व्यंग्य साहित्य पधारो म्हारे देस जी… October 27, 2017 by विजय कुमार | Leave a Comment पिछले हफ्ते मैं शर्मा जी के घर गया, तो वे दोनों आंखें बंद किये, एक हाथ कान पर रखे और दूसरा ऊपर वाले की तरफ उठाये गा रहे थे, ‘‘पधारो म्हारे देस जी…।’’ कभी वे दाहिना हाथ कान पर रखते तो कभी बायां। कभी स्वर ऊंचा हो जाता, तो कभी अचानक नीचा। मेरी गाने-बजाने से […] Read more » Featured पधारो म्हारे देस जी