व्यंग्य इक्कीसवीं सदी के लेटेस्ट प्रेम : व्यंग्य – अशोक गौतम October 22, 2009 / December 26, 2011 by अशोक गौतम | 1 Comment on इक्कीसवीं सदी के लेटेस्ट प्रेम : व्यंग्य – अशोक गौतम वे सज धज कर यों निकले थे कि मानो किसी फैशन शो में भाग लेने जा रहे हों या फिर ससुराल। बूढ़े घोड़े को यों सजे धजे देखा तो कलेजा मुंह को आ गया। बेचारों के कंधे कोट का भार उठाने में पूरी तरह असफल थे इसीलिए वे खुद को ही कोट पर लटकाए चले […] Read more » 21st Century Ashok Gautam Latest Love अशोक गौतम इक्कीसवीं सदी लेटेस्ट प्रेम व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य: अवतारी अब बाजारन के – अशोक गौतम October 18, 2009 / December 26, 2011 by अशोक गौतम | Leave a Comment हे मेरे देश के दीवाली के दिन राम के चौदह बरस का बनवास काट कर आने की खुशी में रात भर जुआ खेलने वाले जुआरियो! हे मेरे देश के दीवाली के नाम पर मातहतों का गला काट कर गिफ्टों के नाम पर शूगर के पेशेंट होने के बाद भी अपना घर मिठाइयों से भरने के […] Read more » vyangya व्यंग्य
समाज व्यंग्य…..राष्ट्रगान का रिहर्सल? वाह, क्या आईडिया है…. October 9, 2009 / December 26, 2011 by गिरीश पंकज | 1 Comment on व्यंग्य…..राष्ट्रगान का रिहर्सल? वाह, क्या आईडिया है…. छत्तीसगढ़ की एक सच्ची मगर शर्मनाक घटना पर आधारित व्यंग्य. बड़े देशभक्त है ये लोग। इन्हे प्रणाम करना चाहिए। चलिए, पहले प्रणाम कर ही ले। प्रणाम…… प्रणाम…… प्रणाम…… ऐसे ही खाली-पीली किसी को प्रणाम नहीं किया जाता लेकिन मै जिन महान आत्माओं को प्रणाम कर रहा हूँ, दरअसल वे देशभक्त आत्माएं है। अब वैसे भी […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य साहित्य व्यंग्य/ चलो हरामपना करें !! October 7, 2009 / December 26, 2011 by अशोक गौतम | 1 Comment on व्यंग्य/ चलो हरामपना करें !! सरकारी नौकरी लगते ही नालायक से नालायक बंदे की दिली इच्छा होती है कि वह महीना भर घर में, दफ्तर में कुर्सी पर सर्दियों में हीटर के आगे टांगें पसार कर, गर्मियों में पंखे के नीचे उंघियाता रहे और हर पहली को पेन भी औरों का ले सेलरी के कालम में घुग्गी मार जेब पर […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य साहित्य व्यंग्य/दाम बनाए काम October 5, 2009 / December 26, 2011 by अशोक गौतम | Leave a Comment धुन के पक्के विक्रमार्क ने पुन: मैली कुचैली बिजलीविहीन संपूर्ण सफाई अभियान में पुरस्कृत हुई माडल गली से भूख भय, भ्रष्टाचार के मारे बीमार वोटर के शव को उठाया और उसे कंधे पर डाल कर राज्य सभा की ओर बढ़ने लगा। तब शव के अंदर के वोटर ने अपना गला साफ करते हुए कहा, ‘हे […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य साहित्य व्यंग्य/कहो कैसी रही कबीर? October 4, 2009 / December 26, 2011 by अशोक गौतम | Leave a Comment भाई साहब! अब आप से छुपाना क्या! मंदी के इस दौर में भी हफ्ते में एक दिन जैसे तैसे उपवास रख ही लेते हैं। इसलिए नहीं कि भगवान से अपना कोई नाता है। इसलिए भी नहीं कि हम परलोक सुधारने के चक्कर में हैं। ये लोक तो चमची मार कर मजे से कट गया। अगले […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य साहित्य व्यंग्य/ जनहित में जारी October 1, 2009 / December 26, 2011 by अशोक गौतम | 4 Comments on व्यंग्य/ जनहित में जारी कल रात मेरा शानदार जानदार साठवां जन्म दिन था। मैंने यह श्रीमती के आदेश पर सोलहवें जन्म दिन की तरह धूमधाम से मनाया। क्या है न कि वह नहीं चाहती कि मैं बूढ़ा होने पर भी बूढ़ा हो जाऊं। कौन मालिक चाहेगा कि उसका गधा बूढ़ा हो? जग बूढ़ा हो रहा हो तो होता रहे। […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य साहित्य व्यंग्य/ अब मजे में हूं September 28, 2009 / December 26, 2011 by अशोक गौतम | 2 Comments on व्यंग्य/ अब मजे में हूं तब मैं दफ्तर से कइयों की जेब काट कर शान से सीना चौड़ा किए घर आ रहा था कि रास्ते में मुहल्ले का वफादार कुत्ता मिल गया। कुत्ता वैसे ही उदास था जैसे अकसर आजकल समाज में वफादार लोग चल रहे हैं। ‘और कुत्ते क्या हाल हैं? रोटी राटी मिली आज कि…..’ ‘साहब ! रोटी […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/तथास्तु!! September 20, 2009 / December 26, 2011 by अशोक गौतम | Leave a Comment आप हों या न हों, होने के बाद भी खुल कर कह सकते हों या न, पर मैं सरेआम कहता हूं कि मैं साहब भक्त हूं। इस लोक में तो इस लोक में, तीनों लोकों में कोई एक भी ऐसे बंदे का नाम बता दें जो आज तक साहब भक्ति के बिना भव सागर तो […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/हिंदी के श्रद्धेय पंडे September 15, 2009 / December 26, 2011 by अशोक गौतम | 2 Comments on व्यंग्य/हिंदी के श्रद्धेय पंडे इधर पितृ श्राद्धों का पखवाड़ा खत्म भी नहीं हुआ कि हिंदी श्राद्ध का पखवाड़ा षुरू हो गया। पंडों का फिर अभाव। श्राद्ध पितरों का हो या हिंदी का। भर पखवाड़ा श्रद्धालु पितरों और हिंदी की आवभगत पूरे तन से करते हैं। जिस तरह से पितृ श्राद्धों में कौवे खा खा कर तंग आ जाते हैं […] Read more » vyangya व्यंग्य
आर्थिकी व्यंग्य: गरीब और गांव का बजट September 12, 2009 / December 26, 2011 by रामस्वरूप रावतसरे | Leave a Comment प्रणव दा ने देश का बजट पेश किया तो लगा कि इस बार हमारी सारी समस्याओं का निदान अपने आप ही हो जावेगा क्योंकि पहली बार बजट गांव व गरीब के लिये पेश किया गया है। हम बजट को ध्यान में रख कर यह विचार कर रहे थे बजट के गांव में आ जाने से […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/ बस यार बस!! September 4, 2009 / December 26, 2011 by अशोक गौतम | 2 Comments on व्यंग्य/ बस यार बस!! सुबह के साढ़े की दस बजे का टाइम हुआ होगा। मिसेज को दफ्तर रवाना करने के बाद लगे हाथ बरतन धो जरा धूप देखने के लिए दरवाजा खोल सीढ़ियों पर आराम फरमाने निकलने की सोच ही रहा था कि दरवाजे पर बेल हुई। कहीं श्रीमती दफ्तर से लौट तो नहीं आई! अरे अभी तो झाड़ू […] Read more » vyangya व्यंग्य