लेख साहित्य गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-27 December 30, 2017 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment राकेश कुमार आर्य गीता का चौथा अध्याय और विश्व समाज इसी आनन्दमयी सांसारिक परिवेश को ‘विश्वशान्ति’ कहा जाता है। जिनका चित्त मैला कुचैला है, हिंसक है, दूसरों पर अत्याचार करने वाला है-उनका भीतरी जगत उपद्रवी और उग्रवादी होने से हिंसक हो जाता है, जिसमें शुद्घता नाम मात्र को भी नहीं होती। फलस्वरूप उनका बाहरी जगत […] Read more » Featured geeta karmayoga of geeta आज का विश्व गीता गीता का कर्मयोग
लेख साहित्य गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-19 December 17, 2017 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment राकेश कुमार आर्य गीता का तीसरा अध्याय और विश्व समाज सन्त का यह कार्य आपको शिक्षा दे रहा है कि यज्ञीय बन जाओ, जो भी कुछ मिलता है-उसे बांट दो। ज्ञान को भी बांट दो और मिले हुए दान को भी बांट दो। चोर, डकैती या लुटेरा व्यक्ति ऐसा क्यों नहीं कर पाता? इसका कारण […] Read more » Featured geeta karmayoga of geeta आज का विश्व कर्मयोग गीता गीता का कर्मयोग गीता का तीसरा अध्याय विश्व समाज
लेख साहित्य गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-14 December 6, 2017 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment राकेश कुमार आर् गीता के दूसरे अध्याय का सार और संसार ‘गीता’ कहती है कि इस आत्मा को संसार का कोई शस्त्र छेद नहीं सकता। न इसको अग्नि जला सकती है, और न इसे पानी गला सकता है, इसे वायु सुखा नहीं सकती। अग्नि जला न पाएगा, शस्त्र करे नहीं छेद। पानी गला न पाएगा, […] Read more » Featured geeta karmayoga of geeta आज का विश्व गीता गीता का कर्मयोग
लेख साहित्य गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-13 December 6, 2017 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment राकेश कुमार आर्य गीता के दूसरे अध्याय का सार आत्मा को नहीं होत है, सुख, दु:ख का कभी भान। द्वन्द्व सताते देह को बात वेद की जान।। हमारे देश के भी बड़े-बड़े विद्वानों तक को ऐसी भ्रांति रही है। आज के संसार के लोगों की तो यह प्रमुख समस्या है कि वे आत्मा और शरीर […] Read more » Featured geeta karmayoga of geeta आज का विश्व गीता का कर्मयोग
लेख साहित्य गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-11 December 2, 2017 / December 2, 2017 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment राकेश कुमार आर्य  गीता के दूसरे अध्याय का सार और संसार आजकल पैसा कैसे कमाया जाए और कैसे बचाया जाए?-सारा ध्यान इसी पर केन्द्रित है। आय के सारे साधन चोरी के बना लिये गये हैं, जिससे व्यक्ति उन्हें किसी को बता नहीं सकता, इसलिए उनकी मार को चुप-चुप झेलता रहता है। जितना दिल साफ […] Read more » Featured geeta karmayoga of geeta गीता गीता का कर्मयोग गीता के दूसरे अध्याय का सार विश्व
विविधा लोककल्याण का मार्ग है गीता December 2, 2017 / December 2, 2017 by अरविंद जयतिलक | Leave a Comment अरविंद जयतिलक पाश्चात्य जगत में विश्व साहित्य का कोई भी ग्रंथ इतना अधिक उद्धरित नहीं हुआ है जितना भगवद्गीता। भगवद्गीता ज्ञान का अथाह सागर है। जीवन का प्रकाशपूंज व दर्शन है। शोक और करुणा से निवृत होने का सम्यक मार्ग है। भारत की महान धार्मिक संस्कृति और उसके मूल्यों को समझने का ऐतिहासिक-साहित्यिक साक्ष्य है। […] Read more » Featured geeta Geeta Jayanti गीता
लेख साहित्य गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-10 November 27, 2017 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment गीता के दूसरे अध्याय का सार और संसार हमारे देश में लोगों की मान्यता रही है कि शत्रु वह है जो समाज की और राष्ट्र की व्यवस्था को बाधित करता है। ऐसा व्यक्ति ही अधर्मी माना गया है। धर्म विरूद्घ आचरण करने वाला व्यक्ति समाज, राष्ट्र और जन-जन का शत्रु होता है। ऐसे व्यक्ति का […] Read more » Featured geeta karmayoga of geeta Shri Krishna गीता गीता का कर्मयोग विश्व
लेख साहित्य गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-9 November 27, 2017 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment राकेश कुमार आर्य   गीता के दूसरे अध्याय का सार और संसार अर्जुन समझता था कि दुर्योधन और उसके भाई, उसका मित्र कर्ण और उसका मामा शकुनि युद्घ क्षेत्र में उसके हाथों मारे जा सकते हैं, इसके लिए तो वह मानसिक रूप से पहले से ही तैयार था। वह यह भी जानता था कि […] Read more » Featured geeta karmayoga of geeta Shri Krishna गीता गीता का कर्मयोग विश्व
लेख साहित्य गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-8 November 25, 2017 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment गीता का पहला अध्याय और विश्व समाज गीता के विषय के संक्षिप्त या विस्तृत होने की सभी शंका आशंकाओं, सम्भावना और असम्भावना के रहते भी गीता का पहला अध्याय गीताकार के उच्च बौद्घिक चिन्तन और विश्व समाज के प्रति भारत की जिम्मेदारियों को स्पष्ट करता है। गीताकार ने जो कुछ भी व्यवस्था पहले अध्याय में […] Read more » Featured geeta karmayoga of geeta गीता गीता का कर्मयोग विश्व
लेख साहित्य गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-5 November 21, 2017 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment वैदिक गीता-सार सत्य हम अपनों को अपना मानकर उधर से किसी हमला की या विश्वासघात की अपेक्षा नहीं करते। अपनों की ओर से हम पीठ फेरकर खड़े हो जाते हैं। यह मानकर कि इधर से तो मैं पूर्णत: सुरक्षित हूं। कुछ समय बाद पता चलता है कि हमारी पीठ पर तीर आकर लगता है और […] Read more » Featured geeta गीता गीता का कर्मयोग विश्व
लेख गीता का कर्मयोग और आज का विश्व भाग-2 November 16, 2017 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment वैदिक गीता-सार सत्य गीता की उपयोगिता इसलिए भी है कि यह ग्रन्थ हमें अपना कार्य कत्र्तव्य भाव से प्रेरित होकर करते जाने की शिक्षा देती है। गीता का निष्काम-भाव सम्पूर्ण संसार को आज भी दु:खों से मुक्ति दिला सकता है। परन्तु जिन लोगों ने गीता ज्ञान को साम्प्रदायिकता का प्रतीक मान लिया, उनके स्वयं के […] Read more » Featured geeta karmayoga गीता गीता का कर्मयोग विश्व
धर्म-अध्यात्म ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते मां फलेषु कदाचन’ अर्थात कर्म योग February 17, 2014 by बी एन गोयल | 9 Comments on ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते मां फलेषु कदाचन’ अर्थात कर्म योग -बी एन गोयल- श्रीमद्भगवद्गीता में योग शब्द का प्रयोग व्यापक रूप में हुआ है | गीता के प्रत्येक अध्याय के नाम के साथ योग शब्द लगाया गया है जैसे ‘अर्जुन विषाद योग, सांख्य योग, कर्म योग, ज्ञान कर्म सन्यास योग आदि। एक विद्वान् के अनुसार गीता में इस शब्द उपयोग एक उद्देश्य़ से किया गया है। उन का […] Read more » 'कर्मण्येवाधिकारस्ते मां फलेषु कदाचन' अर्थात कर्म योग geeta