डॉ. मधुसूदन
बैल बूढा हो गया जी,
अब, बैल बूढा हो गया॥
(१)
रात दिन था जूझता,
बोझ भारी खींचता।
सींचता संस्कार अनथक-
कृति से, ना बोलता.
(२)
छाँव धरता, धूप सहकर,
वज्र बन, रक्षा करता.
संकटों से लेता लोहा;
हार कभी ना, मानता.
(३)
*बुढ्ढे-बुढ्ढे* सुन सुन; सहे,
अपशब्द दुनिया दारी के.
अपनों से अपमान सुन,
सुन्न होकर सो गया।
(४)
जो हारा न था संसार से,
लाडलों से हार गया ।
श्वेत कपडा ओढकर
शान्त हो कर सो गया
(५)
कोलाहल न करो, वत्स,
अब किनारा आ गया.
अब शब्द-ओझल हो गया,
और बैल बुढा सो गया ।
(६)
तुम न समझोंगे हिन्दी!
बोल न पाऊं, अंग्रेज़ी !
भाव अव्यक्त रह जाएगा.
काम न आएगी,*बैसाखी!*
(बैसाखी=अंग्रेज़ी)
(७)
रात दिन था जुता हुआ
वज्र सा,पापा तुम्हारा
आज बुलावा आ गया;
तो, शान्त हो कर सो गया.
(८)
त्र्यम्बकं यजामहे।
सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्॥
उर्वारुकम् इव बन्धनात्।
मृत्योर् मुक्षीय मामृतात् ॥
ॠ. ७।२९।१२,
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परिशिष्ट:
त्र्यम्बकं= त्रि+अम्बकं= तीन आँखों वाले (शिव जी)
यजामहे= पूजा करते हैं
पुष्टिवर्धनम्= पुष्ट कर बढानेवाले
उर्वारुकम् = ककडी
इव= की तरह
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ॠचा का अर्थ:
तीन आँखोंवाले शिव जी हम भजते हैं.
जो चारों ओर सुगंध फैलाकर सभी को पुष्ट करते हैं.
वें मुझे बेला से जैसे ककडी (सहज, बिना कष्ट)अलग होती है, वैसे (अलग करें);
और इस मृत्यु लोक से परे, अमर लोक ले चलें.
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आदरणीय़ मित्रों ने कविता पर अपनी प्रतिक्रियाएँ देकर ; उसका उचित अर्थकरण किया. किसी भी कविता के अर्थ के अनेक पहलु होते हैं. कविता कवि से भी अधिक पाठक की होती है. अर्थ की ऐसी परतें कविता को अर्थ प्रदान कर समृद्ध करती है.
मैं वैसे पूर्व पीढी की अवस्था पर प्रकाश डालना चाहता था. उस पर अलग आलेख ही बनाउंगा. युवा पीढी में हिन्दी का प्रचलन घट रहा है; उनसे अंग्रेज़ी में इस कविता के भाव का प्रदर्शन जिसने ३+ दशकों तक अंग्रेज़ी माध्यम में पढाया है, उसे(मुझे) भी असंभव लगता है. इसी भाव को मैं –>
“तुम न समझोगे हिंदी!
बोल न पाऊं, अंग्रेजी!
भाव अव्यक्त रह जाएगा,
काम न आएगी, बैसाखी!”
द्वारा कहना चाहता हूँ. क्या आप भगवान का अपनत्व से भावपूर्ण स्मरण अंग्रेज़ी में कर सकते हैं? मैं तो नहीं कर सकता.
इसी असहायता को शब्द देह, देने का प्रयास मैंने किया है.
इस टिप्पणी द्वारा मैं बहन शकुन्तला जी, और रेखा जी, हिन्दी प्रेमी मित्र मोहन जी, मित्र इन्सान जी, एवं अनुज जयन्त चौधरी, सभी का हृदयतल से धन्यवाद करता हूँ.
अति बुद्धिमतापूर्ण टिप्पणियाँ आपने दी. कविता को अधिक सुन्दर बनाया. कविता पाठकों कारण ही अर्थवती बनती है.
मैं ने बचपन में एक बूढे बैल की मृत्यु भी देखी हैं. और दो युवा गोर्हों (बैलों को) को पहाडी से वापस न आनेकी घटना भी अनुभवी हैं. बाघों के शिकार हुए ऐसा सुना था.
कृतज्ञता पूर्वक धन्यवाद.
समाज का दर्पण
बैल की कबिता द्वारा डॉ. मधुसूदन जी ने समाज का दर्पण कराया हैं। जहा कर्मचारी, मज़दूर, श्रमिक, काम काम करते करते बूढ़े हो जाते हैं और फिर मौत का आलिंगन कर लेते हैं। शिवजी की स्तुति त्र्यम्बकं यजामहे। द्वारा बैल को ही नहीं बल्कि श्रमिकों और कर्चारियों को भी श्रदांजलि दी हैं।
इसको पढ़कर मुझे अपने बचपन की याद आ गई | सच मे एक बूढ़े बैल के जीवन को भी मैने देखा है| जब मेरे चचेरे भाई एक बूढ़े बैल को अंत मे थोड़े से रूपये में बेच देते थे तो मेरे पिता जी कभी उनको बराबर पैसे देकर उस बूढ़े बैल को बचाते थे | आज मैने देखा है की बहुत सारे मनुष्यो में भी यह बात आ गई है | बृद्धावस्था का यह मार्मिक चित्रण ह्रदय स्पर्शी है |
“तुम न समझोगे हिंदी!
बोल न पाऊं, अंग्रेजी!
भाव अव्यक्त रह जाएगा,
काम न आएगी, बैसाखी!”
आज केवल बूढ़े बैल की व्यथा नहीं है बल्कि समस्त भारतीय जनसमूह का अभिशाप है| आओ, तनिक निम्नलिखित घोषणा पर विचार करें:
“Dr. M.S. Randhawa Annual Flower Show on February 28 – March 1, 2018
The Department of Floriculture and Landscaping, Punjab Agricultural University, Ludhiana is organizing Dr. M.S. Randhawa Annual Flower Show in collaboration with the Estate Organization and Family Resource Management on February 28 – March 1, 2018 near the Examination Hall, College of Agriculture, PAU, Ludhiana. The competition will be open to individuals, private institutions, amateurs, government and semi-government institutions and nurseries. There will be 8 different classes of fresh/dry flower arrangements, seasonal flowers, foliage plants, cacti, succulents, ferns and bonsai in the competition. The Annual Flower Show is a regular event of the University and the major focus of Flower Show is to promote commercial floriculture & create awareness among the people for role of plants in improvement of environment. Dr. Baldev Singh Dhillon, Worthy Vice Chancellor PAU, will inaugurate the Flower Show at 12.30 P.M. on February 28, 2018 and Prize Distribution function will be held on March 1, 2018 at 2.30 P.M. The competition is organized regularly for the last 22 years and all the leading educational institutions, schools and colleges, municipal corporation, real estate organizations, Verka Milk Plant, nurseries etc. are regular participants in the Flower Show.
All flower lovers are invited to participate in the competition and grace the occasion to make the event more colourful.
For any further information, Dr. HS Grewal, Head, Department of Floriculture and Landscaping, PAU, Ludhiana may please be contacted.”
जब इस और ऐसी कई घोषणाओं को पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी (औपचारिकता-वश ही सही, विश्वविद्यालय के नाम को हिंदी अथवा पंजाबी भाषा में नहीं लिखा गया है) के जाल-स्थल पर देखता हूँ तो मैं वहां विश्वविद्यालय में बैठे काले अंग्रेजों और पंजाब के अधिकांश साधारण नागरिकों में संपर्क को अनुपस्थित पाता हूँ| अपनी व्यथा बताए बिना आज का युवा बैल भी एक दिन बुढ़ापे में सो जाएगा!
आदरणीय इंसान जी, धन्यवाद —-रोएँ या हँसे? क्या हमारी ( पंजाब की) स्थिति है? यहाँ अमरिका में अस्पतालों में शुश्रूषालयो (नर्सिंग होम्स) में, और भी संस्थाओं में, हिन्दी का प्रयोग बढ रहा है. मुझे भी परामर्ष के लिए सम्पर्क करते हैं.
प्रश्न है, क्या ऐसे आयोजन का यह अंग्रेज़ी विज्ञापन सफल होगा? कितने लोग विज्ञापन पढकर, इस उत्सव में सम्मिलित होंगे? मुझे तो ये, जैसे तैसे उत्तरदायित्व निभाने का काम लगता है. अंत में कहा है, सम्पर्क करो. कोई दूरभाष संख्या भी नहीं दी. डॉ. ग्रेवाल से यदि चाहे तो सम्पर्क कैसे किया जाए. उनके कार्यालय या निवास पर?
हँसे या रोए?
डॉ. मधुसूदन
क्षमा करें, डॉ. गरेवाल का दूरभाष क्रमांक मैंने जानभूझ कर हटा दिया था जो आप अंग्रेजी पढ़े-लिखे पूछ रहे हैं| अब तनिक सोचिए उन साधारण नागरिकों का जो अंतरजाल पर विश्वविद्यालय के जाल-स्थल पर पहुंचना तो दूर, वहां प्रस्तुत इस घोषणा को पढ़ ही नहीं सकते! उत्तरदायित्व केवल घोषणा कर देने में ही नहीं है बल्कि घोषणा में विषय-वस्तु को स्वयं लोगों की मूल भाषा में उन्हें अवगत कराने में है ताकि वे स्थिति से लाभ प्राप्त कर सकें|
डॉ. मधुसूदन जी, आपकी सुन्दर कविता के सो रहे बूढ़े बैल को मैं आज के भारतीय समाज में सभी ओर देखता हूँ| उनकी व्यथा कैसे दूर की जाए?
Atyant sundar abhivyakti…
Naman hai aapko.
* बैल की आत्म-व्यथा *
विद्वद्वर डॉ. मधुसूदन छोटे से छंद में निबद्ध कविता बैल के संघर्षपूर्ण जीवन पर प्रकाश डालते हुए , वृद्धावस्था के कष्ट का मार्मिक चित्रण करती है । चिरनिद्रा में सोने पर बूढ़े बैल के लिये मोक्षदायिनी ऋचा / मृत्युंजय मंत्र का पाठ उसे उपयुक्त
गरिमा प्रदान करता है । साधुवाद !!