मीडिया ओम थानवी के बहाने जनसत्ता पर कुछ विचार August 21, 2015 by उमेश चतुर्वेदी | 2 Comments on ओम थानवी के बहाने जनसत्ता पर कुछ विचार 1986-87 की बात है…तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और तत्कालीन वित्त मंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह में अदावत शुरू हो गई थी..उन्हीं दिनों बोफोर्स तोप सौदे को लेकर राजीव सरकार कठघरे में थी…इंडियन एक्सप्रेस अखबार से पहली बार पल्ला उन्हीं दिनों पड़ा..चित्रा सुब्रमण्यम की रिपोर्टें उन दिनों तहलका मचा रखी थीं..उन्हीं दिनों इंडियन एक्सप्रेस के अखबार जनसत्ता […] Read more » जनसत्ता
राजनीति ओम थानवी और माध्यम निरक्षरता May 31, 2012 / June 28, 2012 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | 5 Comments on ओम थानवी और माध्यम निरक्षरता जगदीश्वर चतुर्वेदी ओम थानवी साहब बहुत अच्छे व्यक्ति हैं। मैं कभी उनसे नहीं मिला हूँ। लेकिन उनके लिखे को इज्जत के साथ पढ़ता रहा हूँ। “आवाजाही” शीर्षक से उन्होंने 29 अप्रैल 2012 को जनसत्ता में एक लेख लिखा है, वह एक संपादक के ज्ञान का आभास कम और माध्यम निरक्षरता का एहसास ज्यादा कराता है। […] Read more » इंटरनेट ओम थानवी जनसत्ता वैचारिक अश्पृश्यता
परिचर्चा परिचर्चा : ‘वैचारिक छुआछूत’ May 31, 2012 / April 9, 2014 by संजीव कुमार सिन्हा | 42 Comments on परिचर्चा : ‘वैचारिक छुआछूत’ भारत नीति प्रतिष्ठान एक शोध संस्थान है। इसके मानद निदेशक हैं दिल्ली विश्वविद्यालय में प्राध्यापक श्री राकेश सिन्हा। श्री सिन्हा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े हैं और संघ के संस्थापक डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार के जीवनीकार हैं। प्रतिष्ठान के बैनर तले विभिन्न समसामयिक मुद्दों पर संगोष्ठी का आयोजन वे करते रहते हैं। इसी क्रम में […] Read more » जनसत्ता भारत नीति प्रतिष्ठान मार्क्सवाद राकेश सिन्हा वैचारिक अश्पृश्यता संवाद
राजनीति न प्रगति न जनवाद, निपट अवसरवाद / के विक्रम राव May 29, 2012 / June 28, 2012 by प्रवक्ता ब्यूरो | 1 Comment on न प्रगति न जनवाद, निपट अवसरवाद / के विक्रम राव के विक्रम राव वैचारिक आवाजाही निर्मल-प्रवाह जैसी हो तो बौद्धिक विकास ही कहलाएगी। वरना सोच में कोई भी बदलाव अमूमन मौकापरस्ती का पर्याय बन जाता है। आज के कथित प्रगतिवादी इसी दोयम दर्जे में आते हैं। वे सब आत्ममुग्ध होकर भूल जाते हैं कि हर परिवर्तन प्रगति नहीं होता, हालांकि हर प्रगति परिवर्तन होती है। […] Read more » ओम थानवी के. विक्रम राव जनसत्ता भारत नीति प्रतिष्ठान वैचारिक अश्पृश्यता
आलोचना जनसत्ता का प्रगतिशीलता विरोधी मुहिम और के. विक्रम राव का सफेद झूठ / जगदीश्वर चतुर्वेदी May 25, 2012 / June 28, 2012 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | 3 Comments on जनसत्ता का प्रगतिशीलता विरोधी मुहिम और के. विक्रम राव का सफेद झूठ / जगदीश्वर चतुर्वेदी जगदीश्वर चतुर्वेदी जनसत्ता अपनी प्रगतिशीलता विरोधी मुहिम में एक कदम आगे बढ़ गया है. उसने के.विक्रम राव का जनसत्ता के 13मई 2012 के अंक में “न प्रगति न जनवाद, निपट अवसरवाद” शीर्षक से लेख छापा है। यह लेख प्रगतिशील लेखकों और समाजवाद के प्रति पूर्वग्रहों से भरा है। यह सच है राव साहब की लोकतंत्र […] Read more » के. विक्रम राव जनसत्ता प्रगतिशील मार्क्सवाद वैचारिक अश्पृश्यता
आलोचना राजनीति अशोक वाजपेयी का मार्क्सवाद पर हमला, मार्क्सवादी चुप्प ! April 21, 2012 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | 1 Comment on अशोक वाजपेयी का मार्क्सवाद पर हमला, मार्क्सवादी चुप्प ! जगदीश्वर चतुर्वेदी हिन्दी आलोचना में नव्यउदार पूंजीवादी चारणों के बारे में जब भी सोचता हूँ तो रह-रहकर अशोक वाजपेयी याद आते हैं। इन जनाब की भजनमंडली में ऐसे 2 दर्जन लेखक हैं। अशोक वाजपेयी की शिक्षा-दीक्षा अव्वल दर्जे की रही है, सरकारी पद भी अव्वल रहे हैं, उनके पास चमचे भी अव्वलदर्जे के रहे हैं, […] Read more » अशोक वाजपेयी जनसत्ता मार्क्सवाद