कविता जादूगरी जो जानते June 2, 2015 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment -गोपाल बघेल ‘मधु’- (मधुगीति १५०५२६-५) जादूगरी जो जानते, स्मित नयन बस ताकते; जग की हक़ीक़त जानते, बिन बोलते से डोलते। सब कर्म अपने कर रहे, जादू किए जैसे रहे; अज्ञान में जो फिर रहे, उनको अनौखे लग रहे । हैं नित्य प्रति आते यहाँ, वे जानते क्या है कहाँ; बतला रहे बस वही तो, आते […] Read more » Featured कविता जादूगरी जो जानते