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आगरा की वेदना

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कल कल करने वाली यमुना के तट पर होते हुए मैं प्यासा हूं। कारण यह है कि यमुना नें प्यास मिटाने की क्षमता खो दी है। पहले मेरी प्यास बुझाने के लिए यमुना काफी थी, लेकिन सरकारी नीतियों ने हत्या कर दी है। मेरी यमुना में पानी के नाम पर मलमूत्र और फैक्ट्रियों के कचरे मात्र है। दिल्ली, हरियाणा से ही मलमूत्र आ रहा है। मेरी यमुना को शुद्ध करने के लिए हजारों करोड़ रुपये जल निगम वाले डकार चुके हैं। सिर्फ बारिश में यमुना कुछ समय के लिए भरी हुई दिखती है। इसके बाद तो सिर्फ नाला ही नजर आती है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी यमुना में गंदगी डाली जा रही है।

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