कविता साहित्य
बैल की आत्म व्यथा
 
 /  by डॉ. मधुसूदन    
डॉ. मधुसूदन बैल बूढा हो गया जी, अब, बैल बूढा हो गया॥ (१) रात दिन था जूझता, बोझ भारी  खींचता। सींचता  संस्कार अनथक- कृति से, ना बोलता. (२) छाँव धरता, धूप सहकर, वज्र बन, रक्षा करता. संकटों से लेता  लोहा; हार कभी ना, मानता. (३) *बुढ्ढे-बुढ्ढे* सुन सुन; सहे, अपशब्द दुनिया दारी के. अपनों से […] 
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