साहित्य श्रीमद्भगवद्गीता और छद्म धर्मनिरपेक्षवादी – चर्चा-७ August 11, 2011 / December 7, 2011 by विपिन किशोर सिन्हा | 1 Comment on श्रीमद्भगवद्गीता और छद्म धर्मनिरपेक्षवादी – चर्चा-७ विपिन किशोर सिन्हा प्रत्येक मनुष्य, मनुष्य ही नहीं प्रत्येक जीवात्मा में ईश्वर का अंश है। प्रकृति की प्रत्येक कृति ईश्वर की उपस्थिति की अनुभूति कराती है। प्रत्येक मनुष्य ईश्वर का ही अवतार या रूप है, समस्या सिर्फ स्वयं को पहचानने की है। प्रत्येक मनुष्य में ईश्वरत्व प्राप्त करने की क्षमता होती है। गीता के माध्यम […] Read more » Srimadbhagwat Gita छद्म धर्मनिरपेक्षवादी श्रीमद्भगवद्गीता
साहित्य श्रीमद्भगवद्गीता और छद्म धर्मनिरपेक्षवादी – चर्चा-६ August 10, 2011 / December 7, 2011 by विपिन किशोर सिन्हा | 4 Comments on श्रीमद्भगवद्गीता और छद्म धर्मनिरपेक्षवादी – चर्चा-६ विपिन किशोर सिन्हा छद्म धर्मनिरपेक्षवादियों का श्रीमद्भगवद्गीता पर एक आरोप यह भी है कि गीता जाति-व्यवस्था को न सिर्फ स्वीकृति देती है, वरन् इसे ईश्वरीय भी मानती है। अपने समर्थन में वे गीता के अध्याय चार के निम्न श्लोक का उद्धरण देते हैं – चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः। तस्य कर्तारमपि मां विद्ध्यकर्तारमव्ययम्॥ “चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं” […] Read more » Srimadbhagwat Gita छद्म धर्मनिरपेक्षवादी श्रीमद्भगवद्गीता श्रीमद्भगवद्गीता और छद्म धर्मनिरपेक्षवादी
साहित्य श्रीमद्भगवद्गीता और छद्म धर्मनिरपेक्षवादी – चर्चा-२ August 6, 2011 / December 7, 2011 by विपिन किशोर सिन्हा | 5 Comments on श्रीमद्भगवद्गीता और छद्म धर्मनिरपेक्षवादी – चर्चा-२ विपिन किशोर सिन्हा श्रीकृष्ण को अच्छी तरह समझे बिना गीता तक नहीं पहुंचा जा सकता। शरीर और आत्मा जैसी दो चीजें नहीं हैं। आत्मा का जो छोर दिखाई देता है, वह शरीर है और शरीर का जो छोर दिखाई नहीं पड़ता, वह आत्मा है। परमात्मा और संसार जैसी दो चीजें नहीं हैं। परमात्मा और प्रकृति […] Read more » Srimadbhagwat Gita कृष्ण छद्म धर्मनिरपेक्षवादी श्रीमद्भगवद्गीता