दोहे देह कितनी लिये विचर चहता ! December 1, 2019 / December 1, 2019 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment देह कितनी लिये विचर चहता, कितने आयाम देखना चहता; आवरण कितने घुसे लख चहता, वरण कितने ही पात्र कर चहता ! कला कितनी में पैठना चहता, ज्ञान विज्ञान की धुरी तकता; राज कितने प्रदेश कर चहता, ताज कितने पहन सतत चहता ! मुक्त पर जब तलक न मन होता, व्यस्त स्तर हरेक रह जाता; त्रस्त […] Read more » देह कितनी लिये विचर चहता !