कविता
बसे अंनूठी मॉ
 
 /  by आत्माराम यादव पीव    
दुख आया तो दवा नहीं ली हारी नहीं, तू खुद से लडी थी। पिताजी देखे, सख्त बहुत थे तनखा लाकर, वे दादी को देते ॥ पाई पाई को, तू तरसा करती मजबूरी थी, तू मजदूरी करती। बेकार हुये, जब कपड़े पिता के झट सिलवाती, रहे न हम उघडे॥ वे भी क्या दिन, अपने थे मॉ […] 
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