] Read more » Featured geeta गीता गीता का कर्मयोग विश्व